नई बीमारी और भारी

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कोरोना महामारी से परेशान देश में एक इलाके में सीमित किसी एक नई बीमारी पर ज्यादा ध्यान देने की फुरसत शायद नहीं है। वरना, आंध्र प्रदेश के एलुरु इलाके में फैली रहस्यमयी बीमारी को कम चिंताजनक नहीं है। इसके मरीजों के खून के सैंपलों की जांच ने रहस्य और बढ़ा दिया है। जांच के दौरान खीन में सीसा और निकल जैसे धातु मिले। तो या ये बीमारी प्रदूषण का परिणाम है? राज्य सरकार ने अभी ऐसी किसी संभावना के बारे में स्पष्ट रूप से नहीं कहा है। लेकिन मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी के कार्यालय ने आधिकारिक बयान में यह जरूर कहा है कि दिल्ली स्थित एक्स की प्राथमिक जांच में मरीजों के खून के सैम्पलों में सीसा और निकल मिले। बताया गया है कि इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल टेक्नोलॉजी और दूसरे संस्थान में जांच अभी भी चल रही है। इस बीमारी के लक्षणों वाले मरीजों की संख्या लगभग 600 हो गई। हालांकि इनमें से ज्यादातर को अस्पतालों से छुट्टी मिल चुकी है, लेकिन अभी भी कई लोग भर्ती हैं। मरीजों में 12 साल से कम उम्र के 45 बच्चे भी हैं। इन सभी लोगों को दौरे पड़े, उल्टियां आईं और फिर वो बेहोश हो गए थे। अधिकारियों का कहना है कि दौरे पडऩा और बेहोश होना सभी मरीजों में सिर्फ एक बार देखा गया।

परिवार में सिर्फ एक ही व्यक्ति में ये लक्षण दिखे, जिसका मतलब है कि यह बीमारी एक व्यक्ति से दूसरे तक नहीं फैलती है। एक व्यक्ति की इस रहस्यमयी बीमारी से मृत्यु की पुष्टि हो चुकी है। बीमारी की तफ्तीश में अब विश्व स्वास्थ्य संगठन भी शामिल हो गया है। पानी के साथ-साथ दूध और चावल के सैंपलों की जांच भी की जा रही है। अधिकारी एलुरु में विशेष सफाई अभियान भी शुरू करने पर विचार कर रहे हैं। कुछ जानकार कीटनाशकों से पानी के प्रदूषण की भी संभावना व्यक्त कर रहे हैं, लेकिन इसकी अभी तक पुष्टि नहीं हुई है। कोविड-19 संक्रमण के मामलों में आंध्र प्रदेश सबसे ज्यादा प्रभावित राज्यों में से है। लेकिन इस बीमारी के लक्षण कोविड के लक्षणों जैसे नहीं हैं। इस बीमारी के सभी पीडि़तों का कोविड टेस्ट हो चुका है और किसी को भी संक्रमित नहीं पाया गया है। तो कुल मिलाकर रहस्य कायम है। कोविड की शुरुआत भी चीन में छोटे स्तर पर हुई थी। ऐसा नहीं लगता कि वैसी घटना दोहराई जाएगी। फिर भी पूरी सावधानी की जरूरत है। ये अधिवेशन पिछले हफ्ते शुरू हुआ। इसमें संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटारेस ने दुनिया को आगाह किया कि कोरोना महामारी से जो झटका लगा है, उससे उबरने में दुनिया को कई वर्ष लग सकते हैं।

यूएन ने कहा है कि महामारी ने नाजुक और कमजोर हालात का सामना कर रहे देशों में भारी तबाही मचाई है। यूएन के 2021 के लिए वैश्विक मानवीय सहायता परिदृश्य रिपोर्ट में कहा गया है कि 56 देशों में बेहद नाजुक हालात का सामना कर रहे लगभग 16 करोड़ लोगों तक मदद पहुंचने की योजना पर तुरंत अमल की जरूरत पड़ेगी। अगर ये सभी योजनाएं पूरी की गईं, तो इन पर 35 अरब डॉलर का खर्च आएगा। यूएन का अनुमान है कि दुनिया भर में साढ़े 23 करोड़ लोग कोरोना वायरस महामारी, भूख, संघर्ष और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का सामना कर रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि यूएन की मुय चिंताओं में से एक यमन, अफगानिस्तान, उत्तर पूर्व नाइजीरिया, दक्षिण सूडान, कांगों और बरकीना फासो में अकाल टालने की है। इन देशों में कोरोना महामारी ने लाखों लोगों को गरीबी में धकेल दिया है। इसलिए अकाल को टालने, गरीबी का मुकाबला करने और बच्चों का टीकाकरण और उन्हें स्कूलों में रखने के लिये मानवीय सहायता राशि की जरूरत है। कहा जा सकता है कि इस रिपोर्ट पर विश्व समुदाय को गंभीरता से गौर करना चाहिए। ऐसी रिपोर्टों की अहमियत ही यही होती है कि इनसे उन समस्याओं पर ध्यान जाता है, जो आम तौर पर छिपी रह जाती हैं।

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