प्रदूषण रोकने के लिए बिना संकल्प और संस्था के कुछ भी ठोस नहीं हो सकता। नियम एवं कायदों के अनुसार आयोग गठित कर दिया जाए तो शुद्ध लाभ पहुंचाने वाली संस्था का उदय हो जाता है। जो संस्था बनने के बाद लाभ न दे उसका क्या फायदा, इसलिए संस्था का मूल उद्देश्य खूब लाभ पैदा करना होना चाहिए। किसी भी आयोग का गठन सुबह से देर रात तक बैठक कर सम्पन्न कर दिया जाए तो अगली सुबह आराम से उठ सकते हैं। यह सुबह जीवन की शानदार गैर प्रदूषित सुबह मानी जा सकती है क्यूंकि पिछली रात, ‘लाभ आयोग’ का गठन हो चुका होता है। आयोग गठित होने की अगली सुबह प्रदूषण में कुछ कमी तो आ ही जाती है। आयोग के आदेश इतने सख्त होते हैं कि इंसान या संस्थान डरे न डरे लेकिन प्रदूषण डरना शुरू हो जाता है। खुशखबर यह है कि पिछली एक ही रात में बहुत बढ़िया आयोग का गठन कर दिया गया है।
आदेशों में स्पष्ट लिख दिया गया है कि यदि आदेशों व नियमों की अवहेलना हुई तो पांच साल तक की कठोर सज़ा व एक करोड़ रूपए तक का जुर्माना लिया जाएगा, जो नक़द लेते हुए कम हो सकता है। यह दोनों कार्य एक साथ किए जाने का प्रावधान पकाया जा सकता है। यह बात सच साबित हो गई कि दो दर्जन साल पुरानी संस्था, नाम घिसापिटा हो जाने के कारण, प्रदूषण की रोकथाम व नियंत्रण का काम प्रभावशाली तरीके से नहीं कर पाई। इसलिए संस्था का नाम बदलकर आसान नाम रखना ज़रूरी हो गया था। अब देखिए न प्राधिकरण की जगह अगर आयोग कहा जाएगा तो सुनने में भी नया और अच्छा लगेगा। आयोग को कुछ समय बाद योग भी कह सकते हैं जिसके कई अर्थ भी निकाले जा सकेंगे। दिलचस्प यह रहेगा कि किसी को शिकायत नहीं करनी पड़ेगी बलिक संस्था इतनी बढ़िया बनी है कि परेशानी का स्वत संज्ञान लेगी। मामला सुनवाई के बाद आदेश जारी करने के अधिकार का कार्यान्वन पहले से ज्यादा सख्ती से किया जा सकेगा। आयोग के चेयरमैन व सदस्यों की नियुक्ति समयबद्ध होगी व चेयरमैन अनुभवी, बड़े आकार का पूर्व अधिकारी होना चाहिए।
पर्यावरणविद व पर्यावरण प्रेमियों को क़ानून व्यव्स्था का अता पता नहीं होता इसलिए उन्हें बाहर ही रखा जाएगा। आयोग में पूर्णकालिक सदस्य व समझदार प्रतिनिधि होने चाहिए, एक डेढ़ दर्जन उप समितियां व दो दर्जन मार्शल भी होने चाहिए जो प्रदूषण स्त्रोतों की निगरानी, पहचान, फैसले लागू करवाने व शोध विकास जैसे महत्वपूर्ण कार्य पहले से ज्यादा सक्रियता से करेंगे। इसके लिए उनको वातानुकूलित वाहन दिए जाएंगे और जो अपने क्षेत्र में सुबह शाम घोषणा करते रहेंगे कि हम प्रदूषण का मुकाबला, मिलकर, डटकर करेंगे। सबसे कहा जाएगा कि रोजाना कुछ कदम पैदल ज़रूर चला करें। संसाधनों को और ज़ोरदार ढंग से झोंकने को तैयार रखा जाएगा जिसके लिए महंगा ऐप बनवाया गया है। सम्बंधित विभागों को चौबीस घंटे हरकत में रखने की बात कही गई है। इस अभियान को अब एक नई लड़ाई की तरह लिया जाएगा। तन, मन और धन के माध्यम से यह सुनिश्चित कर लिया गया है कि संस्था में प्रदूषण जैसे महत्वपूर्ण मामले पर घटिया राजनीति बिलकुल नहीं की जाएगी। कार्यालय सौ प्रतिशत डिजिटल होगा जिसमें अत्याधुनिक संयंत्रों का प्रयोग होगा, कागज़ प्रयोग नहीं किया जाएगा। खान पान में सिर्फ आर्गेनिक वस्तुएं ही प्रयोग की जाएंगी। प्लास्टिक का फर्नीचर या फूल पौधे नहीं रखे जाएंगे। फर्नीचर शीशम की लकड़ी का बनवाया जाएगा । इस परिसर के अडोस पडोस में आधा दर्जन झरने भी बनवाए जाएंगे ताकि सभी निर्णय कुदरती वातावरण में लिए जा सकें। ऐसा लगता है आयोग गठन बारे जानकर प्रदूषण स्वयं डर गया है, उसे लगने लगा है कि अब उसके बुरे दिन शुरू हो गए हैं।
संतोष उत्सुक
(लेखक व्यंगकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)