हास्य पर कर नहीं लगाया जा सकता

0
1108

आम आदमी आक्रामक हालात में भी अपने हास्य के माद्दे से जीवित रह सकता है। कोई भी व्यवस्था लाख प्रयास करने के बाद भी हास्य का माद्दा छीन नहीं पाती। इस दौलत पर कोई कर भी नहीं लगाया जा सकता। एक बार हास्य कलाकार आई.एस.जौहर के घर आयकर विभाग ने छापा मारा तो उन्होंने, उनसे कहा कि सारा धन एक अलमारी में रखा है और वे पूरा सहयोग करेंगे।

उन्होंने अफसर के सामने फोन पर अपनी बात दोहराई और खाने-पीने का ऑर्डर भी दिया। उस अलमारी को खोलने पर उसमें किताबें मिलीं, जिनमें से कुछ पी.जी वुडहाउस और ए.जी गार्डनर की लिखी हुई थीं। चार्ली चैपलिन के स्थिर चित्र भी थे। ज्ञातव्य है कि आई. एस. जौहर अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए थे। एक हॉलीवुड फिल्म में उन्होंने चरित्र भूमिका अभिनीत की थी।

फिल्म की सफलता मनाने के लिए आयोजित उत्सव में बातूनी उद्घोषक ने उन्हें भारत का चार्ली चैपलिन कह दिया। अपने धन्यवाद भाषण में जौहर ने कहा कि वे जुड़वा हमशक्ल जन्मे थे। वे परीक्षा पास करते और आलसी मक्कार भाई प्रमाण पत्र ले जाता था। इन्होंने प्रेम किया और जुड़वा भाई दुल्हनिया ले गया। इस किस्से के आखिरी भाग में जौहर ने कहा कि एक दिन उन्होंने जुड़वा से बदला यूं लिया कि मरने का ढोंग किया और लोग उसके भाई को दफन कर आए।

भव्य फिल्मों की पैरोडी फिल्में जौहर बनाते रहे। राज कपूर की ‘मेरा नाम जोकर’ के बाद जौहर की हास्य फिल्म का नाम था ‘मेरा नाम जौहर’ एक बार उनकी फिल्म की शूटिंग चल रही थी और वे स्टूडियो में दूर होटल में बीयर पी रहे थे। किसी के द्वारा उनसे सवाल करने पर कि आप यहां तो उन्होंने ठहाका लगाते हुए कहा कि किस मूर्ख ने कहा कि निर्देशक को हमेशा सेट पर मौजूद होना चाहिए।

फिल्में लेखक और संपादन की टेबल पर बनाई जाती है। हमारे सिनेमा में हास्य कलाकारों की परंपरा रही है, मुकरी, आगा, देवेन वर्मा और जॉनी वॉकर इत्यादि ने व एक दौर में अमिताभ बच्चन ने भी हास्य भूमिकाएं अभिनीत की हैं। मनमोहन देसाई ने अपनी फिल्मों में उनकी प्रतिभा को जमकर प्रस्तुत किया। आक्रोश की मुद्रा में हास्य का तड़का लगाया।

फिल्मकार बिमल रॉय के सबसे करीबी मित्र हास्य कलाकार असित सेन रहे, जैसे गुरुदत्त की मित्रता जॉनी वॉकर से रही। बादशाह अकबर के नौ रत्नों में विद्वान बीरबल रहे और दक्षिण भारत के दरबार में तेनालीराम रहे हैं। वर्तमान व्यवस्था हास्य को अनावश्यक मानती है। होली पर टीवी कार्यक्रम ‘भाभी जी घर पर हैं’ में दो लठेत हुड़दंगी होली खेलने वालों की डंडे से पिटाई करते हैं।

इस समय महामारी के कारण रंग का उत्सव मनाया नहीं जा रहा परंतु लठेत हुड़दंगी पहले से ही आतंक करते रहे हैं। हास्य में व्यंग्य का तड़का लगा रहता है। इस विधा के समकालीन महान रचनाधर्मी हरिशंकर परसाई और शरद जोशी हुए हैं। गौरतलब है कि साधनहीन वर्ग के पास हास्य का माद्दा अधिक रहा है साधन संपन्न व्यक्ति के पास हास्य के लिए समय नहीं होता और उसे यह पसंद नहीं है। सत्तासीन व्यक्ति को इससे कोफ्त है।

वेदव्यास की महाभारत में भीम एक उद्दंड अहंकारी को श्राप देते हैं कि सारी उम्र वह शौच करता रहेगा और प्राण भी उसी मार्ग से निकलेंगे। यह भीम का हास्य है। श्रीलाल शुक्ल का उपन्यास ‘राग दरबारी’ वर्तमान की महाभारत है, जिसे व्यंग्य शैली में लिखा गया है।

विषम हालात में नैराश्य को भगाने के लिए आज भी, पी.जी वुडहाउस की रचनाओं को पढ़ा जाता है। उनका हास्य, लाइलाज रोग का भी इलाज कर सकता है। सुबह की सैर करने वाले सामूहिक ठहाका लगाते हैं और इससे थके-हारे फेफड़ों को ऊर्जा मिलती है। विचार प्रक्रिया में हास्य की स्वाभाविक मौजूदगी सदैव बहती नदिया है, जबरन ठहाका नदी में उभर आई चट्टान की तरह होता है। आतिश कपाड़िया रचित, सतीश शाह, रत्ना पाठक शाह अभिनीत ‘साराभाई वर्सेस साराभाई’ कालातीत रचना है।

जयप्रकाश चौकसे
(लेखक फिल्म समीक्षक हैं ये उनके निजी विचार हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here