सर्दी की रातों के बाद अन्नदाताओं को सवेरा होने की उम्मीद

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केंद्र सरकार द्वारा लागू किए गए तीन कृषि कानून को लेकर संघर्ष कर देश के अन्नदाता पिछले पंद्रह दिन से दिल्ली के आस-पास इस उम्मीद में डेरा डाले हुए कि इन भयानक रातों के बाद कभी तो सवेरा होगा। कभी तो सरकार उनके सर्द भरी रातों के संघर्ष पर पसीजेगी। उनकी जायज मांगों को सरकार मानेगी। लेकिन अभी तक जो स्थिति है वह अडिय़ल है। सरकार भी पीछे नहीं हटना चाहती तो किसान भी बिना मांग पूरी किए घरों को नहीं जाना चाहते। आंदोलन की गति दिनबदिन तेज होती जा रही है। दिल्ली के विज्ञान भवन में सरकारी नुमाइदों व किसान नेताओं की कई दौर की वार्ताएं विफल हो चुकी हैं। देश के किसानों को कृषि कानून को लेकर जों गलतफहमियां हैं उन्हें भी दूर करने का प्रयास नहीं किया जा रहा है।

आगामी नौ दिसंबर को प्रस्तावित बैठक में भी यदि कोई समाधान नहीं निकला तो यह आंदोलन और तेज होने की उम्मीद है। किसानों के आंदोलन का प्रभाव देश की राजनीति पर भी पडऩा शुरू हो जाएगा। चर्चा है कि हरियाणा सरकार भी आंदोलन का शिकार हो सकती है। क्योंकि 90 सीटों वाली विधानसभा में खट्टर सरकार के अपने चालीस व जजपा के दस विधायकों का समर्थन है। यदि किसान हित में जजपा अपना समर्थन वापस लेती है तो खट्टर सरकार अल्पमत में आ जाएगी। पंजाब व हरियाणा में असर नेता किसानों से जुड़े हैं। यदि केंद्र सरकार किसानों के आंदोलन को लेकर कोई सकारात्मक कदम नहीं उठा पाती है तो किसानों के हित का दंभ भरने वाले नेताओं की मजबूरी होगी इस आंदोलन में समर्थन देना।

दिसंबर की रातों में आंदोलित किसानों का उत्साह ठंडा नहीं हो पा रहा है। जिसे देखकर ऐसा लग रहा है जो नेता किसानों को लेकर सक्रिय राजनीति करते हैं, या जिनके दम पर वह सत्ता में आए हैं उन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। किसान संगठन से जुड़े नेताओं का कहना है कि यदि सरकार अपने कानून वापस नहीं लेती या फसलों की एमएसपी को कानूनी दर्जा नहीं देती वह दिल्ली को छोड़कर नहीं जाने वाले। हालांकि अब तक जितने भी कानून बने हैं, लाख विरोध के बाद भी सरकार पीछे नहीं हटी। इन कानूनों को लेकर सरकार का अगला कदम या होगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा। लेकिन इतना तय है कि ये आंदोलन जितना लंबा चलेगा उतना ही मजबूत होगा।

एम. रिजवी मैराज
(लेखक एक पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)

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