क्या आपने बिग बॉस का यह सीजन देखा है? अगर हां, तो आपने शो पर तीन जोड़े देखे होंगे। इस हफ्ते पवित्रा पुनिया के बाहर होने से एक जोड़ा टूट गया। इससे टीवी स्टार 45 वर्षीय एजाज़ खान अकेले रह गए, भले ही वे फाइनल्स तक पहुंच गए। जैस्मिन भसीन की मदद करने शो में आए अली गोनी भी चर्चित प्रतियोगी हैं। फिर रुबिना दिलाइक और अभिनव शुक्ला हैं, जिन्होंने स्वीकारा कि उनकी शादी टूटने की कगार पर है। पहले दो जोड़ों को अंतर-धार्मिक जोड़ा कहते हैं, जिन्हें समान धर्म नहीं, बल्कि प्रेम साथ लाया। यह नया नहीं है। ऐसे रिश्ते वर्षों से बनते रहे हैं। किसी ने इनकी मंशा पर सवाल नहीं उठाए, किसी ने ध्यान भी नहीं दिया कि ये अलग-अलग धर्मों से हैं। किशोर कुमार और मधुबाला या शर्मिला टैगोर और टाइगर पटौदी या हृतिक रोशन और सुजैन खान को ही देखें। हमने उनके प्रेम के बारे में, रिश्ते के बारे में पढ़ा, उनके धर्म के बारे में नहीं। लेकिन अब अचानक लव जिहाद आ गया। लव जिहाद? भाजपा का शब्दकोष इसे अंतर-धार्मिक प्रेम बताता है। और कई भाजपा शासित राज्य इसे गैर- कानूनी और दंडनीय बनाने के लिए कानून बना रहे हैं। क्यों? क्योंकि भाजपा का तर्क है कि यह प्रेम नहीं है। यह असुरक्षित हिन्दू लड़कियों का धर्म परिवर्तन कराने का कपटपूर्ण तरीका है।
यह विचार उस देश में कितना बेहूदा है, जहां हर पांच लोगों में चार हिन्दू हैं। इसकी जड़ इस डर में है कि अन्य धर्मों, खासतौर पर इस्लाम के लोगों की संख्या बढ़ रही है, जबकि हिन्दुओं की नहीं। जहां तक धर्मपरिवर्तन का सवाल है, तो जब तक सामाजिक असमानता रहेगी, कमजोर वर्ग उस धर्म में जाता रहेगा, जहां उन्हें सम्मान मिलेगा। यह नई समस्या नहीं है। परंपरा की मांग है कि जोडिय़ां समान धर्म, जाति, समुदाय में बननी चाहिए। शादियों को परिवार और समाज की स्वीकृति होनी चाहिए। प्रेम उसके बाद आता है। यह धर्म के बारे में नहीं है। यह उन बुजुर्गों की कठोर सत्ता और अधिकार की चाह से जुड़ा है, जो परिवारों और समुदायों पर राज करते हैं। लेकिन आज के युवा सुनने से इनकार कर रहे हैं। वे अपना साथी खुद चुनना और प्रेम होने पर ही शादी करना चाहते हैं। नतीजतन हम आज ज्यादा अंतर-धार्मिक और अंतरजातीय विवाह देखते हैं। भारत बदल रहा है। विभिन्न आस्थाओं के लोग जहां चाहें, वहां एकत्रित हो रहे हैं। कई गैर-सिख परिवार हर साल अमृतसर के स्वर्ण मंदिर जाते हैं। कई गैर-मुस्लिम अजेमर शरीफ जाते हैं। हर कोई तिरुपति और शिरडी जाता है। कोलकाता में नए साल की शाम सभी धर्मों के लोग सैंट पॉल कैथेड्रल जाते हैं।
यही भाजपा को परेशान कर रहा है। उन्हें डर है कि वे अपने झुंड पर नियंत्रण न खो दें। लेकिन यही भारत को भारत बनाता है। इसकी बहुलता। जब आपको लगता है कि आप भारत को जानने लगे हैं, यह आपको चौंका देता है। यही हिन्दू धर्म की शक्ति भी है। वह आपको अपनी आस्था का स्वयं अर्थ निकालने देता है। अंतर-धार्मिक, अंतर-जातीय, अंतर-समुदाय शादियों का हमेशा विरोध हुआ है। आप ऑनर किलिंग के बारे में सुनते हैं। आप उन महिलाओं के खिलाफ अपराध के बारे में पढ़ते हैं, जिन्होंने पसंद का हमसफर चुना। अब भी ऐसी जगहें हैं, जहां किसी युवा के बाहरी से शादी करने पर उसके परिवार का बहिष्कार हो जाता है। उत्तर भारत में खाप हैं, जो परंपरा से हटने वाले को कठोर सजा देती हैं। अगर आपने सैराट फिल्म देखी हो, तो आपको पता होगा कि कैसे युवा जोड़ों को अक्सर ढ़ूंढकर उनके परिवार वाले ही मार देते हैं। इस सबके बावजूद, भारत बचा हुआ है क्योंकि यह भिन्नताओं को सराहता है।
इसीलिए देश के अलग-अलग हिस्सों से आने वाले सैनिक अलग-अलग ईश्वर को पूजते हैं, अलग-अलग जाति से हैं और फिर भी देश की संप्रभुता की रक्षा के लिए मिलकर लड़ते हैं। वरना, आप 122 भाषाओं और 1599 बोलियों वाले देश को कैसे बांधकर रखेंगे? हम विभिन्न ईश्वरों को पूजते हैं। अलग-अलग तरह से उत्सव मनाते हैं। देश में 3000 जातियां और 25000 उप-जातियां हैं, जो सती से वर्गीकृत हैं। और इसके बाहर जाति व्यवस्था बनी हुई है, जनजातियां बनी हुई हैं जिनकी हम उपेक्षा करते हैं। अगर आप हमारी जनजातियों के बारे में जानना चाहते हैं तो ब्रिटेन में जन्मे मानवविज्ञानी वेरिअर एल्विन को पढ़ें। वे ईसाई मिशनरी थे, जो भारत में स्थानीयों का धर्म परिवर्तन कराने आए थे। वे गांधी से मिले, जनजातियों के बीच काम किया और हिन्दू धर्म अपना लिया। अगर भारत अपना दिल खोले तो वह सभी को जीत सकता है। लेकिन पहले, उसे नफरत को नकारना और प्रेम करने की हिम्मत करने वालों के साहस का सम्मान करना सीखना होगा। क्योंकि वे ही हैं जो कल का भारत बनाएंगे, न कि अंधभक्त, जो आक्रोश के बल पर चलते हैं।
प्रीतीश नंदी
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म निर्माता हैं ये उनके निजी विचार हैं)