आठवीं कक्षा तक के बच्चों के लिए जोखिम कम, उनके स्कूल पहले शुरू किए जाएं

0
142

जब हम शिमला-नैनीताल में बिना मास्क लगाए सैलानियों की भीड़ देखते हैं, तो मन में सवाल उठता है कि क्या हम भारत में कोरोना महामारी की दूसरी लहर भूल गए? महामारी विषेशज्ञ भारत में तीसरी लहर की चेतावनी दे रहे हैं, लेकिन लोग उसे नज़रअंदाज़ करते नज़र आ रहे हैं। साथ ही, सरकारें आर्थिक गतिविधियां चालू करने के लिए कोरोना संबंधित लगभग सारी पाबंदियां हटाती जा रही हैं, लेकिन स्कूल अभी भी बंद पड़े हैं। स्कूल खोलने पर न तो ज्यादातर राज्य सरकारें और न ही अभिभावक चर्चा कर रहे हैं। कुछ हद तक यह दर्शाता है कि हमारी प्राथमिकताएं कहां पर हैं?

पर्यटन इंतज़ार कर सकता है, लेकिन बच्चों की शिक्षा नहीं। ऑनलाइन पढ़ाई, स्कूली कक्षाओं का विकल्प नहीं है। इसका बेहतर नतीजा तभी मिलता है जब पैरेंट्स भी बच्चों को पढ़ाएं, जो सभी, खासतौर से गरीब व निचले तबके के परिवारों में संभव नहीं है। स्कूल महज किताबें रटने की जगह नहीं हैं बल्कि बच्चे स्कूल में एकदूसरे से मिलते हैं, तभी उनका भाषा ज्ञान, पारस्परिक व सामाजिक कौशल और शारीरिक, मानसिक व भावनात्मक विकास होता है। स्कूल बंद होने से जिन बच्चों को मध्यान्ह भोजन मिलता था, वे पोषण से भी वंचित हो गए हैं।

भारत दुनिया के चुनिंदा देशों में आता है जहां स्कूल अभी भी बंद है, जबकि जुलाई 2021 की शुरुआत में करीब 170 देश स्कूली कक्षाएं संचालित कर रहे थे। कई देशों ने तो पूरी महामारी के दौरान, मात्र कुछ दिनों को छोड़कर, स्कूल कभी बंद नहीं किए। इसके विपरीत, भारत में पिछले 16 महीने से लगभग 25 करोड़ बच्चे स्कूल नहीं गए हैं।

वैज्ञानिक तथ्य यह है कि कोविड-19 का खतरा छोटे बच्चों को न के बराबर है। दुनियाभर के विशेषज्ञ सहमत हैं कि बच्चों को स्कूल जाने के लिए उनका टीकाकरण जरूरी नहीं है। किसी भी देश ने 12 साल से कम उम्र के बच्चों का टीकाकरण शुरू नहीं किया है, लेकिन बच्चे स्कूल जा रहे हैं। आठवीं कक्षा तक के बच्चों के लिए जोखिम कम होता है और उनके स्कूल पहले शुरू किए जाने चाहिए।

अब समय है कि स्वास्थ्य व शिक्षा विशेषज्ञ, सरकारें और अभिभावक मिलकर बच्चों के स्कूल लौटने की तैयारी करें। राज्य सरकारें विशेषज्ञ से सलाह लेकर जल्द स्कूल खोलने की विस्तृत कार्ययोजना बनाएं। इसे सफल बनाने के लिए स्कूलों को कक्षाओं में उचित वेंटिलेशन और बच्चों में शारीरिक दूरी सुनिश्चित करने जैसे ढांचागत बदलाव करने होंगे।

खुले (लेकिन छायादार) स्थानों पर कक्षाएं आयोजित कर सकते हैं। शुरुआत में कक्षाएं रोज न होकर हर दूसरे दिन, तीन दिनों में एक बार या सप्ताह में एक दिन लगा सकते हैं। जरूरी है कि बच्चे स्कूल आना शुरू करें। फिलहाल स्कूली कक्षा और ऑनलाइन पढ़ाई, दोनों की जरूरत होगी। हां, यह चयन अभिभावकों का होना चाहिए कि वे अपने बच्चों के लिए कौन-सा माध्यम चुनते हैं?

महामारी कई महीने रहेगी और कोरोना वायरस कई साल। स्कूल महामारी ख़त्म होने या बच्चों को टीके लगने के इंतज़ार में बंद नहीं रह सकते। उनकी सुरक्षा के साथ, हमें उनकी शिक्षा और सीखने के रास्ते भी निकालने होंगे। बच्चों के समग्र विकास के लिए स्कूल खुलना जरूरी है। पर्यटन में संक्रमण फैलने की आशंका, स्कूलों की तुलना में कहीं ज्यादा है।

जितने उत्साहित हम पर्यटन और आर्थिक विकास के लिए हैं, उससे अधिक हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए कि बच्चे जल्द स्कूल लौटें। सरकारों, स्वास्थ्य व शिक्षा विशेषज्ञों और अभिभावकों को मिलकर इसके लिए हर संभव कदम उठाने की जरूरत है।

डॉ. चन्द्रकांत लहारिया
( लेखक जन नीति और स्वास्थ्य तंत्र विशेषज्ञ हैं ये उनके निजी विचार हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here