भाजपा से पहले तो सपा में नफा तलाश था जितिन ने !

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कहा जा रहा है कि, जितिन प्रसाद बीजेपी की सदस्यता ग्रहण करने से पहले समाजवादी पार्टी में अपना सियासी भविष्य तलाशने के लिए कुछ दिन पहले अखिलेश यादव से भी मिले थे। सपा के साथ उनकी बात नहीं बनी तब बीजेपी के साथ उन्होंने अपनी राजनीतिक पारी बढ़ाने का फैसला किया। जितिन प्रसाद के कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में जाने पर उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने कहा कि जितिन प्रसाद को कांग्रेस ने या कुछ नहीं दिया,इसके बावजूद उन्होंने कांग्रेस के साथ विश्वासघात किया है। साथ ही अजय लल्लू ने बताया कि जितिन प्रसाद कुछ दिनों पहले सपा प्रमुख अखिलेश यादव से लखनऊ में मिले थे। अखिलेश के साथ उन्होंने मीटिंग भी की थी। वहीं, सपा सूत्रों की मानें तो पिछले डेढ़ महीने से जितिन प्रसाद समाजवादी पार्टी में आने की कोशिश कर रहे थे, जिसके लिए उन्होंने संदेश भी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को पहुंचाया था।

सपा उन्हें पार्टी में शामिल करना चाहती थी, लेकिन बहुत ज्यादा उत्सुक नहीं थी। जितिन प्रसाद खुद के साथ-साथ शाहजहांपुर, लखीमपुरखीरी और सीतापुर सहित कई जिलों के अपने करीबी नेताओं को भी अडजेस्ट कराना चाहते थे, जिस पर अखिलेश यादव राजी नहीं हुए। जितिन प्रसाद के सपा में आने से सिर्फ मुस्लिम वोट ही आता, लेकिन कुर्मी वोट अखिलेश से छिटक जाता। इतना ही नहीं सपा का कहना है कि जितिन प्रसाद भले ही ब्राह्मण नेता हों, लेकिन शाहजहांपुर को छोड़कर बाकी प्रदेश का ब्राह्मण समुदाय उनके साथ नहीं है। वहीं, सपा को लगता है कि जितिन के बीजेपी में जाने से उन्हें मुस्लिम वोटों के साथ-साथ अब कुर्मी वोट का भी फायदा है, क्योंकि जितिन प्रसाद के खिलाफ कुर्मी रहता है। सपा ने जितिन प्रसाद को लेकर बहुत ज्यादा न तो गंभीर हुई और न ही उत्सुकता दिखाई।

ऐसे में उन्हें जब यह महसूस हुआ कि 2022 के चुनाव में कांग्रेस बहुत ज्यादा कोई बड़ा करिश्मा नहीं करने वाली हैं तो उन्होंने अपने सियासी भविष्य को सुरक्षित करने के लिए बीजेपी का दामन थाम लिया। जितिन प्रसाद एक के बाद एक लगातार तीन चुनाव हार चुके हैं. वो 2004 और 2009 में कांग्रेस से सांसद और केंद्र में मंत्री थे, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में तीसरे नंबर पर रहे थे जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में जमानत तक नहीं बचा सके। इतना ही नहीं 2017 के विधानसभा चुनाव में भी जितिन प्रसाद तीसरे नंबर पर रहे थे। हाल ही में जिला पंचायत के चुनाव में उनके भाई की पत्नी को भी करारी हार का सामना करना पड़ा है। वहीं, अब बीजेपी की सदस्यता ग्राहण कर अपने सियासी पारी को आगे बढ़ाने का फैसला किया है। ऐसे में देखना है कि बीजेपी के सियासी पिच पर उतरकर किस तरह की राजनीतिक बैटिंग करते हैं?

कुमार अभिषेक
(लेखक पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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