इस शुक्रवार को शाम 6.45 पर, टी-1 सी-2 अपने 5.11 हेक्टेयर के विशाल बाड़े के दरवाजे से निकलकर अपनी मां के बिना जंगल में गई। उसके पीछे वन अधिकारियों ने नम आंखों से बाड़े का दरवाज़ा बंद किया, क्योंकि वह अब अपने पुराने घर में दोबारा वापस नहीं आ सकती, जहां उसने दो सालों से ज्यादा फिर से जंगल के माहौल में ढलने के सबक सीखे। उसने किसी इंसानी पदचाप के बिना अपने लिए खुद शिकार करना सीखा। अब पेंच टाइगर रिज़र्व का जंगल ही उसका नया घर होगा, जहां शुक्रवार को उसने प्रवेश किया। वहां वह अपने भाई टी-1 सी-1 से शायद मिले या नहीं भी, अवनि नाम से प्रसिद्ध अपनी मां आदमखोर बाघिन टी-1 के मरने के बाद से वह गायब है। शावक से वयस्क बाघिन तक का बदलाव, अपनी जिंदगी खुद जीने की इस यात्रा को देखकर मुझे मेरी पहली नागपुर से बॉम्बे तक की ट्रेन यात्रा याद आ गई, जिसे मैंने अकेले करने की जिद की थी। प्लेटफॉर्म पर खड़ी मेरी मां, मेरा हाथ पकड़े हुए खिड़की से एक आखिरी सलाह दे रही थीं। उसकी सलाह से चिढ़कर मैंने कहा, ‘मुझे पता है आप मुझे ये सब पहले ही कई बार बता चुकी हैं।’ उसकी आंखें चारों ओर देख रही थीं ताकि सहयात्रियों को बता सकें कि उसका बेटा अकेला यात्रा कर रहा है, पर मेरे डर से उसकी हिम्मत नहीं हुई।
ट्रेन छूटने ही वाली थी और मां ने बड़बड़ाना शुरू कर दिया, ‘मुझे समझ नहीं आता कि हर बार जरूरी वक्त पर तुम्हारे पिता कहां गायब हो जाते हैं।’ वह अचानक सामने आ गए और कहा ‘अगर तुम्हें डर लगे, तो यह तुम्हारे लिए है’ और धीरे से मेरी शर्ट की जेब में कुछ रख दिया। वहां सिर्फ ओके-ओके बोलने का ही समय था और ट्रेन की एक लंबी सीटी के साथ मेरा पुराना घर छूट रहा था, तब मुझे नहीं पता था कि मैं इसे देखने कभी नहीं लौटूंगा। मैं अकेला बैठा खिड़की से बाहर गुजरते दृश्य देख रहा था। चारों ओर धक्का-मुक्की करते अनजान लोग थे। अगला स्टेशन अजनी पांच मिनट में आ गया। जैसे ही लोगों ने डिब्बे से उतरना- चढऩा शुरू किया, मुझे महसूस होने लगा कि मैं अकेला हूं और अपने सामान की सुरक्षा करने की जरूरत है। मेरी नजरें वहां बैठे दूसरे लोगों की तुलना में अपने बैग पर बार-बार जा रही थीं। जैसे ही मैं अपनी सीट पर वापस आया, एक बुजुर्ग ने मुझे देखकर दुखी-सा मुंह बनाया और मैं ज्यादा असहज हो गया। मैंने खिड़की की दो रॉड के बीच अपनी आंखें सटा दीं। मैं रोया, लेकिन दूसरों को लगा कि यह कोयले के कणों के कारण है। तभी मुझे याद आया कि पिता ने जेब में कुछ रखा था। ठीक इसी तरह मुझे उम्मीद है कि किसी दिन टी1 सी-2 अपने भाई सी-1 से मिले, जो उसे अकेले जीवन जीने का आत्मविश्वास दे।
फंडा यह है कि आपके बच्चे सिर्फ आपके नहीं है, इस दुनिया को और खूबसूरत बनाने के लिए ये आपसे जन्मे हैं। उस लक्ष्य को पाने में उनकी मदद करें। कायदे मत तोड़ो: जब भी मैं एयरपोर्ट की स्क्रीनिंग मशीन में नियमित सुरक्षा जांच के लिए प्रवेश करता हूं, तो उस आदमी को जरूर कोसता हूं, जो बेंगलुरु में दो साल पहले बेल्ट में सिली गई जेब में कुछ प्रतिबंधित सामग्री लेकर जा रहा था। तब से सभी एयरपोर्ट पर सुरक्षा जांच में बेल्ट निकालना अनिवार्य कर दिया गया। मुझे यह तब याद आया, जब मुंबई पुलिस ने ओला, उबर जैसी आधुनिक ट्रांसपोर्ट कंपनियों और जोमैटो व स्वीगी जैसी फूड डिलिवरी कंपनियों पर 3.6 करोड़ रुपए के ई-चालान न भरने के कारण सख्ती का फैसला लिया। कुछ को छोड़कर, ऐसी ज्यादातर कंपनियां यह सोचकर अपने डिलिवरी पार्टनर्स को प्रशिक्षण नहीं देतीं कि न तो गाड़ी उनकी है और न ही गाड़ी चलाने वाले उनके कर्मचारी हैं। यकीन मानिए, अगर किसी भी कंपनी का ऐसा बेपरवाह रवैया रहता है, तो भविष्य में उन्हें ऐसे नियमों का सामना करना ही होगा, जो कंपनी के पूरे काम को प्रभावित कर सकते हैं।
भले ही वे 30 सेकंड के लिए रुकें। देश ने गाडिय़ों के प्रदूषण के कारण होने वाली सालाना 40 हजार मौतों को गंभीरता से लिया है। कार के इंजन को 30 सेकंड के लिए चालू छोडऩे पर 48.3 मिलीग्राम कार्बन डायऑक्साइड पैदा होती है, जबकि इंजन बंद करके, 30 सेकंड में फिर चालू करने से 27.3 मिलीग्राम सीओटू पैदा होती है। ऐसे ड्राइवर, जो दुकान से कुछ सामान लेने के लिए यूं ही गाड़ी चालू छोड़ जाते हैं, उन्हें लंदन के कुछ हिस्सों में 80 पाउंड तक जुर्माना देना होगा। उत्सर्जन कम करने के लिए इंजन के फिजूल चालू रहने पर काफी ध्यान दिया जा रहा है। कई नई कारों में स्टॉप स्ट्रीट टेक्नोलॉजी इस्तेमाल की जा रही है, जिसमें गाड़ी खड़ी रहने पर इंजन अपने आप बंद हो जाता है। यूके इस तकनीक को बढ़ाने में गंभीरता से काम कर रहा है। फंडा यह है कि आधुनिकीकरण का यह अर्थ नहीं है कि देश के नियम तोड़े जाएं। आप कायदों को जितना तोड़ेंगे, दुनिया उतनी ही सख्त कानूनों और गैरजरूरी असुविधाओं की ओर बढ़ेगी।
एन. रघुरामन
(लेखक मैनेजमेंट गुरु हैं ये उनके निजी विचार हैं)