सभ्य समाज पर दाग

0
282

भले ही हम चांद व मंगल पर दुनिया बसाने के लिए प्रयासरत हों और इस वैज्ञानिक युग में नई-नई टेक्नालोजी को अपना रहे हों, लेकिन सदियों से चला आ रहा नारियों के प्रति दहेज उत्पीडऩ एक सभ्य व विकसित समाज को खोखला कर रहा है। जब घरेलू हिंसा का शिकार आयशा जैसी शिक्षित महिला दहेज उत्पीडऩ से आहत होकर जिंदगी छोडऩे का फैसला करले तो इस सय समाज को शर्मसार होना पड़ता है। शान से जीने वाले दहेज दानव आरिफ खान यदि प्रतिबंधित नहीं किया जाता तो न जाने कितनी आयशा इस दुनिया को अलविदा कह जाती हैं। ये सभ्य और विकसित कहलाने वाला समाज कुछ दिन शौक में रहकर फिर अपनी पटरी पर लौट आता है। कभी किसी ने इसका स्थाई इलाज नहीं किया। जिससे दहेज रूपी दानव का नाश किया जा सके। अहमदाबाद के टेलर लियाकत की बेटी आयशा के आत्महत्या की कहानी इस सय समाज के लिए सवाल छोड़ गई। जो लोग बेटियों का पालन बेटों की तरह करते हैं, उन्हें आला तालीम दिलाते हैं, लेकिन यदि इस तरह की घटनाएं समाज में घट जाए तो मां-बाप बेटियों के बारे में सोचेंगे।

इस तरह की घटना सरकार के उस अभियान को ठेस पहुंचाती है जिसमें बेटियों के जन्म से लेकर पढ़ाने तक का अभियान चलाया। आयशा जो अपने पति आरिफ खान से एकतरफ मुहब्बत करती थी, वह उसकी इच्छाओं की खातिर दुनिया को अलविदा कह गई। आयशा मरने से पहले वह वीडियो जिसमें अपनी मौत का कुसूरवार किसी को नहीं ठहराती बल्कि उसका वीडियो बनाने का मकसद केवल अपने बेमुरव्वत पति को पुलिस से बचाना था। उसके ये भावुक वाय कि मैं जो कुछ भी करने जा रही हूं, मेरी मर्जी से करने जा रही हूं। इसमें किसी का दबाव नहीं है, अब बस या कहें? ये समझ लीजिए कि खुदा की दी जिंदगी इतनी ही थी और मुझे इतनी जिंदगी बहुत सुकून वाली मिली। और डैड, कब तक लड़ोगे? केस विड्रॉल कर लीजिए। आयशा लड़ाइयों के लिए नहीं बनी है। और आरिफ से तो प्यार करते हैं, उसे परेशान थोड़ी न करेंगे। अगर उसे आजादी चाहिए तो ठीक है वो आजाद रहे। चलो अपनी जिंदगी तो यहीं तक है। मैं खुश हूं कि अल्लाह से मिलूंगी और उनसे कहूंगी कि मेरे से गलती कहां रह गई? मां-बाप बहुत अच्छे मिले, दोस्त बहुत अच्छे मिले, लेकिन कहीं कोई कमी मेरे से ही रह गई।

अल्लाह से दुआ करती हूं कि दोबारा इंसानों की शल न दिखाए।’ इस बात की ओर संकेत कर रहा है कि आज भी इस सय विकसित समाज को आरिफ जैसे भेडि़ए दुषित कर रहे हैं। इंसान जिसको सर्वधर्म में श्रेष्ठ प्राणी कहा गया वह इतना स्वार्थी हो गया है कि उनके कारण आयशा जैसी अबलाएं मरने के बाद भी इंसानों का मुंह नहीं देखना चाहती है। पति व ससुरालियों के व्यवहार के कारण आयशा की सोच इंसानों के प्रति नकारात्मक हो गई। शादी के लगभग तीन वर्ष तक ससुरालियों विशेषकर अपने पति का अत्याचार सहने वाली आयशा का धैर्य भले ही जवाब दे गया हो लेकिन मरने तक उसकी जबान पर किसी के लिए अपशब्द नहीं थे। उसे आत्मग्लानि थी तो केवल अपने आपसे जो इन हालात के लिए केवल अपने को दोषी ठहरा रही थी। आयशा के लिए पति ने हालात ऐसे पैदा कर दिए थे कि उसे जिंदगी से अच्छी मौत लगने लगी थी। फिर से कोई आयशा ऐसा कदम न उठाए इसके लिए इस सभ्य व विकसित समाज को जागृत होकर सरकार के अभियान में सहयोग करना होगा ताकि सरकार का बेटी बचाओबेटी पढ़ाओ का नारा फलीभूत हो।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here