प्राय : हड़तालें तोड़ देते हैं सत्तासीन

0
233

इंग्लैंड के इतिहास से प्रेरित फिल्म ‘बैकेट’ में पीटर ओ टूल और रिचर्ड बर्टन ने अभिनय किया था। प्रिंस हेनरी और बैकेट बचपन के मित्र रहे। प्रिंस हेनरी ने सिंहासन पर बैठते ही अपने बाल सखा बैकेट को चर्च का सर्वोच्च अधिकारी नियुक्त किया। उन दिनों सत्ता के केंद्र राजा और चर्च का प्रमुख होते थे। हैनरी अपने मित्र को चर्च का अधिकारी नियुक्त करके सत्ता पर पूरा कब्ज़ा जमाकर तानाशाह बनना चाहता था। बैकेट ने उसे सावधान किया कि ईश्वर की चाकरी करते हुए, वह मित्रता का निर्वाह नहीं कर पाएगा परंतु हेनरी को बचपन की मित्रता पर पूरा विश्वास था।

बैकेट द्वारा मित्रता के संकट के संकेत से हम यह भी समझ सकते हैं कि कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा था? बहरहाल कालांतर में राजा और चर्च प्रमुख के बीच मतभेद होते हैं और राजा बैकेट का कत्ल कराने का निश्चय करता है। बैकेट यह जान गया है परंतु वह ईश्वरीय न्याय के लिए शपथबद्ध है। टी.एस. एलियट ने भी इसी विषय पर नाटक लिखा, ‘मर्डर इन द कैथेड्रल’। नाटक में प्रस्तुत टेम्पटर सीन अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।

पहला टेम्पटर अर्थात लोभ-लालच देने वाला पात्र बैकेट के सामने अकल्पित धन का प्रस्ताव रखता है। बैकेट इसे अस्वीकार कर देता है। दूसरा टेम्पटर असीमित अय्याशी और तीसरा एकड़ों जमीन का प्रस्ताव रखता है अर्थात जर-जोरू-जमीन के लालच दिए जाते हैं। टी. एस. एलियट का जीनियस है चौथे टेम्पटर का आकल्पन। चौथा टेम्पटर कहता है कि बैकेट राजा का विरोध अमर हो जाने के लालच में कर रहा है। वह जानता है कि कत्ल किए जाने के बाद उसे ‘पहुंचा हुआ संत’ माना जाएगा।

हर वर्ष शहादत के दिन लोग उसे याद करेंगे। उसकी स्मृति उसे अमृत्व प्रदान करेगी। इस तरह राजा विस्मृत कर दिया जाएगा परंतु संत अमर होगा। इसीलिए कभी-कभी राजनीतिक सत्तासीन व्यक्ति संत दिखने का खेल रचता है।

चौथा टैम्पटर बैकेट को विचलित कर देता है। अमर हो जाना सभी चाहते हैं परंतु यह कामना मनुष्य होने की गरिमा को कम कर देती है। देवता या दानव से अधिक कठिन है मनुष्य बने रहना। बहरहाल बैकेट से प्रेरित फिल्म ‘नमक हराम’ ऋषिकेश मुखर्जी ने राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन के साथ बनाई थी। फिल्म में अमिताभ अभिनीत पात्र मिल मालिक है।

मजदूर तमाम मांगो को लेकर आंदोलन करना चाहते हैं। मिल मालिक अपने बचपन के मित्र राजेश खन्ना को मिल में काम करने और मज़दूरों का यूनियन बनाकर उसका अध्यक्ष बनने को कहता है। ताकि दोनों मिलकर मनमानी करें। राजेश खन्ना मालिक मित्र को सावधान करता है कि फिर तो वह मिल मालिक से टकराएगा और मित्रता टूट सकती है। इस तरह ‘नमक हराम’ भी हाकिम और आम आदमी के द्वंद्व को प्रस्तुत करती है। सत्तासीन प्राय: कोई टेम्पटर या अपना आदमी हड़ताल करने वालों में शामिल करा देते हैं। हड़तालें तोड़ी जाती हैं।

गुजश्ता दौर में अमेरिका में भी मजदूर व किसान असंतुष्ट थे। वे अपना यूनियन बनाना चाहते थे। सत्तासीन व्यक्ति यूनियन का विरोध कर रहे थे। उस समय सीनेटर वेगनर ने सुझाव दिया कि मजदूर व किसान को यूनियन बनाने का अधिकार दे दिया जाए। वेगनर ने कहा कि यूनियन में हम अपना आदमी भेजकर उसे लोकप्रिय बनाने में मदद करेंगे। वह यूनियन लीडर होते ही हमारे हितों की रक्षा करेगा। जाने कितनी सदियों से यह खेल जारी है।

