अफसरों की कार्यशैली पर सवाल

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गाजियबाद के मुरादनगर में मानवता को झकझोर देने वाला हादसा कई सवालों को जन्म दे रहा है। लगभग 25 लोगों की मौत व दो दर्जन से अधिक लोगों के घायल होने वाले हादसे को भले ही राज्य सरकार ने गंभीरता से लिया हो, और दोषियों के खिलाफ सत कार्रवाई करने के निर्देश दिए हों लेकिन सवाल है पचपन लाख रुपये की लागत से निर्मित गैलरी महज दो महीने ही कैसे जवाब दे गई। या इसमें नाममात्र की ही सामग्री का प्रयोग किया गया? शेष निर्मित धनराशि का बंदरबांट हो गया? यह तो हो ही नहीं सकता कि पचपन लाख रुपये ईमानदारी से इस भवन में लगाए गए हों। राज्य सरकार को चाहिए कि इस निर्माण कार्य की बारीकी से जांच होनी चाहिए। दोषियों के खिलाफ सत कार्रवाई हो ताकि धर्म के काम में भी भ्रष्टाचार करने वाले आगे से यह प्रयास न कर सकें। भले ही यह हादसा हो लेकिन इसमें 25 लोगों की जान गई है। इनमें से अधिकांश ऐसे व्यति हैं जिन पर अपने परिवार के लालन-पालन की जिम्मेदारी थी।

अब उनके परिवारों का गुजारा कैसे होगा। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री ने हताहतों के लिए शोक और सहानुभूति बताई, यह तो ठीक है लेकिन उन्हें उनकी जिम्मेदारी का भी कुछ और भी एहसास होना चाहिए? वहीं सीएम योगी का मामले को गंभीरता से लेना और डीएम और कमिश्नर को भी नोटिस भेजना इस बात का संकेत है कि इस मामले में कोई कोताही नहीं करना चाहते। इसमें सारे दोषियों को सजा दिलाना चाहते हैं चाहे वह अदना या आला अधिकारी हो। उन्होंने पीडि़त परिवारों को दस लाख की आर्थिक मदद आवासीय सुविधा का आश्वासन देते हुए उनको सांत्वना देने का कार्य कर रहे है। श्मशान-घाट की वह छत मुरादनगर की नगर निगम ने बनवाई थी। सरकारी पैसे से बनी 55 लाख रु. की यह छत दो माह में ही ढह गई। इस छत के साथ-साथ हमारे नेताओं और अफसरों की इज्जत भी या पैंदे में नहीं बैठ गई? मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का दोषियों पर रासुका लगाने व नुकसान की भरपाई उन्हीं से करने के निर्देश सराहनीय है लेकिन हादसे संलिप्त आरोपितों की निजी संपत्ति की भी जांच होनी चाहिए, क्योंकि यदि भ्रष्टाचार को समाप्त करना है तो दोषी अधिकारियों पर सत सजा, पेंशन व भविष्य निधि की धनराशि के साथ उनकी निजी संपत्ति जब्त कर लेनी चाहिए। उनको नौकरी से निकालकर कम से कम दस-दस साल की सजा दी जाए ताकि दूसरे अधिकारी व पड़ौसी देश भी देख सकें कि भ्रष्टाचार करने वालों से सरकार कैसे पेश आती है।

इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि इस हादसे के पीडि़त परिवारों को सांत्वना या आर्थिक सहायता देने की बजाय प्रदेश की मुख्य विपक्षी पार्टी सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने गंदी व ओछी राजनीति करनी शुरू कर दी है। उनका ये कहना कितना संवेदनहीनता का प्रतीक है कि श्मशान घाट से भाजपा नेताओं का संबंध है। हादसे की दोषी राज्य सरकार है। उनके इस बयान से लग रहा है कि वह दु:खद हादसे पर भी राजनीति कर रहे हैं। जबकि होना तो ये चाहिए था कि सत्तारुढ पार्टी के अलावा विपक्षी पार्टियों के नेता घटना स्थल पर जाकर पीडि़तों को सहानुभूति देते और उनको आर्थिक मदद करते। लेकिन हो रहा इसके विपरीत, नेताओं के मुताबिक श्मशान घाट और मंदिर का संबंध भाजपा से जबकि मस्जिद, कब्रिस्तान की चाहरदिवारी दरगाहओं का संबंध सपा से है। कुछ नेताओं ने अपने स्वार्थ की खातिर धर्म व धर्मस्थलों को भी राजनीति में बांट दिया है। इस दु:खद समय इस तरह के बयान देते हुए नेताओं को शर्म भी नहीं आती।

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