गंगा में हर साल बाढ़ क्यों?

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पिछली सदी में कई मौकों पर हुगली नदी सूख जाती थी। कोलकाता में पीने के पानी की समस्या उत्पन्न हो जाती थी। कोलकाता और हल्दिया बंदरगाहों पर जहाजरानी नहीं हो पाती थी। तब गंगा पर फरक्का बराज बनाया गया। इसके बाद बांग्लादेश से समझौता कर गंगा का आधा पानी बांग्लादेश के लिए छोड़ा जाने लगा और आधा पानी हुगली में डालना शुरू कर दिया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि आज हुगली बारहों महीने जीवित है। लेकिन इसी के परिणामस्वरूप तीन समस्याएं भी उत्पन्न हो गई हैं। पहली समस्या यह कि गंगा अपने साथ जो गाद लाती है वह फरक्का से आगे असंतुलित रूप से बहती है। फरक्का बराज के गेट के नीचे से पानी बांग्लादेश को और ऊपर से हुगली को जाता है। गाद की प्रवृत्ति नीचे बैठने की होती है इसलिए बांग्लादेश को गाद आधिक जाती है।

गाद का भूखा समुद्र मेरे आकलन में 80 प्रतिशत गाद बांग्लादेश को और 20 प्रतिशत हुगली को जाती है। गाद के इस असंतुलन से दोनों तरफ समस्या है। बांग्लादेश में गाद ज्यादा जाने के कारण यह पद्मा नदी के पेटे में जमा हो रही है और वहां बाढ़ की विकराल समस्या उत्पन्न हो गई है। हालांकि इससे एक लाभ भी हुआ है। वह यह कि कुछ गाद समुद्र तट तक पहुंच रही है और इस तरह बांग्लादेश की भूमि का विस्तार हो रहा है। दूसरी तरफ हुगली में गाद कम जाने के कारण यह समुद्र तक कम पहुंच रही है। समुद्र में गाद के लिए स्वाभाविक भूख होती है, जैसे हमारी रोटी खाने की भूख होती है। समुद्र की भूख को हुगली द्वारा पूरा न किए जाने के कारण समुद्र ने हमारे तटों को खाना शुरू कर दिया है। इसलिए फरक्का बराज बनने के बाद गंगासागर द्वीप का भारी कटान हो रहा है। इस कटान में कुछ योगदान समुद्र के स्तर के बढ़ने का भी है, लेकिन गाद कम पहुंचने का प्रभाव तो है ही।

दूसरी समस्या है कि हमने टिहरी बांध बनाकर भागीरथी नदी द्वारा लाई जा रही गाद को पहाड़ में रोक लिया है। अलकनंदा द्वारा लाई जा रही गाद को भी हरिद्वार और नरोरा बराज से निकाल लिया है। फलस्वरूप नरोरा के नीचे गंगा में पानी और गाद दोनों कम है। पानी कम होने के कारण गंगा का वेग कम है। वेग कम होने का नतीजा यह हो रहा है कि यद्यपि गाद की मात्रा कम है, फिर भी वह गाद नदी के पेटे में ज्यादा जमा हो रही है। गंगा का स्वभाव है कि वह प्रतिवर्ष अपने पेटे में कुछ गाद जमा करती रहती है और 5 या 10 वर्षों के बाद जब बड़ी बाढ़ आती है तो इस गाद को ढकेलकर समुद्र तक पहुंचा देती है। लेकिन बड़ी बाढ़ अब न आने के कारण जो भी गाद नदी के पेटे में जमा हो रही है वह समुद्र को ढकेली नहीं जा रही है। परिणामस्वरूप गंगा का पेटा ऊंचा हो रहा है। पानी अगल-बगल फैल रहा है जिसके कारण बिहार में बाढ़ अधिक आ रही है। कोसी और गंडक जैसी गंगा की सहायक नदियों के पानी को समुद्र तक पहुंचाने की क्षमता का ह्रास हो गया है। इसलिए इन नदियों में भी बाढ़ आ रही है।

तीसरी समस्या है कि हमने बांग्लादेश के साथ समझौता कर रखा है कि गंगा द्वारा लाए गए पानी में से 50 प्रतिशत बांग्लादेश को और 50 प्रतिशत हुगली को हर समय दिया जाएगा। हर समय 50 प्रतिशत पानी बांग्लादेश को दे देने से हुगली में बड़ी बाढ़ अब नहीं आ रही है। इस कारण जहाजरानी प्रभावित हो रही है। कारण यह कि गंगा के मुहाने पर ज्वार तेजी से आता है और अपने साथ भारी मात्रा में बालू लाता है। लेकिन भाटा धीमा होने के कारण उतनी मात्रा में बालू वापस नहीं जाती। ऐसे में ज्वार द्वारा लाई जा रही बालू गंगा में जमा होती जाती है। हल्दिया और कोलकाता के बंदरगाहों के पास गंगा का पेटा ऊंचा हो रहा है और जहाजरानी प्रभावित हो रही है। आज जहाज के सामने एक ड्रेजर चलता है जो गंगा के पेटे को साफ करता है। तभी जहाज बंदरगाहों तक पहुंच पा रहे हैं। समय के साथ यह समस्या विकराल होती जा रही है और संभव है कि 10-20 वर्षों में इन बंदरगाहों को हमें बंद करना पड़े।

इन समस्याओं से निपटने के लिए हमें फरक्का बराज के आकार पर पुनर्विचार करना होगा। फरक्का बराज के स्थान पर हमें जालंगी और भैरवी आदि नदियों की ड्रेजिंग करके गंगा के पानी को हुगली में ले जाने पर विचार करना चाहिए जिससे पानी के साथ पर्याप्त मात्रा में गाद भी हुगली को जाए तथा समुद्र की भूख को पूरा करे। दूसरा हमें टिहरी बांध और हरिद्वार तथा नरोरा बराजों को हटाने पर विचार करना चाहिए, जिससे गंगा में बड़ी बाढ़ वापस आए और हर वर्ष की बाढ़ से हमें छुटकारा मिले। सिंचाई के लिए उत्तर प्रदेश और मैदानी क्षेत्रों में वर्षा के जल का संग्रहण कर उसे भूमिगत तालाबों में एकत्रित करना चाहिए।

नया समझौता हो सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड के अनुसार उत्तर प्रदेश के भूमिगत तालाबों की क्षमता टिहरी से लगभग 30 गुना है। उनपर निर्भरता बढ़ाने से मानसून के समय गंगा में बड़ी बाढ़ आएगी और जमा गाद को समुद्र तक ढकेल कर गंगा के चैनल को पुनः साफ कर देगी। इससे आने वाले समय में सालाना बाढ़ का आकार कम हो जाएगा। टिहरी आदि बांधों से हमने बड़ी बाढ़ को रोक लिया है लेकिन नदी का पेटा ऊंचा होने से अब हर छोटी बाढ़ विकराल रूप ले रही है। तीसरा, हम बांग्लादेश से समझौता करें कि मानसून के समय गंगा का 80 प्रतिशत पानी एक महीने बांग्लादेश को और एक महीने हुगली को दिया जाए जिससे हुगली गाद को समुद्र तक धकेल सके और गंगासागर का कटान रुके।

भरत झुनझुनवाला
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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