करोना से संक्रमित मरीजों में पिछले कुछ समय से यह देखा जा रहा है कि अनेक मरीज संक्रमण से उबरते उबरते, हार्ट अटैक होने से मृत्यु के शिकार हो गएए जबकि प्रारम्भ में संक्रमित व्यक्ति के फेफड़ों में संक्रमण होने से सांस फूलने, ऑक्सीजन की कमी, फेफड़ों के काम न करने के कारण मृत्यु की खबरें आ रही थीं, पर बाद में हार्ट फेल होने, हृदयाघात होने से भी संक्रमित मरीजों की जान जाने की खबरें आने लगीं, जो चिंताजनक हैं। पिछले कुछ समय से कोरोना से संक्रमित मरीजों के अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान और कुछ में अस्पताल से छुट्टी होने के बाद भी कुछ दिनों के अंदर हार्ट अटैक आने और हार्टफेल होने के मामले आयेए जिनमें अनेक बड़े बड़े चिकित्सक पत्रकारए कलाकार, राजनेता भी थे, जब लगातार ऐसे मामले ज्ञात हुए तब अध्ययनकर्ताओं का ध्यान इस ओर ध्यान आकृष्ट हुआ, और कोरोना के मरीजों में हार्ट अटैक के कारणों के अध्ययन भी आरम्भ हुए, जिससे अनेक तथ्य सामने आए।
आप ये जानकर हैरान रह जाएंगे कि इस बीमारी से ठीक होने के बाद भी इसके संक्रमण का प्रभाव शरीर के कुछ अंगों पर लंबे समय तक दिख सकता हैए जिन के संबंध में भी अध्ययन चल रहे हैं। सन 2019 से ही कोरोना के मामले विश्व भर में लगातार सामने आ रहे हैं। भारत में कुछ दिनों से तो 3 लाख से अधिक मामले सामने आ रहे हैं। कोविड के पहले दौर में तो युवा और बच्चों में संक्रमण के मामले नहीं थे पर मौजूदा दौर में छोटे बच्चे, युवा, भी संक्रमित हो रहे हैं, तब यह स्थिति और चिंतनीय होने लगी है। ‘ अनेक मामलों में गंभीर बात यह है कि संक्रमितों के साथ ही संक्रमण से उबर चुके लोगों के खून में भी डी.डाइमर बढ़ा हुआ मिला है। आमतौर पर होम आइसोलेशन में रहने वाले संक्रमित इसको लेकर अनजान होते हैं तथा उनकी खून की जांच नहीं नहीं हो पाती। उन्हें पॉजिटिव रिपोर्ट आने पर बुखार, एंटीबायोटिक, विटामिन आदि की दवा लक्षणानुसार दे दी जाती हैं, जिससे उनके लक्षण ठीक भी हो जाते हैं और वे वायरस के संक्रमण काल से उबरने लगते हैं। पर ऐसे अनेक मरीजों में निगेटिव होने बाद कुछ दिनों तक उन्हें चिकित्सकीय परामर्श की आवश्यकता होती है, जिस पर उनका ध्यान नहीं जाता और बाद में कुछ मरीजों में ऑक्सीजन लेवल गिरने, छाती में दर्द होने, घबराहट की तकलीफ होती है।
चिकित्सकों के अनुसार संक्रमण खत्म होते ही ज्यादातर लोग यह मान लेते हैं कि वे पूरी तरह से स्वस्थ हो चुके हैं। यह सही नहीं है। वायरस शरीर में कई दुष्प्रभाव छोड़ता है। जिससे खून गाढ़ा होने लगता है। इससे खून में थम्के बनने लगते हैं।यूरोपियन हार्ट् पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में बताया गया है कि इसमें 1,946 ऐसे लोगों को शामिल किया गया जिन्हें बीते साल एक जनवरी से 20 जुलाई के बीच अस्पताल के बाहर किसी दूसरे स्थान पर दिल का दौरा पड़ा जबकि 1,080 ऐसे लोग शामिल किये गए जिनके साथ अस्पताल में ऐसा हुआ। स्वीडन के गोथेनबर्ग विश्वविद्यालय के अध्ययनकर्ताओं के अनुसार महामारी के दौरान किये गए अध्ययन में अस्पताल में दिल के दौरे का शिकार हुए 10 प्रतिशत लोग कोरोना वायरस से संक्रमित थे जबकि अस्पताल से बाहर ऐसे रोगियों की संख्या 16 प्रतिशत थी। उन्होंने कहा कि अस्पताल में दिल के दौरे का शिकार हुए लोंगों के तीस दिन के अंदर जान गंवाने का खतरा 3.4 गुणा बढ़ गया था।
डा. दिनेश मिश्र