अंग्रेजी : लोकतंत्र बना जादू – टोना इस चाल से पड़ेगा बहुत खोना

0
338

स्वतंत्र भारत को अंग्रेजी ने कैसे अपना गुलाम बना रखा है, इसका पता मुझे आज इंदौर में चला। इंदौर के प्रमुख अखबारों के मुखपृष्ठों पर आज खास खबर यह छपी है कि कोरोना का टीका लगवाने के लिए 8600 सफाईकर्मी लोगों को संदेश भेजे गए थे लेकिन उनमें से सिर्फ 1651 ही पहुंचे। बाकी को समझ में ही नहीं आया कि वह संदेश क्या था ? ऐसा क्यों हुआ? क्योंकि वह संदेश अंग्रेजी में था। अंग्रेजी की इस मेहरबानी के कारण पांच टीका-केंद्रों पर एक भी आदमी नहीं पहुंचा। भोपाल में भी मुश्किल से 40 प्रतिशत लोग ही टीका लगवाने पहुंच सके। कोरोना का टीका तो जीवन-मरण का सवाल है, वह भी अंग्रेजी के वर्चस्व के कारण देश के 80-90 प्रतिशत लोगों को वंचित कर रहा है तो जरा सोचिए कि जो जीवन-मरण की तात्कालिक चुनौती नहीं बनते हैं, ऐसे महत्वपूर्ण मसले अंग्रेजी के कारण कितने लोगों का कितना नुकसान करते होंगे?

देश की संसद, अदालतें, सरकारें, नौकरशाही, अस्पताल और उच्च-शिक्षण संस्थाएं अपने सारे काम प्राय: अंग्रेजी में करती हैं। उन्होंने आजादी के 74 साल बाद भी भारतीय लोकतंत्र को जादू-टोना बना रखा है। भारत में ही अंग्रेजी ने एक फर्जी भारत खड़ा कर रखा है। यह फर्जी भारत नकली तो है ही, नकलची भी है, ब्रिटेन और अमेरिका की नकल करनेवाला। यह देश के 10-15 प्रतिशत मुट्टीभर लोगों के हाथ का खिलौना बन गया है। ये लोग कौन हैं ? ये शहरी हैं, ऊंची जाति के हैं, संपन्न हैं, शिक्षित हैं। इनके भारत का नाम ‘इंडिया’ है। एक भारत में दो भारत हैं। जिस भारत में 100 करोड़ से ज्यादा लोग रहते हैं, वह विपन्न, अल्प-शिक्षित है, पिछड़ा है, ग्रामीण है, श्रमजीवी है। भारत में आज तक बनी किसी सरकार ने इस सड़ी-गली गुलाम व्यवस्था को बदलने का दृढ़ संकल्प नहीं दिखाया।

आज भी ज्यों का त्यों चल रहा है। इस संदर्भ में नरेंद्र मोदी को पहली बार मैंने यह कहते सुना है कि हर प्रदेश में एक मेडिकल कॉलेज और एक तकनीकी कॉलेज उसकी अपनी भाषा में क्यों नहीं हो सकता ? यह ठीक है कि असम की जनता के वोट पटाने के लिए मोदी ने यह गोली उछाली है कि ‘असमिया भाषा में डॉक्टरी की पढ़ाई क्यों नहीं हो सकती?’ कोई नेता अपनी स्वार्थ-सिद्धि के लिए ही सही, यदि कोई देशहितकारी बात करे तो उसे शाबाशी देने में हमें संकोच क्यों होना चाहिए ? अपने पूर्व स्वास्थ्य मंत्री जे.प्र. नड्डा और वर्तमान स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्द्धन ने मुझसे कई बार वादा किया कि वे मेडिकल की पढ़ाई हिंदी में शुरु करेंगे लेकिन अब तो उनके नेताजी ने भी घोषणा कर दी है। अब देर क्यों ?

डा. वेदप्रताप वैदिक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here