दूरगामी नीतियों की दरकार

0
523

गत15 जून को गलवान घाटी में जो भी हुआ, बहुत बुरा हुआ। ऐसा लगा मानों हम पत्थर युग में रह रहे हैं। लेकिन अब अच्छी बात यह हुई है कि पिछले सोमवार को भारत और चीनी सेना के कोर कमांडरों की मीटिंग में तय हुआ कि दोनों पक्ष वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) से पीछे हटेंगे। भारत ने यह भी साफ किया कि चीन मई से पहले वाली स्थिति बहाल करे। आज देश में कुछ ‘राष्ट्रभक्त’ लोग यह तर्क दे रहे हैं कि चीन के साथ अब तक हुए तमाम समझौतों को रद्द कर देना चाहिए। 1993, 1996, 2005, 2013 और 2015 में एलएसी को लेकर कई समझौते हो चुके हैं। देखा जाए तो काफी हद तक इन संधियों की ही वजह से हिमालय की चोटियों पर शांति बनी रही है। आखिरी सशस्त्र झड़प 45 वर्ष पहले 1975 में हुई थी जिसमें दोनों तरफ जान-माल का नुकसान हुआ था। आज इन समझौतों को रद्द करने की बजाय यह देखने की ज़रूरत है कि इनमें क्या कमियां रह गईं। एलएसी को लेकर आपसी अविश्वास और शक दूर करने की भी जरूरत है। भारत द्वारा दौलत बेग ओल्डी की तरफ सड़क के निर्माण को लेकर, जो कि भारत का वाजिब हक है, चीन के अपने संशय हैं। चीन को यह भी लग रहा है कि जब अनच्छेद 370 खत्म करके लद्दाख को केंद्र शासित क्षेत्र घोषित किया गया तो इससे उस क्षेत्र में भारत का प्रभाव बढ़ गया है, जिसके एक भाग पर उसकी अपनी दावेदारी बरकरार है। इसलिए तमाम संशयों को दूर करने के लिए केवल सामरिक स्तर पर नहीं, बल्कि राजनयिक व राजनीतिक स्तर पर भी वार्ता की शुरुआत होनी चाहिए।

दूसरे, भारत ने अपने दशकों पुराने मित्र रूस की ओर हाथ बढ़ाकर सराहनीय काम किया है। भारत जानता है कि पिछले कुछ वर्षों से पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका के रवैये से तंग आकर चीन और रूस एक दूसरे के नजदीक आए हैं। आज चीन रूस का सबसे बड़ा व्यापारिक पार्टनर है। रूस का कच्चा माल चीन बड़ी मात्रा में आयात करता है और चीन की उपभोक्ता वस्तुओं के लिए रूस एक बड़ा बाजार मुहैया कराता है। स्वाभाविक है कि भारत चाहेगा, रूस और चीन के आपसी संबंधों का फायदा उसे मिले। पिछले कुछ महीनों से डॉनल्ड ट्रंप ने चीन के विरुद्ध जहर उगलना तेज कर दिया है। एच- 1 बी वीजा रद्द करने, न करने की बात काफी दिनों से चल रही थी। इसके समानांतर ट्रंप चीन और भारत के बीच मध्यस्थता करने की इच्छा भी जाहिर कर रहे थे। लेकिन जैसे ही भारत ने विवाद सुलझाने के उद्देश्य से रूस की ओर मुंह मोड़ा, फौरन ट्रंप ने ऐलान कर दिया कि एच-1 बी वीजा समाप्त किया जा रहा है। जिसका सीधा असर भारत के आईटी क्षेत्र पर पड़ेगा। ट्रंप और अमेरिकी मीडिया विश्व भर में चीन के विरुद्ध माहौल बनाने में सक्रिय हैं। उनके अनुसार कोविड-19 वायरस एक चाइनीज लैब में विकसित किया गया ताकि चीन अमेरिका पर जैविक हमला कर सके। डब्ल्यूएचओ ने जब इसका खंडन किया तो ट्रंप ने उसे दी जाने वाली फंडिंग खत्म कर दी। अमेरिका, जर्मनी, ब्रिटेन, जापान, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, स्वीडन, नार्वे और यूरोपियन संसद के कुछ सदस्यों ने मिलकर एक अंतरसंसदीय गठबंधन बनाया है ताकि वे चीन के वैश्विक प्रभाव का मुकाबला कर सकें।

