अब फास्टैग के फंदे में बंदा

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नए चौपहिया वाहनों में वैसे तो 2017 से ही फास्टैग लगाना अनिवार्य कर दिया गया था। गाड़ी बेचने के साथ ही डीलर को फास्टैग लगाना था। लेकिन यह सती से लागू नहीं हो पाया और भारतीय राष्ट्रीय राज मार्ग प्राधिकरण ने भी टोल प्लाजा पर कैश लेन चालू रखी। अब कहा गया है कि 1 जनवरी 2017 से पूर्व पंजीकृत वाहनों सहित सभी चार पहिया वाहनों को 1 जनवरी 2021 से अपनी गाड़ी में फास्टैग लगवाना ही पड़ेगा। अब यह विकल्प नहीं होगा कि बिना फास्टैग के कोई चौपहिया वाहन रख सके। अगर गाड़ी में फास्टैग नहीं लगा होगा तो गाड़ी से संबंधित दूसरे कार्य भी बाधित होंगे। जैसे कि अगर आपका वाहन कमर्शल है तो बिना फास्टैग के न तो उसे परमिट मिलेगा, न परमिट का नवीनीकरण होगा। स्वस्थता प्रमाण पत्र लेने के पूर्व फास्टैग लेना ही होगा। बिना फास्टैग के आपकी गाड़ी का बीमा भी नहीं हो पाएगा। 1 अप्रैल 2021 से बीमा कराने पर बीमा सर्टिफिकेट पर फास्टैग की पंजीयन संख्या अपने आप प्रिंट हो जाएगी। ऐसा ऑनलाइन डाटाबेस से संभव हो सकेगा। नए नियम के जरिए यह प्रयास किया जा रहा है कि टोल प्लाजा पर शत-प्रतिशत टैस ऑनलाइन जमा हो।

इसके अलावा कुछ अन्य प्रावधान भी किए जा रहे हैं, जैसे कि टोल प्लाजा पर वाहनों को बिना अवरोध के आगे बढऩे दिया जाएगा। इससे ईंधन की बचत होगी और प्रदूषण कम फैलेगा। प्रावधान यह भी हो सकते हैं कि अगर आप के फास्टैग में पर्याप्त पैसा नहीं है, तब भी आपकी गाड़ी रोकी नहीं जाएगी। बाद में जब कोई टैग रीचार्ज करेगा तो बकाया टोल टैस अपने आप कट जाएगा। इसी तरह से जब वाहन स्वामी अपनी गाड़ी का बीमा, स्वामित्व परिवर्तन, पंजीयन नवीनीकरण, क्या कर्ज आदि संबंधी कार्य कराना चाहेगा तो सबसे पहले उसे फास्टैग का बकाया चुका कर नवीनीकरण कराना होगा। इन प्रतिबंधों के कारण निर्धारित टोल टैस, पेनाल्टी सहित जमा हो जाएगा। अब सवाल उठता है कि नए नियम जनपक्षधर हैं या केवल राजस्व बढ़ाने के उद्देश्य से लागू किए जा रहे हैं? टोल टैस की अदायगी नई सड़कों के बनने के बाद शुरू हो गई थी। जनता को बेहतर सड़क सुविधा के लिए ऐसा किया जाना जरूरी बताया गया था। बाद में टूटी और गड्ढा युक्त सड़कों के होने पर भी बिना उचित रख-रखाव के टोल टैस वसूला जाता रहा। गाड़ी मालिकों को लगता है कि आए दिन सड़कों पर अवरोध होने या हर कहीं जानवरों के विचरण करने के बावजूद, टोल टैस वसूला जाना अनुचित है। वर्तमान फास्टैग में कुछ और विसंगतियां हैं।

लोगों को लग रहा है कि जब वे रोड टैस के रूप में मोटी रकम पंजीयन के समय दे देते हैं, तब टोल के नाम पर भारी टैस वसूला जाना कहां तक न्याय संगत है? दूसरी विसंगति उन वाहन स्वमियों को लग रही है, जो बुजुर्ग या महिलाएं हैं और शहरी क्षेत्र से बाहर नहीं जातीं। नए नियम के अनुसार भले ही आपका वाहन टोल रहित मार्ग पर चले और टोल प्लाजा से कभी न गुजरे, तब भी फास्टैग लेना अनिवार्य होगा। यह प्रावधान, सड़क उपयोगकर्ता को बेहतर सड़क सुविधा उपलब्ध कराने की एवज में उससे टोल टैस वसूलने के सिद्धांत का उल्लंघन है। जब वाहन को टोल टैस वाली सड़क पर चलाया नहीं जाना है तब फिर उसके मालिक को फास्ट टैग लेने का झंझट और खर्च झेलने के लिए क्यों मजबूर करना? निश्चय ही इस विसंगति पर आगे विचार किया जाना चाहिए। टोल टैस केंद्रों की दूरी और टैस दरों में एकरूपता जरूरी है। कहीं पचास किलोमीटर बाद दूसरा टोल प्लाजा आ जाता है तो कहीं अस्सी किलोमीटर बाद। टोल टैस की दरें तृतीय क्षेणी वातानुकूलित रेल टिकट के बराबर पड़ती हैं। यानि आप अपने खर्चे पर तो गाड़ी चलाते ही हैं, साथ में वातानुकूलित रेल भाड़े के बराबर टोल टैस भी चुकाते हैं। वाहन स्वामी सवाल उठाते हैं कि जब सड़क उपयोग करने के लिए टोल टैस लिया जाना है, तब पंजीयन के समय वाहन मूल्य का दस से बारह प्रतिशत तक टैस वसूला जाना कितना जायज है?

सुभाष चन्द्र कुशवाहा
(लेखक पत्रकार और स्तंभकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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