पूछ सकते है भला इंजेशन लगा सकना क्या मुश्किल है? मगर 138 करोड़ लोगों के देश के लिए यह आसान काम नहीं है। अजीब बात सुनने को मिली है लेकिन है कि वैक्सीन का जब एक डिबा खुलेगा तो उसमें हजार से कुछ कम डोज होंगे और उन्हें तुंरत लोगों को लगाने होगा। मतलब एक साथ कई लोगों को इंजेशन/ डोज! अमेरिका की काउंटी या पंचायत इसका बंदोबस्त कर सकती है मगर क्या अपने गांव-कस्बों में यह संभव होगा? इससे भी अधिक झंझट-मुश्किल बात यह है कि जिला मुख्यालय, तहसील-गांव में मॉडर्ना वैसीन को शून्य से बीस डिग्री नीचे के तापमान में कैसे रखेंगे? दूसरी अमेरिकी कंपनी, फाइजर का वैसीन-इंजेक्शन को तो शून्य से 75 डिग्री सेल्सियस नीचे रखना पड़ेगा और वहां से निकालने के बाद इसे फ्रिज में पांच दिनों के लिए ही रखा जा सकता है। अन्य शदों में वैक्सीन बन जाना, उसे खरीद लेना एक बात है लेकिन महाएयरकंडीशंड हवाई जहाजों से उन्हे मंगा लेना, उनका महाकोल्ड स्टोरेज में ट्रांसफर फिर चिकित्साकर्मियों के आगे लोगों की लाईन लगवा कर या घर-घर जा कर अनिवार्य टीकाकरण में बाध्य करना सब दुष्कर काम है, जो अमेरिका-पश्चिमी देशों में वायरस टेस्ट के प्रभावी सिस्टम की तरह भारत में कर सकना संभव है।
भारत के राज्यों में, जिलों में टीकाकरण के लिए जरूरी श्रमशति, इंफ्रास्ट्रचर और इस सबकी लागत में जो होगा उसका हम अनुमान नहीं लगा सकते है। अभी वैक्सीन की कीमत में ही कई तरह के किंतु-परंतु है। वैज्ञानिकों के काबिले तारीफ काम के बावजूद कई सवालों का उत्तर आना बाकी है? पहला तो यही कि वैक्सीन बन तो गई है लेकिन यह कितने महीने असरकारक होगी? फिलहाल संभव नहीं कि वैक्सीन के दो टीके जीवन भर के लिए शरीर को कोरोना वायरस से मुक्ति दिला दे। हिसाब से अंतत: यह भी हो जाएगा लेकिन फिलहाल तात्कालिक क्या छह महीने-साल दो साल की प्रतिरोधक क्षमता बन सकने का अनुमान है। शरीर कितने महीने, कब तक इस वायरस से इम्यून रहेगा, यह जिस तकनीक से लंबी अवधि की गारंटी लिए होगा उसी का वैसीन अंतिम समाधान होगा। सवाल है कि टीका लगा तो उससे मरीज के लक्षण रुकेंगे, खत्म होंगे या उससे वायरस का फैलाव रुकेगा? बुजुर्ग लोगों के शरीर का प्रतिरोधक, इम्यून सिस्टम बहुत कमजोर होता है, तभी ऐसे शरीर में फ्लू वैक्सीन का कम असर होता है।
उस नाते फाइजर/बायोएनटेक और ऑसफोर्ड-एस्ट्राजेनेका के वैसीन के बुजुर्गों पर असरदार होने की खबर सुकूनदायी है लेकिन क्या ऐसा दूसरे वैक्सीन, प्रोटिन आधारित वैक्सीन से भी होगा? वैक्सीन की रिसर्च में कई तरीके आजामाए जा रहे है। उन सबसे अलग-अलग आयु वर्ग में अलग-अलग असर की गुत्थी बननी है जिस पर वैश्विक एक राय आसान काम नहीं है। हिसाब से यह सब विश्व स्वास्थ्य संगठन की देखरेख में होना चाहिए था लेकिन इस महिने तीन वैक्सीन क्या रूस-चीन की वैक्सीन को ले कर जितनी खबरे बनी क्या किसी में डल्यूएचओ का रोल दिखलाई दिया? सवाल-समाधान-शंका-जवाब और क्षेत्र व देश विशेष की उपयुतता में विश्व स्वास्थ्य संगठन याकि वैश्विक संगठन को ही रोडमैप बनवाना चाहिए था। लेकिन डोनाल्ड ट्रंप और वैश्विक लीडरशीप की कमी के कारण सन् 2020 की महामारी में दुनिया केवल वैज्ञानिकों के भरोसे समाधान निकालते हुए है। इसलिए वैज्ञानिकों और अमेरिका-योरोप की दवा कंपनियों से ही आगे मालूम होगा कि या सही है और क्या गलत? और जीवंत पर्यंत तमाम वायरसों से मुक्त बनाने वाली वैसीन बन सकना संभव है या नहीं?