अनुत्पादक मुद्दों पर वापस न जाएं

0
205

हमें कोविड-19 के साथ रहते हुए 6 महीने हो चुके हैं। इस दौरान हमें कोरोना के बाद के भारत के लिए योजना बनाने का मौका भी मिला है, जब उम्मीद है कि वायरस नियंत्रण में होगा लेकिन हमें अर्थव्यवस्था खड़ी करने के लिए बहुत काम करना होगा। ये रही कोरोना के बारे में वे बातें जो हम 6 महीने पहले नहीं जानते थे। पहले बुरी खबर। कोरोना काफी लचीला है। उदाहरण के लिए कोई भी फ्लू वायरस भारत की गर्मियों में इस तरह नहीं फैला था। वायरस अपने आप नहीं जाएगा, जैसा पहले सोचा गया था। खासतौर पर बड़े लोकतंत्रों में इसे रोकना भयानक काम है। वास्तव में सबसे ज्यादा कोरोना मामले वाले तीन देश (अमेरिका, ब्राजील और भारत) दुनिया के शीर्ष 3 लोकतंत्र भी हैं। हालांकि, कुछ अच्छी खबरें भी हैं। कोरोना पॉजिटिव की संख्या की तुलना में मृत्यु दर उससे कम है, जैसा पहले सोचा गया था (1% से कम)। इस लेख के लिखे जाने तक मरने वालों की संख्या करीब 7 लाख है। जबकि यह संख्या भी बड़ी है, लेकिन दुनियाभर में इस साल 3.3 करोड़ लोग विभिन्न कारणों से मरे हैं। (स्रोत: वर्ल्डमीटर) कोरोना के बारे में एक और सकारात्मक खबर यह है कि संपूर्ण लॉकडाउन की तुलना में मास्क व सोशल डिस्टेंसिंग जैसे आसान तरीके लागू करने से भी संक्रमण कम हो सकता है।

अंतत: सबसे सकारात्मक खबर यह है कि कोरोना के कई वैक्सीन ट्रायल के अंतिम, तीसरे चरण में हैं। एक आशावादी होने के नाते और आंकड़ों व इतिहास के आधार पर मैं यह कह सकता हूं कि फरवरी 2021 तक कोविड-19 के वैक्सीन के उपलब्ध होने की संभावना 80% से ज्यादा है। हमें आशावादी ही होना चाहिए। अगर हम उम्मीद छोड़ देंगे तो भारतीय अर्थव्यवस्था को कभी नहीं उबार पाएंगे। निराशावादी को संकट अंत जैसा लगता है। आशावादी के लिए संकट अंत नहीं, नई शुरुआत है। आशावादी परिदृश्य यह है कि भारत के लिए यह शानदार, सदियों में एक बार मिलने वाला अवसर है। चीन की फैक्टरियों से निकलते सामान से पूरी दुनिया आत्म संतुष्ट थी। अगर उन्हें बढ़ना होता था तो वे बस चीन में क्षमता बढ़ा देते। अब ऐसा नहीं होगा। अब वे अगर चीन में अपने कारखाने बंद नहीं भी करते हैं तो कम से कम नया कारखाना शुरू करने से पहले दो बार सोचेंगे। यही भारत के लिए मौका है कि वह दुनिया से कहे, ‘सुनिए, हम तैयार हैं। हम आपके लिए सामान बनाएंगे। हमें एक मौका दें।’ लेकिन सिर्फ आमंत्रण काफी नहीं होगा। हमें कुछ बदलाव लाकर चीन का विकल्प बनना होगा। यह सिर्फ राजकोषीय खर्चों के प्रतिशत और अंतहीन आर्थिक आंकड़ों से भरे सुझावों की लफ्फाजी से नहीं होगा।

इसके लिए हमें इन व्यावहारिक बदलावों की जरूरत है। 1. बेहतर इंटरनेट कनेक्टिविटी: यह 2020 है, धीमा इंटरनेट या खराब वाई-फाई कनेक्शन का बहाना नहीं चलेगा। कोरोना के बाद डेटा पर निर्भरता कई गुना बढ़ गई है। भारत चीन और अन्य एशियाई देशों की तुलना में इंटरनेट स्पीड में बहुत पिछड़ा हुआ है। अगर आपका वाई-फाई खराब है तो बतौर राष्ट्र आपको गंभीरता से नहीं लिया जा सकता। 2. बंदरगाहों, ट्रेनों और यहां तक कि सड़कों की गति बेहतर बनाना: हांगकांग-चीन के बंदरगाह हमसे पांच गुना तेजी से माल का परिवहन करते हैं। अंतहीन कागजी कार्यवाही, अनुमतियां, अधिकारियों का ऐसा व्यवहार जैसे हर बिजनेस धोखेबाजी है, ये सब प्रतिस्पर्धी होने के सही तरीके नहीं हैं। इन्हें रोकें। ट्रेनों और सड़कों को भी तेज होना होगा। हमारी ट्रेनें अभी भी 1980 के दशक की गति से चल रही हैं। हर ट्रेन को बुलेट ट्रेन बनाना जरूरी नहीं है लेकिन वे बैलगाड़ी भी नहीं रह सकतीं। 3. अड़चन-मुक्त-भारत बनाएं: जहां सरकार कांग्रेस-मुक्त भारत बनाने के अपने राजनीतिक एजेंडा पर अच्छा प्रदर्शन कर रही है, वहीं अब समय है कि हम अपने बिजनेस अड़चन मुक्त बनाएं।

ये वे अड़चनें हैं जो बाबुओं, नियामकों, नेताओं व किसी भी तरह की शक्ति वाले व्यक्ति से आती हैं, जो निवेशक को परेशान करती हैं। अगर कोई 1500 करोड़ रुपए का प्लांट चीन से भारत लाना चाहता है तो आप कैसे मुझे गारंटी दे सकते हैं कि कोई अड़चन नहीं आएगी? इस आधारभूत सवाल के जवाब से ही भारत की कोरोना के बाद की आर्थिक स्थिति, हमारी नई पीढ़ी का भविष्य और खुलकर कहूं तो कुछ दशकों बाद भारत की दुनिया में जगह तय होगी। भारत आसानी से कोरोना संकट को अवसर में बदल सकता है। शायद इसलिए चीन को हम थोड़ा खतरा लगते हैं। हालांकि सिर्फ सीना पीटने, नारे लगाने और देशभक्ति का उत्साह दिखाने से हम अगले मैन्यूफैक्चरिंग हब नहीं बन सकते। हमें ध्यान केंद्रित कर तैयारी करनी होगी और दुनिया को आकर्षित करने वाला कुछ देना होगा। एक बार कोरोना खत्म हो जाए तो हम अनुत्पादक मुद्दों पर वापस न जाएं। बल्कि कोरोना का वैक्सीन पा चुकी दुनिया की तैयारी अभी से शुरू करें। अपनी अर्थव्यवस्था को वैक्सीन लगाएं ताकि वह स्वस्थ रहे और आने वाले दशकों में फले-फूले।

चेतन भगत
(लेखक अंग्रेजी के उपन्यासकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here