इलाज नहीं : ना सरकार का ना कोरोना का

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कोरोना का कहर और सरकार की मनमानी चरम पर है, दोनों में से किसी का भी इलाज अभी उपलब्ध नहीं है। कोरोना नए-नए रूप धरकर लोगों की जान ले रहा है, तो दूसरी तरफ विपक्ष सरकार को किसानों के लिए जानलेवा कह रहा है। बॉलीवुड पर ड्रग्स सेवन का ग्रहण लगा है, इस मामले में देश बहुत देर से जगा है। सुशांत सिंह राजपूत की हत्या नहीं हुई, उसने आत्महत्या की थी, सेन्ट्रल फोरेंसिक साइंस लेबोरेट्री (सीएफएसएल) की टीम ने पूरी माथापच्ची के बाद यही पाया है कि सुशांत को किसी ने नहीं मारा, उसने खुद जान दी है। सीएफएसएल ने अपनी यह अंतिम जांच रिपोर्ट, मामले की पड़ताल कर रही सीबीआई को सौंप दी है, ऐसी खबर है। इसके अलावा शायद उस आरोप में प्रवर्तन विभाग की टीम के हाथ भी खाली हैं, जिसमें सुशांत के खाते से 15 करोड़ रुपये निकालने की बात कही गई थी। अब सारा मामला ड्रग्स पर आकर ठहर गया है, जिसमें बॉलीवुड की अनेक नामचीन अभिनेत्रियों के नाम सामने आये हैं। इनमें से दीपिका पादुकोण, सारा अली खान, श्रद्घा कपूर और रकुल प्रीत सिंह को एनसीबी ने समन भी किया है। एनसीबी के समन से तमाम टीवी चैनलों को कृषि विधेयकों पर किसानों के गुस्से और विरोध को पीछे धकेलने का मौका मिल गया। चैनलों ने दीपिका पादुकोण व अन्य को लेकर बहस, सबसे बड़ी बहस, महाबहस शुरू कर दी।

ज्यादातर एंकरों ने चीख-चीखकर समन को ऐसे पेश किया जैसे किसी बड़ी कोर्ट ने अभिनेत्रियों को अपराधी घोषित कर दिया हो। समन का आधार पुराने वॉट्सऐप संदेश हैं, जिनके बारे में पूछताछ होनी है। लेकिन चैनलों ने तो अभिनेत्रियों को पूछताछ से पहले ही अपराधी बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। एक चैनल पर इसी संदर्भ में हो रही एक बहस में एक पेनलिस्ट ने कहा-‘जिस तरह दीपिका पादुकोण को चैनल पर अपराधी तौर पर पेश करने का काम किया जा रहा है, अगर उससे परेशान होकर दीपिका डिप्रेशन में आ गईं और आत्महत्या करने जैसा कदम उठा बैठी तो इसके लिए कौन जिमेदार होगा? सवाल उचित हैप्रसिद्घि के शिखर पर खड़ा कोई भी शख्स डिप्रेशन में आकर ‘अब जीना बेकार है’- मानकर जान देने के बारे में सोच सकता है। दीपिका व अन्य अभिनेत्रियां आदि यदि पूछताछ और जांच के बाद ड्रग्स की खरीद और सेवन की अपराधी पाई जाएं तो कानून के हिसाब से कड़ी से कड़ी सजा मिले। लेकिन टीआरपी बढ़ाने और अपने आकाओं को खुश करने के लिए देश तक पहुंचने से तमाम जरूरी खबरों को रोकने के लिए अभिनेत्रियों को अपराधी के रूप में खड़ा कर देने की मीडियाई चाल को उचित नहीं ठहराया जा सकता। ड्रग्स के काले कारोबार को रोकने नहीं बल्कि जड़ से उखाडऩे के सार्थक प्रयास सरकार को करने चाहिए, सरकार कर भी रही होगी।

लेकिन उन प्रयासों पर तब उंगली उठती है जब सर्वोच्च न्यायालय कहता है’जितनी ड्रग्स की तस्करी खुले बाजार में होती है, उससे कहीं ज्यादा तो मालखानों से होती है। सैंकड़ों करोड़ की हेरोइन मालखानों में रहती है और चार-पांच साल बाद जब केस कोर्ट में आता है तो बताया जाता है उसे तो चूहे खा गये।’ या सरकार की तरफ से इन ‘नशेड़ी चूहों’ के खिलाफ कोई कदम उठाया गया है, अगर उठाया गया है तो उनकी खबरें टीवी-अखबारों में यों नहीं आती हैं और अगर कोई कदम नहीं उठाया गया है तो यों? या किसी ने किसी चैनल पर ‘नशेड़ी चूहों’ के बारे में कोई रिपोर्ट या कोई बहस होते देखी है, नहीं देखी होगी। इसके पीछे का कारण और रहस्य सुलझाने का प्रयास भी कभी होता नहीं दिखा है। सरकार के पास ऐसी तेज तर्रार एनसीबी है, जो पांच-दस साल पुराने वॉट्सऐप मैसेजों को सूंघकर नशाखोरों को दबोच लेने का हुनर रखती है। सरकार ने एनसीबी से यों नहीं कहा कि मालखानों में करोड़ों-अरबों की ड्रग्स को खाकर भी छुट्टा घूमने वाले ‘चूहों’ को पकड़कर उनके अंजाम तक पहुंचाओ। बड़ा लोचा है। फिलहाल देखते रहिए दीपिका पादुकोण के एक शॉट को बारबार लगातार हर चैनल पर। योंकि देश में अभी तो यही सबसे बड़ा मुद्दा है।

राकेश शर्मा
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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