राज्यों के बीच बढ़ सकता है टकराव

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कोरोना वायरस की महामारी के बीच भारत सरकार की नई वैक्सीन नीति ने राज्यों के बीच सहयोगी की संभावना को खत्म कर दिया है। वैसे पहले भी राज्यों में टकराव चल रहा था। महामारी के बीच सहयोगी की जिस भावना की अपेक्षा की जाती है वह गायब थी। सारे राज्य एक दूसरे पर ऑक्सीजन की आपूर्ति रोकने के आरोप लगा रहे थे या यह आरोप लगा रहे थे कि उसके यहां दूसरे राज्य के मरीज आकर टेस्ट करा रहे हैं या भर्ती हो रहे हैं। बिहार और उत्तर प्रदेश में तो गंगा में बह रही लाशों को लेकर टकराव चल रहा है। लेकिन अब वैक्सीन नीति की वजह से जोरदार प्रतिस्पर्धा या टकराव शुरू होने वाला है। सारे राज्य जल्दी से जल्दी और ज्यादा से ज्यादा वैक्सीन हासिल करने के बंदोबस्त में लगे हैं। हालांकि सफलता किसी को भी मिलती नहीं दिख रही है।

असल में भारत सरकार ने अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया है। पिछले साल के अंत में केंद्र ने तय किया था कि वैक्सीन वह खरीदेगी और राज्यों को वैक्सीन नहीं खरीदनी है। लेकिन वैक्सीन के ऑर्डर देने और पर्याप्त खरीद में केंद्र सरकार विफल रही। अब जब संकट बढ़ा तो उसने अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया और राज्यों से कहा कि वे वैक्सीन खरीदें। अब राज्यों के हाथ-पांव फूले हुए हैं। भारत में वैक्सीन बनाने वाली दोनों कंपनियों की उत्पादन क्षमता पर्याप्त नहीं है। सो, सारे राज्य ग्लोबल टेंडर निकाल रहे हैं। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से लेकर महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओड़िशा आदि राज्यों ने वैक्सीन के लिए ग्लोबल टेंडर निकालने का ऐलान किया है। भारत की कंपनियों से वैक्सीन हासिल करने में भी राज्यों के बीच होड़ मची है और ग्लोबल टेंडर में भी मची है। पर मुश्किल यह है कि दुनिया की किसी कंपनी के पास अभी इतना मात्रा में वैक्सीन नहीं है कि वह भारत की जरूरत पूरी कर सके। सो, अभी टेंडर होने के बाद भी राज्यों को महीनों इंतजार करना पड़ेगा और तब तक वैक्सीनेशन की प्रक्रिया कछुआ चाल से चलती हुई होगी।

हरिशंकर व्यास
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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