निवेश व उपभोग का बढ़ना भी जरूरी

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इस साल के लिए जीडीपी ग्रोथ का अनुमान -8% है, जो चौथी तिमाही में नकारात्मक वृद्धि की ओर इशारा करता है। यह चिंताजनक है क्योंकि अर्थव्यवस्था के बढ़ने और तीसरी तिमाही में वृद्धि 0.4% रहने के बाद उम्मीद थी कि चौथी तिमाही में तेजी आएगी। चिंता के 2 कारण हैं। पहला, विभिन्न राज्य संक्रमण के नए मामलों के चलते लॉकडाउन की घोषणा कर रहे हैं, जिनका चौथी तिमाही की धीमी वृद्धि की गणना में ध्यान रखा गया।

दूसरा, इस नकारात्मक वृद्धि का बड़ा कारण ‘कुल कर’ घटक में तेज गिरावट है, क्योंकि ग्राॅस वैल्यू ऐडेड (GVA) के 2.5% बढ़ने की उम्मीद है। इसका मतलब है कि टैक्स कलेक्शन पर दबाव बना रहेगा। वित्तीय वर्ष 2020-21 में उपभोग और निवेश दोनों में गिरावट रही है, जो वृद्धि के 2 साधन हैं। गिरावट क्रमश: 6% और 10.6% है। इसे बदलना होगा। तीसरी तिमाही में निवेश और उपभोग में सकारात्मक वृद्धि दिखी, हालांकि उपभोग 1% ही बढ़ा।

निवेश में बढ़ोतरी हुई क्योंकि केंद्र सरकार ने बजट के अनुसार पूंजीगत व्यय बनाए रखा। ज्यादातर उद्योगों में अतिरिक्त क्षमता और इंफ्रास्ट्रक्चर पर सीमित गति से खर्च के कारण निजी निवेश नहीं बढ़ा। NPA पर चिंतिंत बैंकों की निवेश के लिए कर्ज देने की अनिच्छा भी एक कारण है। बड़ी चिंता उपभोग है, क्योंकि इस तिमाही में 1% की वृद्धि दबी मांग की अवधारणा पर सवाल उठाती है।

ऐसी उम्मीद थी कि सितंबर तक अर्थव्यवस्था काफी खुल चुकी थी और त्योहारी मौसम के कारण शहरी व ग्रामीण परिवारों में मांग बढ़ेगी। कृषि उत्पादन के दूसरे अग्रिम अनुमान के मुताबिक, ज्यादातर फसलों की उपज इस साल सर्वोच्च स्तर पर पहुंचेगी। इस तरह, खरीफ फसल के कारण किसानों द्वारा ज्यादा व्यय होना चाहिए, हालांकि ऐसा इस साल हुआ नहीं।

उधर परिवार के मामले में शुरुआत में व्यय में बढ़ोतरी हुई, लेकिन यह बरकरार नहीं रही। आखिरी तिमाही में भी इसके बढ़ने की खासी उम्मीद नहीं है। इसी संदर्भ में 1 फरवरी को आए बजट को देखना चाहिए। क्या इसने उपभोग बढ़ाने के लिए कुछ किया? जवाब है कुछ खास नहीं क्योंकि व्यय के लिए टैक्स इंसेंटिव नहीं दिए गए, इसीलिए भविष्य में व्यय की बढ़ोतरी 2 कारकों पर निर्भर होगी।

पहला, ज्यादा नौकरियां पैदा करना, ताकि लोगों के पास खर्च करने को पैसा हो। दूसरा, भारतीय कंपनियों की आय पहले जितनी होना क्योंकि कई कंपनियों ने लॉकडाउन के दौरान वेतन कटौती की, जिसे वापस नहीं लिया गया। जहां आईटी, फार्मा, एफएमसीजी जैसे उद्योगों ने पुराने वेतन की बहाली पर काम किया, लेकिन ऐसा सभी उद्योगों में नहीं हुआ। वृद्धि के लिए अगले वित्त वर्ष में ऐसा होना जरूरी है।

वित्त वर्ष 2021-22 निश्चित तौर पर वृद्धि के मामले में बेहतर होगा, लेकिन ऐसा नकारात्मक बेस इफेक्ट के कारण ज्यादा होगा। जीडीपी वृद्धि वित्तीय वर्ष 2020-21 में 8% गिर गई है और इसमें होने वाली कोई भी वृद्धि आकंड़ों के हिसाब के अच्छी लगेगी। लेकिन जरूरी नहीं कि इससे नौकरियां पैदा हों। उदाहरण के लिए वित्तीय वर्ष 2019-20 में यह 145.7 लाख करोड़ रु. थी, जो वित्तीय वर्ष 2020-21 में गिरकर 134.1 लाख करोड़ हो जाएगी।

अब अगर वित्तीय वर्ष 2021-22 में वृद्धि 10% रहती है, तो यह 147.5 लाख करोड़ रु. पर पहुंचेगी, जो वित्तीय वर्ष 2019-20 पर 1.2% की वृद्धि है। इस तरह वित्तीय वर्ष 2021-22 आंकड़ों में तो बेहतर वर्ष होगा, लेकिन जरूरी नहीं कि तेज वृद्धि के लिए जरूरी उच्च उपभोग व निवेश भी हो। इस सबके बीच बैंकिंग व्यवस्था स्थिर बनी रहेगी।

बैंक अब भी इसे लेकर अनिश्चित हैं कि इस साल उनका पोर्टफोलियो कैसा रहेगा। आरबीआई की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट कहती है कि अत्यधिक तनाव वाली परिस्थिति में एनपीए 13-14% तक बढ़ सकते हैं। वित्तीय वर्ष 2021-22 की शुरुआत में यह चीज सही होना चाहिए क्योंकि जब अर्थव्यव्सथा धीरे-धीरे इस नकारात्मक वृद्धि के सिंड्रोम से बाहर निकलेगी, तब वित्त की जरूरत होगी और बैंकों को उद्योग तथा सेवाओं के लिए कर्ज देने को ज्यादा तैयार रहना होगा।

इसीलिए, जीडीपी के आंकड़े उम्मीद जगाने वाले हैं लेकिन इन्हें सावधानी से समझना चाहिए क्योंकि बेशक अर्थव्यवस्था आगे बढ़ रही है, लेकिन उपभोग और निवेश जैसे अन्य तत्वों के माध्यम से संतुलन बनाए रखना होगा, साथ ही बैंकिंग क्षेत्र को जरूरी मदद देनी होगी।

मदन सबनवीस
(लेखक चीफ इकोनॉमिस्ट, केयर रेटिंग्स हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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