गुस्सा से होता है नुकसान

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क्रोध की वजह से ऋषि मुनियों के पुण्य भी प्रभावहीन हो जाते हैं। क्रोधी इंसान की मदद भगवान भी नहीं करते हैं। इसीलिए गुस्से से बचना चाहिए। गुस्सा हमारी सोचने-समझने की शति खत्म कर देता है। इससे बचेंगे तो जीवन में सुख-शांति बनी रहेगी। इस विषय में एक प्रसंग यूं है कि राजा अंबरीश ने एकादशी पर ऋषि दुर्वासा को भोजन पर आमंत्रित किया, लेकिन दुर्वासा को आने में देर हो गई तो अंबरीश ने पानी पी लिया, इस वजह से ऋषि बहुत गुस्सा हो गए। पुराने समय में अंबरीष नाम के एक राजा थे। वे भगवान विष्णु के परम भत थे। एक दिन उन्होंने एकादशी का व्रत किया। राजा के राज्य में ऋषि दुर्वासा आए हुए थे। राजा ने ऋषि को अपने यहां भोजन के लिए आमंत्रित किया। उस समय एकादशी पर ब्राह्मण को भोजन कराने के बाद ही व्रत करने वाला खाना खाता था। ऋषि दुर्वासा ने राजा अंबरीश से कहा कि मैं स्नान करके आता हूं, उसके बाद भोजन करूंगा। राजा ऋषि का इंतजार करने लगाए लेकिन उन्हें आने देर हो रही थी और एकादशी पर पारण करने का मुहूर्त बीत रहा था। तब राजा के कुलगुरु ने कहा कि आप तुलसी के पत्तें के जल ग्रहण कर लें, इससे व्रत का पारण भी हो जाएगा और ऋषि दुर्वासा से पहले भोजन करने का पाप भी नहीं लगेगा। गुरु का बात मानकर राजा अंबरीश ने तुलसी दल के साथ पानी पी लिया। जब ऋषि दुर्वासा वहां पहुंचे तो उन्हें मालूम हो गया कि राजा ने अकेले ही व्रत का पारण कर लिया है। इससे ऋषि क्रोधित हो गए। उन्होंने अपने तप बल से एक राक्षस को प्रकट किया और राजा अंबरीश को मारने का आदेश दे दिया। विष्णु जी ने राजा अंबरीश की रक्षा में सुदर्शन चक्र छोड़ रखा था। सुदर्शन चक्र ने उस राक्षस को मार दिया और ऋषि दुर्वासा के पीछे लग गया। ऋषि दुर्वासा अपने प्राण बचाने के लिए ब्रह्माजी, शिवजी और इंद्र के पास पहुंचे, लेकिन सभी ने कहा कि वे सुदर्शन चक्र से उनकी रक्षा नहीं कर सकते हैं। तब ऋषि भगवान विष्णु के पास पहुंचे। विष्णु जी ने कहा कि मैं तो खुद भतों के अधीन हूं। आपको राजा अंबरीश के पास ही जाना चाहिए, वे आपके प्राण बचा सकते हैं। ऋषि दुर्वासा तुरंत ही राजा अंबरीश के पास पहुंचे और क्षमा मांगी। तब राजा ने दुर्वासा के पैर छुए और सुदर्शन चक्र शांत हो गया।

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