पंजाब और हरियाणा के हजारों किसानों को दिल्ली में प्रदर्शन की अनुमति देकर केंद्र सरकार ने अक्ल का काम किया है लेकिन उन्हें दो दिन तक जिस तरह दिल्ली में घुसने से रोका गया है, वह घोर अलोकतांत्रिक कदम था। देश के किसान सबसे अधिक उपेक्षित, प्रताड़ित और गरीब हैं। यदि आप उनकी मांगें नहीं सुनेंगे तो कौन सुनेगा? संसद में बहुमत का डंडा घुमाकर आप जो भी कानून बना दें, उस पर यदि उससे प्रभावित होने वाले असली लोग अपनी राय प्रकट करना चाहते हैं तो उसे ध्यान से सुना जाना चाहिए और उसका हल भी निकाला जाना चाहिए। प्रदर्शनकारियों में कुछ कांग्रेसी और खालिस्तानी हो सकते हैं और उनमें से कुछ ने यदि नरेंद्र मोदी के खिलाफ बहुत घटिया किस्म की बात कही है तो वह भी निंदनीय है।
क्या ही अच्छा हो कि सरकार अब खेती के बारे में एक चौथा कानून भी पारित कर दे और जिन 23 उपजों पर समर्थन मूल्य वह घोषित करती है, उसे वह कानूनी रुप दे दे। उसे केरल सरकार से सीखना चाहिए, जिसने 16 सब्जियों के न्यूनतम मूल्य घोषित कर दिए हैं। किसानों को घाटा होने पर वह 32 करोड़ रु. की सहायता करेगी और उन्हें उनकी लागत से 20 प्रतिशत ज्यादा मुनाफा देगी। भारत के किसानों का सिर्फ 6 प्रतिशत अनाज मंडियों के जरिए बिकता है और 94 प्रतिशत उपज खुले बाजार में बिकती है। पंजाब और हरयाणा की 90-95 प्रतिशत उपज समर्थन मूल्य पर मंडियों के जरिए बिकती है। किसानों को डर है कि खुले बाजार में उनकी उपज औने-पौने दाम पर लुट जाएगी। उनके दिल से यह डर निकालना बेहद जरुरी है।
अमेरिका में किसान खुले बाजार में अपना माल जरुर बेचते हैं लेकिन वहां हर किसान को 62 हजार डालर की सहायता प्रति वर्ष मिलती है ? वहां मुश्किल से 2 प्रतिशत लोग खेती करते हैं जबकि भारत में खेती से 50 प्रतिशत लोग जुड़े हुए हैं। हमारे यहां किसान यदि नाराज हो गया तो कोई सरकार टिकी नहीं रह सकती।खेती की उपज के लिए बड़े बाजार खोलने का फैसला अपने आप में अच्छा है। उससे बीज, खाद, सिंचाई, बुवाई और उपज की गुणवत्ता और मात्रा भी बढ़ेगी। भारत दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक देश भी बन सकता है लेकिन खेती के मूलाधार किसान को नाराज करके आप यह लक्ष्य प्राप्त नहीं कर सकते। कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर यदि पहल करें और आगे होकर किसान नेताओं से मिलें तो इस किसान आंदोलन का सुखांत हो सकता है।
डा.वेदप्रताप वैदिक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)