छोटी बचत योजनाओं की दरों से रहें सावधान चुनाव बाद हो सकती हैं कम

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छोटी बचतों पर जारी सर्कुलर को वापस लेना शायद उचित था, क्योंकि मौजूदा आर्थिक परिस्थितियों, साथ ही पांच राज्यों में चल रहे चुनावों को देखते हुए ब्याज दरों को कम करने का यह सही समय नहीं होता। लेकिन हो सकता है कि फैसले को सिर्फ टाला गया हो और जनता को यह तथ्य पता होना चाहिए। इसमें हैरानी नहीं होगी कि चुनाव के बाद दरें कम कर दी जाएं।

तो छोटी बचत हैं क्या? ये बचत मुख्यत: पोस्ट ऑफिस स्कीम में होती हैं, जिनकी अनुमति सरकार देती है। चूंकि इन्हें पोस्ट ऑफिस चलाते हैं, जो मजबूत ग्रामीण आधार के साथ देशभर में फैले हैं, इसलिए स्कीम आम आदमी तक पहुंचती हैं। माना जाता है कि ज्यादातर निम्न आय समूह इनमें बचत रखते हैं। यहां कुल बचत 10.5 लाख करोड़ है। करीब दो तिहाई डिपॉजिट (जमा राशि), जबकि 25% सर्टिफिकेट के रूप में है। बाकी पीपीएफ में है।

डिपॉजिट में भी 22% राशि बचत खातों में हैं। ऐसे खाते ज्यादातर उन ग्रामीण क्षेत्रों में देखे जाते हैं, जहां बैंक सेवाएं नहीं हैं। अन्य 28% मासिक आय बचत स्कीमों में हैं । फिर 10-11% वरिष्ठ नागरिक योजनाओं में हैं और 16% रिकरिंग (आवर्तक) डिपॉजिट हैं। सर्टिफिकेट, किसान विकास पत्र (केवीपी) और एनएससी (नेशनल सेविंग्स सर्टिफिकेट) आदि के रूप में होते हैं। इसमें मिलने वाली राशि ब्याज की स्थिति के आधार पर पहले से ही तय कर दी जाती है।

उदाहरण के लिए एक किसान विकास पत्र 10 साल, 4 महीने में आय दोगुनी कर देता है। भविष्य की जरूरतों, जैसे शादी आदि के लिए पैसा जोड़ने वालों के लिए यह बहुत उपयोगी है। इस तरह ये स्कीम आबादी के बड़े हिस्से को आकर्षित करती हैं, जिन्हें मदद की जरूरत होती है क्योंकि ज्यादातर लोगों के लिए कोई सार्वजनिक सामाजिक सुरक्षा योजनाएं नहीं हैं।

व्यवस्थित सेक्टर में कर्मचारी ईपीएफ इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन जो इससे बाहर हैं उनके लिए पीपीएफ उपयोगी है। फंड एनएसएसएफ (नेशनल स्मॉल सेविंग्स फंड) में भेज दिया जाता है, जहां से यह केंद्र व राज्य के लिए जारी होता है, जो बैलेंस का आहरण करते हैं और ब्याज देते हैं। फिलहाल ये स्कीमें करीब 6.5-7% ब्याज देती हैं।

ब्याज दरें कम करने के लिए दो तर्क दिए गए हैं, दोनों ही कमजोर हैं। सरकार कहती है कि वह ब्याज दर कम करना चाहती है क्योंकि आज वह बाजार में 10 वर्ष के पेपर के लिए मान लीजिए 6.15% पर उधार ले रही है, तो अब जब सरकार एनएसएसएफ से आहरण करती है, तो उसे इन स्कीम की 6.5-7% लागत से 50-10 बीपीएस ज्यादा देना पड़ता है। इसे वह महंगा बताती है। यह तर्क मजबूत नहीं है क्योंकि छोटी बचत योजनाओं का उद्देश्य कमजोर और असुरक्षित वर्ग को सुरक्षा देना है।

वृद्धि के आधार पर इसमें एक साल में 75,000 करोड़ रुपए से ज्यादा नहीं जुड़ता। इसमें एक फीसदी ब्याज की लागत सिर्फ 750 करोड़ रुपए होती है। दूसरा तर्क है कि बैंक कहते रहते हैं कि छोटी बचत योजनाओं पर ज्यादा ब्याज के कारण वे अपनी ब्याज दरें कम नहीं कर पाते। अगर वे ऐसा करेंगे तो जमाकर्ता खाता बदल लेंगे। यह तर्क भी कमजोर है क्योंकि कोई भी अपना बैंक बदलकर छोटी बचत योजनाओं पर नहीं जाता, चूंकि लोगों के वर्ग अलग-अलग हैं।

यहां तक कि बैंकों में भी जब अलग-अलग ब्याज दरें होती हैं, तो हम ऐसा नहीं देखते कि लोग एक बैंक से पैसे निकालकर दूसरे में चले जाएं। रेट कैसे तय किए जाते हैं? उन्हें पिछली अवधि की गवर्नमेंट सिक्योरिटी (जीसेक) की दरों के आधार पर तय करते हैं और हर तिमाही में पुनर्विचार होता है। सरकार ने स्कीम में 90-100 बीपीएस की कटौती की घोषणा की थी, जिसे समझना मुश्किल है क्योंकि जीसेक दरों में जनवरी-मार्च तिमाही में 20-25 बीपीएस की बढ़त हुई थी।

पिछले साल छोटी बचतों की दर में करीब 100 बीपीएस की औसत कटौती की गई थी और इसीलिए नई कटौती के सुझाव को सही नहीं ठहराया जा सकता। हम उम्मीद ही कर सकते हैं कि चुनावों के बाद, अगली तिमाही में इस कटौती को फिर वापस नहीं लाया जाएगा क्योंकि इससे असुरक्षित वर्ग बुरी तरह प्रभावित होगा। लेकिन कुछ कहा नहीं जा सकता।

मदन सबनवीस
(लेखक चीफ इकोनॉमिस्ट हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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