अनुशासन बनाने पर बच सकते हैं कई बीमारियों से

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देवराज नाम का एक व्यति फलों का रस बेचने का व्यापार करता था। उसे चरित्र की चिंता बिल्कुल नहीं थी। हर हालत में पैसा कैसे कमाया जाए और उस पैसे से भोग-विलास कैसे किया जाए, यही उसका लक्ष्य था। ऐसे ही गलत आचरण की वजह से उसका संबंध भावती नाम की वैश्या से हो गया। दोनों साथ रहने लगे। दोनों का आचरण बहुत ही बुरा था। दोनों के जीवन में अनुशासन था ही नहीं। वे सिर्फ खाते-पीते, सोते और विलास करते थे। देवराज और भावती ऐसा कोई काम नहीं करते थे, जिसे अच्छा कहा जा सके। कई बार तो भोग-विलास की अति कर देते थे। गांव के सभी लोग इनकी वजह से परेशान थे। एक दिन देवराज को बुखार आ गया। शरीर कमजोर हो गया तो भोग-विलास बंद हो गया। देवराज को किसी ने सलाह दी कि तुम शिवजी की कथा सुनो।

सलाह मानकर उसने एक पंडित से शिव चरित्र सुना। शरीर का कष्ट तो बना रहा, लेकिन जब उसकी मृत्यु आई तो उसे संतोष था कि वो जान चुका है, शरीर मरेगा, आत्मा नहीं और वह मुत हो गया। मृत्यु के बाद जब उसकी आत्मा की भेंट शिव जी हुई तो शिव जी ने उसे समझाया, मैं जब किसी आत्मा को मनुष्य शरीर देता हूं तो ये आशा करता हूं कि मनुष्य अपने चरित्र और इंद्रियों को नियंत्रित रखेगा। गलत काम नहीं करेगा। जो लोग अपने शरीर का दुरुपयोग करते हैं, खासकर भोग- विलास में, अपराध में लिप्त रहते हैं, उन्हें फिर दंड भुगतना पड़ता है। लोग समझते हैं कि ईश्वर दंड दे रहा है, लेकिन उनका शरीर ही उन्हें दंड देता है। हमारी उम्र कोई भी हो, लेकिन मनुष्य का शरीर मिला है तो इसे बहुत सावधानी से उपयोग करें। अगर रहन-सहन में छोटी सी भी लापरवाही हुई तो महामारी जैसे कष्ट भुगतने पड़ेंगे, इसमें भगवान कु छ नहीं कर पाएगा।

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