अब आतंक पर होना चाहिए मिला-जुला हमला

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पेरिस स्थित 37 देशों के ‘वित्तीय अनुशासन कार्रवाई संगठन’ (एफएटीएफ) ने पाकिस्तान का नाम अपनी काली सूची में नहीं जोड़ा है लेकिन उसका नाम ‘भूरी सूची’ में पहले से है। इस संगठन ने पाकिस्तान को चेतावनी दी है कि यदि वह अपने आतंकवादी गिरोहों पर काबू नहीं करेगा तो उसे काली सूची में डाल दिया जाएगा। याने उसे विदेशों से मिलने वाली आर्थिक सहायता पर रोक लग सकती है और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा-कोष जैसी संस्थाएं उसे कर्ज देने से मना कर सकती हैं। उसकी बैंको के कारोबार पर भी कई प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। इस संगठन ने पाकिस्तान को मई 2019 तक का समय दिया है।

कुछ इसी तरह की हिदायतें सुरक्षा परिषद के 1267 वें प्रस्ताव में पाकिस्तान को दी गई हैं। सुरक्षा परिषद के सभी सदस्यों के संयुक्त वक्तव्य में पुलवामा हत्याकांड की निंदा की गई है। इन अंतरराष्ट्रीय कदमों का असर पाकिस्तान पर पड़ा जरुर है। उसने जैशे-मुहम्मद के बहावलपुर स्थित मदरसे को अपने कब्जे में ले लिया है और हाफिज सईद के संगठनों पर दुबारा प्रतिबंध लगा दिए हैं लेकिन ये सारे काम कोरी खानापूरी की तरह हैं। आतंकवादी गिरोहों के खिलाफ प्रधानमंत्री इमरान खान भारत से प्रमाण मांग रहे हैं।

पुलवामा में हुए हत्याकांड के भी ठोस प्रमाण उन्हें चाहिए कि जिससे यह सिद्ध होता हो कि वह पाकिस्तान ने करवाया है। मानो कि पाकिस्तान सरकार ने उसे नहीं करवाया है तो भी उसका फर्ज क्या है ? कोई इमरान से पूछे कि आतंकवादियों को, उनके ठिकानों को, उनके मददगारों को, उनके धन के स्त्रोतों को पाकिस्तान की सरकार और फौज से ज्यादा कौन जानता है ? भारत या पाकिस्तान ? मोदी या इमरान ? इमरान को खुद प्रमाण हाजिर करना चाहिए और उन्हें मोदी को बताकर आतंकियों पर संयुक्त हमला बोलना चाहिए। तभी पाकिस्तान को वह ‘नए पाकिस्तान’ में बदल सकते हैं।

दहशतगर्दी जितनी भारत की दुश्मन है, उससे ज्यादा पाकिस्तान की है। भारत इतना मजबूत है कि आतंकवाद हजार साल में भी उसका बाल भी बांका नहीं कर सकता जबकि पाकिस्तान को वह समूचा निगल सकता है। पुलवामा-कांड में दुनिया के राष्ट्र पाकिस्तान का नाम नहीं ले रहे हैं लेकिन उनका इशारा साफ है। इसके पहले कि पहले से आर्थिक संकट में फंसे पाकिस्तान की ज्यादा दुर्गति हो, इमरान खान को चाहिए कि वे आगे बढ़कर भारत के साथ सहयोग करें और आतंकवाद की जड़ों को मट्ठा पिलाएं।

   डा. वेद प्रताप वैदिक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है।)

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