हिंदी मत थोपें, सिर्फ अंग्रेजी हटाएं

0
158

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री इ.के. पलानीस्वामी ने नई शिक्षा नीति के विरुद्ध झंडा गाड़ दिया है। उन्होंने कहा है कि तमिलनाडु के छात्रों पर हिंदी नहीं लादी जाएगी। वे सिर्फ तमिल और अंग्रेजी पढ़ेंगे। उनके इस कथन का समर्थन कांग्रेस समेत सभी तमिल दलों ने कर दिया है। तमिलनाडु की सिर्फ भाजपा पसोपेश में है। उसने मौन साधा हुआ है। भारत सरकार भी उसका विरोध क्यों करे ? वह भी मौन साधे रहे तो अच्छा है। 1965-66 में केंद्र सरकार ने तमिल पार्टी द्रमुक के इसी रवैए का विरोध किया था तो तमिलनाडु में जबर्दस्त हिंदी-विरोधी आंदोलन चल पड़ा था। मुख्यमंत्री सी.एम. अन्नादुरई ने विधानसभा में केंद्र की त्रिभाषा नीति के विरोध में और द्विभाषा नीति के पक्ष में सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित करवाया था।

अब पलानीस्वामी को कोई प्रस्ताव पारित करने की जरुरत नहीं पड़ेगी, क्योंकि नई शिक्षा नीति में राज्यों को पहले से ही छूट दे रखी है कि वे भाषा के मामले में जो उन्हें ठीक लगे, वह करें। यदि शिक्षा मंत्री डॉ. निशंक इस मुद्दे पर कोई विवाद खड़ा करते हैं तो यह ठीक नहीं होगा। अब वह करना जरुरी है, जो मैं 1965 से अब तक कहता चला आ रहा हूं। जब 1965-66 में पीएच.डी. करते समय मेरा विवाद संसद में उछला था, तब अन्नादुरई राज्यसभा के सदस्य थे। उनके सारे सदस्यों ने मेरे विरुद्ध संसद में इतनी बार हंगामा किया कि सत्र की कार्रवाइयां ठप्प हो जाती थीं लेकिन अन्नादुरईजी से मिलकर मैंने जब उनको समझाया कि मैं खुद हिंदी थोपने का विरोधी हूं तो द्रविड़ मुनेत्र कड़गम का विरोध ठंडा पड़ गया।

मैंने उनसे कहा कि मैं बस अंग्रेजी थोपने का विरोधी हूं। यदि भारत सरकार इस नई शिक्षा नीति के साथ-साथ यह घोषणा भी कर देती कि सरकारी भर्तियों और उच्चतम सरकारी काम-काज में भी अंग्रेजी नहीं थोपी जाएगी तो सारा मामला हल हो जाता। तमिलनाडु के जो भी लोग अखिल भारतीय स्तर पर आगे बढ़ना चाहते हैं, वे अपने आप सोचते कि उन्हें हिंदी सीखनी चाहिए या नहीं ? मैंने म.प्र. और उ.प्र. में कई तमिल अफसरों को इतनी धाराप्रवाह और शुद्ध हिंदी बोलते हुए सुना है कि हिंदीभाषाी लोग भी उनका मुकाबला नहीं कर सकते। हिंदी बिना थोपे ही सबको आ जाएगी लेकिन सरकार में इतना दम होना चाहिए कि वह सरकारी भर्ती और काम-काज से अंग्रेजी को तुरंत बिदा करे। लेकिन मैं यह भी चाहता हूं कि अंग्रेजी ही नहीं, कई विदेशी भाषाएं हमारे छात्र स्वेच्छया सीखें। यह विदेश व्यापार, विदेश नीति और उच्च-शोध के लिए जरुरी है।

डा.वेदप्रताप वैदिक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here