ये टीके टिकाऊ तो नहीं !

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कोविड -19 संक्रमण की रोकथाम के लिए जिन टीकों पर अभी सबकी आस टिकी है, संभव है कि उनका असर टिकाऊ ना हो। अभी तक बने सभी वैक्सीन के एक साल से भी कम समय में बेअसर हो जाने का अंदेशा है। जाहिर है, तब नए या मौजूदा वैक्सीन के अपडेटेड वर्जन की जरूरत पड़ेगी। ये राय महामारी, संक्रमण रोग और वायरस विशेषज्ञों की है। उनके बीच किए गए एक सर्वे से सामने यह आया कि या तो सबका तुरंत टीकाकरण हो, या फिर नए वैक्सीन को तैयारी शुरू कर दी जाए। आई है। विशेषज्ञों ने ये बात पहले भी कही थी कि कोरोना वायरस अपने नए रूप उत्पन्न कर सकता है। तब कहा गया था कि नए रूप अपेक्षाकृत अधिक संक्रामक और घातक होंगे। संभव है कि वे पुराने वैक्सीन से काबू में ना आएं। अब सचमुच ऐसा होने लगा है। सर्वो में शामिल 88 फीसदी विशेषज्ञों ने कहा कि इन वैक्सीन को बेअसर करने वाले कोविड-19 के नए रूप तेजी से इसलिए सामने आ रहे है, क्योंकि बहुत से देशों में टीकाकरण की दर बहुत कम है। यानी जब तक हम पूरा टीकाकरण नहीं करते, तब तक वायरस के नए रूपों के लिए मैदान खुला छोड़ रखा गया है।

सर्वे में विशेषज्ञों ने ध्यान दिलाया कि अभी जिन वैक्सीन का उपयोग हो रहा है, उनमें मुताबिक फाइजर/बायोएनटेक और मॉडेरना कंपनियों ने ही ऐसी तकनीक का उपयोग किया है, जिससे उनके वैक्सीन वायरस के नए रूपों से भी बचाव कर सकते हैं। लेकिन उनके वैक्सीन महंगे हैं और उनका रखरखाव भी गरीब देशों के वश में नहीं है। इन वैक्सीन को अत्यंत निम्न तापमान पर रखना पड़ता है। ये सर्वो गैर-सरकारी पीपुल्स वैक्सीन एलायंस ने किया । ये एलांयस बनाने वालों संगठनों में एमनेस्टी इंटरनेशनल, ऑक्सफेम और यूएनऐड्स शामिल हैं। सर्वे 28 देशों के 77 विशेषज्ञ शामिल हुए। उनमें से लगभग दो तिहाई ने कहा कि मौजूदा वैक्सीन एक साल तक प्रभावी रहेंगे। जबकि एक तिहाई विशेषज्ञों की राय है कि ये वैक्सीन सिर्फ नौ महीनों या उससे भी कम समय तक कारगर रहेंगे। इसका निष्कर्ष यह है कि कोरोना वायरस जैसी महामारियों से लड़ाई वैश्विक है। ऐसे मामलों में पूरी दुनिया एक नाव पर सवार है। यानी बचेंगे तो सभी और नहीं तो फिर कोई नहीं ! इस निष्कर्ष से दुनिया ने सबक नहीं लिया, तो फिर सबको डूबने के लिए तैयार रहना चाहिए।

जहां तक भारत का सवाल है तो देश में 22 मार्च से 28 मार्च वाले सप्ताह में 3.9 लाख नए केस सामने आए, जो कि पिछले साल अक्टूबर के बाद सबसे ज्यादा है। सक्रिय मामलों की संख्या 5 लाख के पास पहुंच गई है। यानी किसी नजरिए से देखें, तो हालत बिगड़ रही है। मुश्किल यह है कि इस बार सरकारों के पास इससे निपटने के कदम उठाने का साहस भी कम है। पिछले लॉकडाउन ने देश और आम लोगों की ऐसी कमर तोड़ दी है कि अब अगर वैसा कदम उठाया गया, तो देश में सीधी भुखमरी देखने को मिल सकती है। चिंताजनक बात यह भी है कि इस बार मामलों का प्रसार छोटे कस्बों में ज्यादा है। यानी देश के आम जन के सामने एक अजीब सी दुविधा पैदा हो गई है। दुविधा यह है कि भूख से मरें या कोरोना से !

ऐसी खबर है कि सबसे ज्यादा पीड़ित राज्य महाराष्ट्र की सरकार पूरे राज्य में लॉकडाउन लगाने की तैयारी कर रही है। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने ये बात सही कही है कि लोग नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं। लोग दिशा-निर्देशों को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं और इसकी वजह से कोरोना के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। लेकिन सवाल यह भी है कि अगर लॉकडाउन लागू हुआ, तो उस दौरान लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी को सपोर्ट करने के लिए सरकारों के पास क्या तैयारी है ? बहरहाल, ये बात समंझना मुश्किल है कि लोग वायरस को लेकर इतने लापरवाह हो गए हैं ? जिन लोगों ने पिछले साल खुद को घरों में कैद कर लिया था, वे अब कोरोना के सामान्य नियमों का भी पालन क्यों नहीं कर रहे हैं ?

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