भारतीय जनता पार्टी और उत्तर प्रदेश सरकार को भरोसा है कि वह साजिश के नैरेटिव से हाथरस कांड पर एक बार फिर जनमत को अपनी तरफ मोड़ देगी। यह भरोसा बेजा नहीं है। अब तक का अनुभव ऐसा ही है। इस बार भी भाजपा के समर्थक जमात इस कहानी को लेकर जनता के एक बड़े हिस्से में इस कांड को लेकर पैदा हुई व्यग्रता को शांत कर लें, तो कोई हैरत नहीं होगी। आखिर इस कहानी में मुसलमान का तत्व ले आया गया है। और यही तत्व भाजपा की सबसे बडी ताकत बना रहा है। तो मंगलवार सुबह हाथरस जा रहे एक पत्रकार और तीन कार्यकर्ताओं को उार प्रदेश पुलिस ने मथुरा में गिरतार कर लिया। पुलिस का दावा है कि चारों पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) नामक संस्था के सदस्य हैं। पुलिस के अनुसार चारों के नाम है: अतीक-उर-रहमान, सिद्दीक कप्पन, मसूद अहमद और आलम। चारों के मोबाइल, लैपटॉप और कुछ साहित्य को जख्त कर लिया गया। मगर केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स ने कहा है कि इनमें से सिद्दीक कप्पन पत्रकार हैं और संगठन की दिल्ली इकाई के सचिव भी हैं।
संगठन के अनुसार कप्पन हाथरस के लिए निकले थे, लेकिन उसके बाद उनसे अभी तक किसी का संपर्क नहीं हो पाया है। यूनियन ने उार प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को एक पत्र लिख कर कप्पन को रिहा करने की मांग की है। कप्पन के पीएफआई के सदस्य होने का सार्वजनिक रूप से कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है। आदित्यनाथ ने पीएफआई को राज्य में नागरिकता कानून के खिलाफ पिछले साल शुरू हुए विरोध प्रदर्शनों का जिम्मेदार ठहराया था। अब हाथरस कांड में भी इस पर ठीकरा फोडऩे की कोशिश में हैं। हाथरस मामले में उत्तर प्रदेश पुलिस ने कम से का 19 एफआईआर दर्ज की है। मुख्य एफआईआर में करीब 400 लोगों के खिलाफ राजद्रोह, षडयंत्र, राज्य में शांति भंग करने का प्रयास और धार्मिक नफरत को बढ़ावा देने जैसे आरोप लगाए हैं। कुछ मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक एक एफआईआर में यह आरोप भी लगाया गया है कि उपद्रवी तत्वों ने पीडि़ता के परिवार को सरकार के खिलाफ झूठ बोलने के लिए 50 लाख रुपयों की पेशकश की थी। तो कुल कहानी यह है कि हाथरस में कुछ हुआ ही नहीं।
यह तो पीएफआई जैसे संगठनों की साजिश है कि ये मामला इतना भड़क गया। निहितार्थ यह कि भाजपा सरकारों के तहत कुछ गलत नहीं होता। जो होता दिखता है, वह असल में एक साजिश है। हाथरस की घटना को लेकर क्यों इतना माहौल बना और क्यों ऐसे चैनल भी जो हर मसले पर भाजपा और उसकी केंद्र सरकार का बचाव करते रहे हैं या जिनका काम ही विपक्ष से सवाल पूछना रहा है उन्होंने भी स्टैंड लिया? क्या भारतीय मीडिया समूहों की अंतररात्मा जाग गई है? या यह सिर्फ टीआरपी का खेल है, जिसमें चैनलों को लग रहा है कि हाथरस की घटना देश के लोगों की आत्मा को झकझोरने वाली है इसलिए इसे चलाया जाए ताकि टीआरपी मिल सके? भारतीय मीडिया के बारे में अंतररात्मा वाली बात हजम नहीं होगी। जो चैनल तीन महीने से सुशांत सिंह राजपूत और रिया चक्रवर्ती की कहानियां चला रहे थे उन्होंने भी उसे छोड़ कर हाथरस को पकड़ा है। इसका मतलब है कि भाजपा के आईटी सेल की ओर से एजेंडा नहीं तय किया जा रहा है। अगर ऐसा नहीं होता तो कम से कम कुछ चैनल तो जरूर आगे आए होते, जो इस घटना की वैकल्पिक थ्योरी को चला रहे होते।