केंद्र सरकार के तीन कानून को लेकर सरकार व किसानों के बीच आठवें दौर की निर्णायक वार्ता पूर्व की भांति अनिर्णनीत रही। सरकार की ओर से किसानों को सराकात्मक समाधान का भरोसा देते हुए अगली बैठक 8 जनवरी को होने वाली वार्ता में टल गई। जहां सरकार इन तीनों कानूनों के हर पहलू व हर बिंदू पर वार्ता करके किसानों को इन कानूनों का महत्व समझाना चाहती थी, वहीं, किसान भी इन कानूनों को रद कराने की अपनी मांग पर डटे रहे। इस दौरान गिरता तापमान व बारिश भी उनके उत्साह को कम करने में विफल है। 40 वें दिन भी किसानों की एक ही मांग है कि इन कानूनों रद करके फसलों की एमएसपी को कानूनी अमलीजामा पहनाया जाए। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का यह कहना कि सरकार के 2 नए कानूनों और एक संशोधन पर चर्चा हुई। हम लॉज के अनुसार चर्चा चाहते थे, इसपर बातचीत चलती रही। थोड़ी बहुत एमएसपी पर भी बात हुई। आज किसी निर्णय पर हम नहीं पहुंच सके हैं। किसानों के कानून वापस लेने पर अड़े रहने की वजह से कोई रास्ता नहीं निकल पाया। सरकार के प्रतिनिधियों को उमीद है कि आठ जनवरी की वार्ता में कुछ न कुछ नतीजा जरूर निकलेगा।
उधर किसान संगठन भी कानून रद होने तक घर जाने के मूंड में नहीं है। भाकियू नेता राकेश टिकैत का यह कहना कि कानून वापसी तक सड़क ही उनका घर होगा। इस बात की ओर संकेत है कि किसान किसी भी दशा में अपनी मांग से पीछे नहीं हटने वाले है। अव सवाल यह उठता है कि किसान संगठनों द्वारा प्रस्तावित किसान पखवाड़ा जो छह जनवरी से शुरू होना है या वह आयोजित होगा? इस आंदोलन में किसानों की जो शाहदत हो रही इै वह देश की जनता को चिंतित कर रही है। दो दिन पहले भी कुंडली बार्डर पर बारिश व ठंड के प्रकोप से चार किसान शहीद हो गए। उनकी शाहदत से भी सरकार नहीं पसीज रही है। हालांकि अच्छे वातावरण में शुरू हुई वार्ता में किसान प्रतिनिधियों के साथ केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर पीयूष गोयल व सोम प्रकाश ने शहीद किसानों को श्रद्धांजलि देकर किसानों को हमदर्दी का अहसास कराने का प्रयास किया। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का यह कहना कि 8 जनवरी की बैठक से सकारात्मक परिणाम निकलने की उमीद है। उनके वतव्य से लग रहा है कि आने वाली वार्ता में सरकार का प्रयास होगा कि किसानों के गतिरोध को कम करके इस समस्या का समाधान निकाल सके।
उधर किसान संगठन घोषणा कर चुके हैं कि वह गणतंत्र दिवस की परेड में तिरंगे व ट्रैक्टर लेकर शामिल होंगे। यदि सरकार नहीं झुकी तो किसान दो दिन बाद से ही किसान पखवाड़ा मनाना शुरू कर देंगे। जिसके तहत छह जनवरी को देश जागृति पखवाड़ा मनाया जाएगा। जिसमें किसानों को इन कानून के दोष बताकर उन्हें जागरुक किया जायगा। आगामी 13 जनवरी को किसान संकल्प दिवस मनाया जाएगा। इस कार्यक्रम के तहत किसान संगठन किसानों को उनके अधिकारों का बोध कराते हुए उनके संरक्षण का संकल्प दिलाएंगे। 18 जनवरी को किसान महिला दिवस का आयोजन किया जाएगा। जिसमें महिलाओं को आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित किया जाएगा। 23 जनवरी को किसान संगठनों ने राजभवनों के सामने डेरा डालने की योजना बनाई है। और 26 जनवरी को अपनी घोषण के अनुसार तिरंगे के साथ अपने ट्रैक्टरों को गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल होने का ऐलान किया है। किसानों के अडिग रवैये को देखकर ऐसा लग रहा है कि आंदोलित किसान किसी भी रणनीति से पीछे हटने वाले नहीं है। आने वाले समय में किसानों की ओर से सरकार की पेचीदगियां बढ़ेंगी। सरकार को शीघ्र ही इसका हल निकालना होगा।