एक तरफ पूरा देश कोरोना महामारी से लड़ रहा है, दूसरी ओर दवा माफिया द्वारा दवा की कालाबाजारी करना शर्मनाक है। ऐसी स्थिति में सरकार को इनके खिलाफ ठोस कदम उठाने की जरूरत है। महामारी में मौका ढूंढना मानवता के विरुद्ध है। यह कानून की नजर में भी घोर अपराध है। कोरोना महामारी से जूझ रहे देश में एक तरफ जहां मध्यप्रदेश में ऑक्सीजन की कमी से मौतें हो रही हैं, वहीं देश के कई हिस्से में क्रिटिकल कोरोना मरीजों के लिए लाइफ सेविंग दवा रेमडेसिविर इंजेशन की कई शहरों में कालाबाजारी की खबरें आ रही हैं। ऑक्सीजन की कमी, कोरोना टीके की 80 से अधिक देशों को आपूर्ति करने, टीके की रतार को लेकर चिट्ठी, कोविड मरीजों के लिए मदद आदि के बहाने विपक्षी दलों की राजनीति भी अच्छी परिपाटी नहीं है। देश में जब से ऑक्सीजन की कमी की बात सामने आई है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 12 राज्यों के साथ समीक्षा बैठक कर इसके उत्पादन बढ़ाने व आपूर्ति तंत्र को दुरुस्त करने का निर्देश दे चुके हैं।
एक तरफ केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 162 ऑक्सीजन निर्माण संयंत्र लगाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी है तो दूसरी तरफ रेल मंत्रालय ने ऑक्सीजन एसप्रेस चलाने का ऐलान किया है। हालांकि ये फैसले पहले ही होने चाहिए थे। टीकाकरण तेजी से चल ही रहा है। चरण दर चरण टीकाकरण का दायरा भी बढ़ाया जा रहा है। एक बार में ही सबके लिए टीकाकरण नहीं शुरू किया जा सकता है और सबको एक साथ इसकी जरूरत भी नहीं होगी। सरकार कोशिश कर रही है कि बढ़ते कोरोना मरीज को देखते हुए अस्पतालों में बेड, एंबुलेंस, ऑक्सीजन, वेंटिलेटर, दवाएं आदि जरूरत के मुताबिक उपलब्ध कराया जाए। ऑक्सीजन की कमी निश्चित रूप से सरकारी प्रबंधन की दूरदर्शिता की कमी है। इसे तत्काल दूर किए जाने की जरूरत है। प्रबंधन की कमी के चलते ही सरकार को आयात करने का फैसला करना पड़ा है। जीवन रक्षक रेडमेसिविर इंजेशन की कालाबाजारी जघन्य अपराध है। ऐसा करने वालों को सख्त सजा मिलनी चाहिए। गुरुग्राम में यह बात सामने आई है कि सरकारी स्टॉक को आपूर्ति की गई रेमडेसिविर दवा की खुले बाजार में काला बाजारी हो रही थी, इसलिए सरकारी तंत्र में बैठे भ्रष्ट कर्मियों की पहचान व उसके खिलाफ सख्त एशन भी जरूरी है।
कानपुर, मुंबई, पुणे, गुरुग्राम, फरीदाबाद, रायपुर आदि जगहों पर रेमडेसिविर इजेशन की कालाबाजारी और तीन से पांच गुणा अधिक दाम पर बिक्री सरकारी तंत्र की कमियों की पोल खोलती है। इसकी जांच होनी चाहिए। दवा आपूर्ति करने वाली कंपनियों को भी निगरानी के दायरे में लाया जाना चाहिए। मजबूर मरीजों का शोषण स्वास्थ्य सेवा को कलंकित करना है। 80 देशों को टीका भेजने को लेकर ममता बनर्जी द्वारा मोदी सरकार की आलोचना सस्ती सियासत है। भारत ने टीका बनाने के बाद इसे अपने नागरिकों समेत विश्व के देशों को उपलबध कराकर साहसी व मानवीय कदम उठाया है। जिस वत यह फैसला हुआ, उस वत देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या लगातार कम हो रही थी। वैसीन डिप्लोमेसी की सराहना होनी चाहिए। महामारी के समय सियासत से जंग कमजोर होती है। देश एक साल से अधिक समय से कोरोना महामारी से जूझ रहा है, केंद्र व राज्य सरकारों के संयुत प्रयासों से कोविड को हद तक नियंत्रण रखा जा सका है। दूसरी लहर में भी माइक्रो कंटेनमेंट जोन जैसे यथोचित कदम उठाए जा रहे हैं। इसलिए कोरोना पर न ही राजनीति हो और न ही दवा की कालाबाजारी हो।