जून के पहले सप्ताह में दो महत्वपूर्ण व आपस में संबद्ध अंतरराष्ट्रीय दिवस रहे। 3 जून को विश्व साइकिल दिवस, और 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया। ये पोलिश अमेरिकन समाजशास्त्री और ट्रैक साइकिलिस्ट लेसेक सिबिलिस्की के अथक प्रयासों का ही नतीजा था कि अप्रैल 2018 में संयुत राष्ट्र ने 3 जून को विश्व साइकिल दिवस के रूप में घोषित किया। साधारणसी साइकिल वाकई एक लंबा सफर तय कर चुकी है। चारपहिया का खर्च नहीं उठा सकने वालों के यातायात का साधन से लेकर अब इसके नाम से एक महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय दिवस है! 1817 में साइकिल का पहला स्वरूप ईजाद करने का श्रेय जर्मन कार्ल वॉन ड्रैस को जाता है। इसके बाद साइकिल के कई टिकाऊ और ज्यादा सुरक्षित स्वरूप बनते चले गए। 1890 तक तो यूरोप और अमेरिका में इसका क्रेजसा छा गया और तबसे साइकिल ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। दो सदियों बाद यूएन ने साइकिल की सादगी, लोगों का इससे जुड़ा सामर्थ्य, पर्यावरण अनुकूल इस्तेमाल और स्वास्थ्य लाभ को मान्यता दी!
शहरी क्षेत्रों से आने वाले हममें से अधिकांश लोगों के लिए साइकिल सीखना बचपन की सिर्फ एक सुनहरी याद है। लेकिन पिछले साल से दिल्ली की सड़कों पर कई साइकिल सवार दिखने लगे हैं। दुनिया में नीदरलैंड में प्रति व्यति सर्वाधिक साइकिलें हैं, वहीं कोपेनहेगन दुनिया का सबसे ज्यादा साइकिल फ्रेंडली शहर है। यहां के 52 फीसद लोग रोज साइकिल से काम पर जाते हैं। जापान, फिनलैंड और चीन भी साइकिल के बड़े उपयोगकर्ता हैं। लॉकडाउन के चलते कम ट्रैफिक, सामाजिक दूरी और फिटनेस पर ध्यान के कारण कोरोना ने दुनिया भर में साइकिल को फिर से लोगों की नजरों में ला दिया है। पेरिस साइकिल हब में तब्दील हो रहा है, दिल्ली की मुख्य सड़कों पर साइकिल लेन बनाई गई है। एक अनुमान के अनुसार दुनिया में दो अरब साइकिल हैं। अकेले भारत में ही बीते साल 1.45 करोड़ साइकिलों का निर्माण हुआ, उनमें 80 फीसद पंजाब में बनीं। महिलाओं के सशतीकरण आंदोलन में भी साइकिल ने बड़ी भूमिका निभाई है।
-साधना शंकर