पढ़े-लिखों का दोष ही ज्यादा

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हत्या, अपहरण, दुष्कर्म और डकैती के विषय वेब सीरीज पर दिखाए जा रहे हैं। संगीतमय प्रेम कहानियों का अभाव है। शायद जीवन से भी संगीत और प्रेम बाहर जा चुके हैं। इससे व्यवस्था भी खुश है। अनुष्का शर्मा की वेब सीरीज ‘पाताल लोक’ पांच सर्वाधिक लोकप्रिय वेब सीरीज में शामिल की गई है। इस वेब सीरीज का जासूस सनकी मिजाज का है। मान लीजिए कि दुनिया एक मेज है, जिस पर कुछ गोलाकार छेद बने हुए हैं। सनकी आदमी तिकोनाकार है जो किसी गोल छेद में समा नहीं सकता। शोध और आविष्कार करने वालों को प्राय सनकी कहा गया है। सोक्रेटीज को जहर पीने के लिए बाध्य किया गया। आज जहर पीने का हुम जारी करने वाले का नाम कोई व्यति नहीं जानता, परंतु दार्शनिक सुकरात आज भी याद आते हैं। लोकप्रिय मान्यता है कि स्वर्ग ऊंचाई पर बसा है और नर्क धरती की निचली सतह पर स्थित है। विज्ञान के अनुसार पृथ्वी की सबसे निचली सतह में सतत् आग जल रही है। प्राचीन किताबों में जो विविधता नर्क के बारे में है, वह स्वर्ग के बारे में नहीं है। स्वर्ग में सोमरस और अप्सराओं का विवरण है। के. आसिफ की संजीव कुमार अभिनीत फिल्म ‘लव एंड गॉड’ में वे लैला-मजनूं की मृत्यु के बाद उन्हें सात सतह वाली जन्नत में मिलते हुए दिखाना चाहते थे। के. आसिफ की मृत्यु के बाद के.सी. बोकाडिय़ा ने आधी-अधूरी फिल्म को जैसे-तैसे पूरा करके प्रदर्शित कर दिया। देवकीनंदन खत्री के अय्यार (जासूस) सनकी नहीं थे। इब्ने सफी के जासूस कैप्टन विनोद गंभीर व्यक्ति थे और उनका सहायक हमीद हंसोड़ व्यक्ति था। हमीद ने एक गधा पाला है। जासूस प्राय कुत्ता पालते हैं। वामपंथी लेखक कृष्णचंद्र के उपन्यास का नाम ‘एक गधे की आत्मकथा’ है। शरद जोशी की रचना का नाम था ‘एक था गधा’। गधे के एक प्रकार को खच्चर कहा जाता है।

जिन पहाडिय़ों पर घोड़े चढ़ नहीं पाते, वहां खच्चर सामान ढोते हैं। एक चींटी अपने वजन का तीस गुना अधिक भार ढो लेती है। इसी तरह आम आदमी की सहनशीलता भी बहुत अधिक होती है।अभावों ने उसे बड़े प्यार से पाला होता है। अगाथा क्रिस्टी की जासूस मिस मार्पल गंभीर पात्र है। उनका जासूस पायरो, पाठक को गुदगुदाता है। फिल्म ‘मॉम’ में नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने एक प्राइवेट जासूस की भूमिका अनोखे अंदाज में अभिनीत की थी। नवाब का अंदाजे बयां हर फिल्म में अलग होता है। वे इरफान खान की श्रेणी के अभिनेता हैं। वेब सीरीज के लिए चलती का नाम गाड़ी, पड़ोसन और अंगूर की तरह हास्य फिल्में बनाई जाना चाहिए। इसी के साथ प्रेम कहानियां और संगीतमय फिल्में जैसे ‘कम सेप्टेंबर’ और रिचर्ड लिक अभिनीत ‘यंग वन्स’ बनाई जा सकती हैं। लेखकों और निर्देशकों की कमी नहीं है, परंतु निर्माण कंपनियों के लौह कपाट आसानी से खुल नहीं सकते। यह संभव है कि व्यवस्था यह नहीं चाहती। सभी जगह ऊंचे पदों पर ऐसे लोग बैठे हैं जो किसी पतली गली से ओहदे पर पहुंचे हैं। फूहड़ता के बने रहने से प्रश्न खड़े करने वाले लोग भी कोने में दुबक जाते हैं। आज अपनी बुद्धि को सहज बनाए रखना कठिन हो चुका है। सभी समस्याओं के लिए हम व्यवस्था को दोष देने के बदले आत्म निरीक्षण करें तो कोई रास्ता खोजा जा सकता है। आम आदमी रोजी, रोटी, कपड़े की आधारभूत व्यवस्थाओं की पूर्ति में इतना उलझा हुआ है कि उसे इस बात की भी चिंता नहीं है कि उसके बच्चे और किशोर क्या देख रहे हैं? आज अनपढ़ व्यक्ति का इतना दोष नहीं है, जितना पढ़े-लिखे और समझदार व्यक्तियों का है। भ्रष्टाचार की सारी फाइलें और कागज, पत्र पढ़ा-लिखा आदमी ही बनाता है। इसका यह अर्थ नहीं कि अनपढ़ बने रहने की हिमायत की जा रही है।