इधर ट्रंप ने 33 चीनी फर्मों और संस्थानों पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है। ट्रंप इस चुनावी वर्ष में चीन के मुद्दे को भुनाना चाहते हैं और उन्होंने अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी डेमोक्रेट उम्मीदवार जोसफ बाइडेन को चीनी एजेंट करार दिया है। सीमा पर 20 जवानों की शहादत के बाद भारत में कई जगह लोगों ने चीनी सामानों की होली जलाई है। सरकार ने भी कुछ कदमों की घोषणा की है ताकि देश के अंदर चीनी माल की बिक्री बाधित की जा सके। परंतु इन छिटपुट कदमों से चीन जैसी बड़ी अर्थव्यवस्था का कुछ नहीं बिगडऩे वाला। आज दुनिया के टॉप 10 बैंकों में 4 और टॉप 500 कंपनियों में 37 चीनी हैं। चीन की सरकारी कार कंपनी चेरी ऑटोमोबाइल आज निसान, फोर्ड और हुंदेइ को पीछे छोड़ चुकी है। शंघाई इलेट्रिक कंपनी जापान की मित्सुबिशी और मारुबेनी कंपनियों से मुकाबले में कहीं आगे है। पूरी दुनिया में जितना स्टील का उत्पादन होता है, उसका आधा चीन में होता है। चीन की ह्वावी कंपनी, जो शीघ्र ही 5-जी लॉन्च करने वाली है, सैमसंग के बाद दुनिया की सबसे बड़ी सेलफोन विक्रेता-कंपनी है।

ट्रंप ने अभी एक आदेश जारी किया है कि उनके देश में ह्वावी द्वारा निर्मित उपकरणों को कोई नहीं खरीदेगा। आज चीन की आर्थिक प्रगति पश्चिमी देशों, विशेषकर अमेरिका की आंखों में कुछ ज्यादा ही खटक रही है। दूसरे, जिन टेनॉलजी क्षेत्रों में चीन बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर निर्भर था, वहां भी अब चीन की सरकार ने ‘मेड इन चाइना 2025Ó नीति की घोषणा आज से पांच वर्ष पहले ही कर दी थी। जहां पहले चीन थोड़ी कम टेनॉलजी स्तर की वस्तुओं, जैसे खिलौने इत्यादि का निर्माण करता था, वहीं अब वह उच्च स्तर की टेनॉलजी और सेवाओं की ओर मुड़ रहा है। अभी तक चीन 95 प्रतिशत कंप्यूटर चिप्स बाहर से आयात करता था, अब जब वह खुद बनाने लगेगा तो ज़ाहिर है, इंटेल, माइक्रॉन और क्वॉलकॉम जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भारी नुकसान होगा। ऐपल की 20 प्रतिशत सेल आज चीन के बाजार में होती है। यह सब बंद हो जाएगी। उसके सामानों का बहिष्कार करना कोई हल नहीं है। हमें विश्व-बाजार में अपनी जगह बनानी होगी, जहां गला-काट प्रतिद्वंद्विता है। प्रधानमंत्री मोदी ने जो नीतियां ‘आत्मनिर्भर भारत’ बनाने के लिए घोषित की हैं, उनके क्यौरों पर बारीकी से काम करना होगा, वरना जो थोड़ी-बहुत आत्मनिर्भरता बची है, वह भी खत्म हो जाएगी।

अजय कुमार
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here