नेताओं के कार्यकलाप जस की तस : शीत काल में यूरोप में खुले मैदान पर बर्फ जम जाती है। पूनम की रात चांद की किरणें बर्फ से परावर्तित होकर रात को चमकीला बना देती हैं। इन रातों को व्हाइट नाइट्स कहा जाता है। पूरा वातावरण एक सुंदर उज्ज्वल स्वप्न की तरह हो जाता है। इस तरह जगमग रात जादुई असर करती सी जान पड़ती है। संभवत ऐसे नज़ारे से प्रेरित होकर शैलेंद्र ने फिल्म ‘चोरी चोरी’ के लिए गीत लिखा, ‘जो दिन के उजाले में ना मिला दिल ढूंढें ऐसे सपने को इस रात की जगमग में डूबी मैं ढूंढ रही हूं अपने को ।’

यूरोप में क्रिसमस की रात लोग ऐसे ही मैदानों पर जश्न मनाते हैं। मेले में कुछ लोग अपने से बिछड़ जाते हैं और बिछड़े हुए लोग लंबे अरसे बाद एक- दूसरे से मिल पाते हैं। फि़ल्मकार मनमोहन देसाई ने एक पटकथा राज कपूर को सुनाई। राज कपूर ने फिल्म में काम करना स्वीकार किया। पटकथा रूसी लेखक दोस्तोयेव्स्की की कथा ‘व्हाइट नाइट्स’ से प्रेरित थी। राज कपूर, नूतन और रहमान अभिनीत ‘छलिया’ में देश के विभाजन के समय नूतन अपने नन्हें बालक के साथ अपने पति रहमान से बिछड़ गई थी।

नूतन गरीबों की बस्ती में आश्रय पाती है। उस बस्ती का नवयुवक राज कपूर हमेशा मस्ती करता रहता है परंतु लोगों की मदद भी करता है। राज कपूर अभिनीत पात्र को नूतन से एकतरफा प्रेम हो जाता है। नूतन कभी बढ़ावा नहीं देती। फिल्म के लाइमेस में बिछड़े हुए पति-पत्नी रहमान और नूतन मिल जाते हैं। ज्ञातव्य है कि दोस्तोयेव्स्की की ‘व्हाइट नाइट्स’ से प्रेरित फिल्म ‘सांवरिया’ संजय लीला भंसाली ने रणबीर कपूर, सोनम कपूर के साथ बनाई। ‘छलिया’ में रहमान अभिनीत भूमिका ‘सांवरिया’ में सलमान खान ने अभिनीत की थी।

नीतू सिंह ने कुछ समय तक भंसाली की फिल्म में रणबीर के काम करने की बात छुपाए रखी। जब ऋषि कपूर को यह बताया गया, तब वे बहुत नाराज़ हुए क्योंकि वे अपने पुत्र को स्वयं ही प्रस्तुत करना चाहते थे जैसे उनके पिता राज कपूर ने उन्हें किया था। बहरहाल ऋषि, भंसाली के सैट पर गए।

सैट नहरों के शहर वेनिस की तरह था और एक इमारत के ऊपर आर.के वैसे ही लिखा था, जैसे राज कपूर के स्टूडियो पर था। सब कुछ काल्पनिक रूरीटेनिया की तरह रचा गया था। ‘सांवरिया’ में रणबीर कपूर एक सीन में ‘बॉबी’ में ऋषि कपूर की तरह तौलिया लपेटे थे। लेकिन फिल्म असफल हुई। इसके बाद भी रणबीर कपूर अपनी प्रतिभा के दम पर आज भी सक्रिय हैं। ज्ञातव्य है कि दोस्तोयेव्स्की की ‘क्राइम एंड पनिशमेंट’ से प्रेरित फिल्म ‘फिर सुबह होगी’ में राज कपूर ने अभिनय किया था।

इस फिल्म के साहिर लुधियानवी के गीत और खय्याम का संगीत आज भी लोकप्रिय है। आजकल किशोर वर्ग में एक मज़ाक वायरल हो गया है कि इस वर्ष क्रिसमस 14 दिन बाद मनाया जाएगा, योंकि सांता लॉज़ को धरती पर आते ही 14 दिन क्वारंटाइन में बिताने पड़ेंगे। कोरोना के कारण क्रिसमस घरों में मनाया जाएगा और सार्वजनिक स्थानों पर भीड़ नहीं होगी। कोरोना ने सबकुछ बदल दिया परंतु कुछ देशों में नेताओं के कार्यकलाप जस की तस चल रहे हैं।

जयप्रकाश चौकसे
(लेखक फिल्म समीक्षक हैं ये उनके निजी विचार हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here