आज प्रात:कालीन प्रार्थना यह की जाती है कि हे प्रभु, हमें सामान्य बनाए रखना। हमें पागलपन या सनकीपन होने से बचाएं। सलामती ऐसी प्रार्थना से ही संभव है। निर्मल आनंद के स्थान पर नॉर्मल बने रहने की कामना की जानी चाहिए। हर व्यक्ति के भीतर एक ब्रह्मांड मौजूद: लोकप्रिय सितारों की पत्नियों का जीवन कैसा होता है? उन्हें सारे साधन प्राप्त हैं। सेवक सारा समय उनकी सेवा में हाजिऱ होते हैं। सितारा पत्नियों की तरह ही सत्तासीन लोगों की पत्नियों का जीवन भी आसान नहीं होता। श्रीमती ओबामा ने बड़ी रोचक किताब लिखी है। जॉन. एफ. केनेडी के निधन के बाद उनकी पत्नी ने दूसरा विवाह एक धनाढ्य व्यक्ति ओनासीस से किया। एक पत्रकार ने गोताखोरी का लिबास पहनकर समुद्र में स्नान कर रहीं कैनेडी के फोटोग्राफ्स लिए थे। सनसनी फैलाने वाले पत्रकार सारा समय गैर कानूनी ताक-झांक करते हैं। प्रिंसेस डायना की कार पत्रकारों से बचने की हड़बड़ाहट में दुर्घटनाग्रस्त हुई थी और उनकी मृत्यु हो गई। लोकप्रियता की कीमत परिवार के सदस्यों को अदा करना पड़ती है। इस तरह की साधन संपन्न पत्नियों को ऊब दीमक की तरह खोखला बना देती है। साधनों के साथ आडंबर जुड़ा होता है। उन्हें यह अतिरिक्त असबाब ढोना होता है। सभी क्षेत्रों में लोकप्रिय व्यक्तियों की पत्नियों की अपनी समस्याएं होती हैं। क्रिकेटर्स सारा समय देश-विदेश में खेलते रहते हैं। पत्नियां पेशंस नामक एकल व्यक्ति ताश का खेल खेलती हैं इस खेल का नाम ही उसका पूरा परिचय देता है। भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान कोहली की पत्नी अनुष्का शर्मा फिल्म निर्माण करती हैं। अक्षय कुमार की पत्नी ट्विंकल खन्ना साप्ताहिक कॉलम लिखती हैं। उनकी किताबें भी प्रकाशित हुई हैं। अजय देवगन के संयुक्त परिवार में बोल्ड-बिंदास काजोल यूं घुल-मिल गई हैं मानो वे हमेशा से उस परिवार की लहर रही हों। शाहरुख खान की पत्नी गौरी भी व्यस्त ही रहती हैं।

एक दौर में काजोल शेयर मार्केट में रुचि लेती थीं और वे इस व्यापार को बखूबी समझ गई थीं। दरअसल शेयर बाजार भी सामूहिक भावना से संचारित होता है। मार्था सी नुसबॉम की किताब ‘पॉलिटिकल इमोशंस’ में यह स्पष्ट किया गया है कि नेता सामूहिक भावनाओं से खेलता है परंतु स्वयं भी कभी- कभी भावना से द्रवित हो जाता है। सफलता के मार्ग पर अग्रसर होने वाला नेता स्टील का कवच पहने होता है परंतु उसमें भी एक छोटे से छिद्र से भावना घुसपैठ कर लेती है।शतरंज के खेल में कभी मोहरे स्वयं चल पड़ते हैं। मनुष्य के हाथ के स्पर्श के कारण वे खिलाड़ी भावनाओं को समझ लेती हैं। याद आता है कि सत्यजीत रॉय ने मुंशी प्रेमचंद की कथा से प्रेरित संजीव कुमार और सईद जाफऱी अभिनीत फिल्म ‘शतरंज के खिलाड़ी’ बनाई थी। कुछ प्रकरण सामने आए हैं कि न्याय प्रक्रिया में पतली गली का लाभ उठाकर कुछ लोग बच निकलते हैं तो समाज उनका बहिष्कार करता है। जब वह अपने विशाल बंगले पर पहुंचा तो चौकीदार ने उसे चाबियां दीं। साथ ही तमाम सेवकों द्वारा दिए गए त्याग पत्र सौंपते हुए खुद का त्यागपत्र भी दे दिया। सितारे ने रेस्त्रां को आरक्षण के लिए फोन किया तो उसे बताया गया कि किसी टेबल पर जगह उपलब्ध नहीं है। एक के बाद एक सभी में खाली जगह नहीं होने का बहाना बनाया। उसे छद्म वेश धारण करके जीवन बिताना पड़ा। जागरूक समाज में न्याय के लिए अदृश्य लहर चलती है। संकीर्णता की नदी में गाफिल समाज उस ताल की तरह होता है, जिसमें से मेंढक भी भागने लगते हैं। मछलियां किनारे पर आकर छटपटाती हैं। सीप मोती को निगल जाती है। सिनेमा शास्त्र के प्रथम कवि चार्ली चैपलिन की फिल्म ‘लाइमलाइट’ यह तथ्य रेखांकित कर चुकी है। कुछ सितारा पत्नियां, पति द्वारा अर्जित धूप में स्नान के बदले स्वयं भी सृजन का काम करने लगती हैं। हर व्यक्ति के भीतर एक ब्रह्मांड मौजूद होता है परंतु स्वयं उससे जानकर भी अनजान बना रहता है। इस तरह अपने-अपने अजनबियों का संसार बन जाता है।

जयप्रकाश चौकसे
(लेखक फिल्म समीक्षक हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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