प्राथमिक शिक्षा के अंग्रेजीकरण के बाद अब प्रदेश सरकार ने यह कवायद माध्यमिक शिक्षा के लिए भी शुरू कर दी है। राजधानी के राजकीय जुबली इण्टर कॉलेज को पहला अंग्रेजी माध्यम स्कूल बनाया गया है। इसके पहले प्राथमिक शिक्षा परिषद के तमाम प्राथमिक विद्यालयों को अंग्रेजी माध्यम में परिवर्तित किया गया था। प्रदेश में विज्ञान, चिकित्सा, प्रोद्योगिकी की शिक्षा पहले से ही अंग्रेजी माध्यम से है। उधर शिक्षा मंत्री का मानना है कि शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होना चाहिए, खासतौर पर प्राथमिक शिक्षा का। विचित्र विडंबना है कि स्वदेशी की बात करने वाली प्रदेश व केंद्र की भाजपा सरकार ने भी मातृभाषा में शिक्षा देने की तरफ कुछ विशेष नहीं किया। वरन अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा देने को प्रोत्साहित किया जा रहा है। 60 के दशक में अंग्रेजी हटाओ अभियान चला था उस समय उच्चशिक्षा से संबंधित पाठ्यपुस्तकों का प्रकाशन हुआ। परंतु उसके बाद यह प्रक्रिया रुक सी गई। वैश्वीकरण के बाद क्षेत्रों में अंग्रेजी का प्रभुत्व बढ़ गया।
प्रतियोगी परीक्षाओं में अंग्रेजी में प्रश्नपत्र आने लगे। उच्च शिक्षा खासतौर पर अभियंत्रिकी, चिकित्सा, प्रबंधन में अंग्रेजी माध्यम का बोलबाला है। ऐसे में हिन्दी माध्यम का पढ़ा विद्यार्थी अपने को ठगा हुआ महसूस करता है। उसे काफी कठिनाई होती है। उसकी प्रतिभा भाषा सीखने में ही खर्च होने लगती है। कोई भाषा सीखने में बुराई नहीं है परंतु अपना कामकाज एक विदेशी भाषा में करना कहां तक उचित है। दलील दी जाती है कि अंग्रेजी वैश्विक भाषा है इसके बिना प्रगति संभव नहीं है। ऐसी दलील देने वाले चीन, जापान, जर्मनी व रूस की तरफ नहीं ध्यान देते हैं। इन देशों ने सारी प्रगति अपनी मातृभाषा को अपनाकर की है। कुछ लोगों की सोच है कि अंग्रेजी में निपुण लोगों को अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों व विदेशों में रोजगार सुलभ होगा तो क्या देश के संसाधनों का उपयोग विदेशों के लिए कार्मिक बनाने में होगा। आज भी उच्चशिक्षा की प्रवेश प्रक्रिया ऐसी है कि मातृभाषा में शिक्षा ग्रहण करने वालों को प्रवेश मिलना मुश्किल है। सरकारी नौकरियों व निजी क्षेत्र में चयन में अंग्रेजी का ज्ञान परखा जाता है। ऊंची फीस देकर निजीक्षेत्र के अंग्रेजी माध्यम वाले विद्यार्थी आसानी से सफलता पा जाते हैं जबकि हिंदी माध्यम वाले के हाथ मायूसी ही लगती है।
ऐसे में कौन अभिभावक चाहेगा कि उसका पुत्र व पुत्री शैक्षिक रूप से समृद्ध होने के बावजूद मात्र एक भाषा के चलते सफलता से दूर रह जाये। यही कारण है कि प्रदेश में हिंदी माध्यम वाले विद्यालयों में छात्रों की संया एकदम न्यून हो गई है। जिन विद्यालयों की पहले काफी अच्छी प्रतिष्ठा थी। जल्दी छात्रों को प्रवेश नहीं मिलता था वहां भी अब उच्च शिक्षा स्तर होने के बावजूद छात्रों की संया घट गई। इन संस्थानों को अब छात्र नहीं मिल रहे हैं जबकि निजी क्षेत्र के अंग्रेजी माध्यम वाले विद्यालयों में प्रवेश की मारामारी है। स्वदेशी की बात करने वाली भाजपा की प्रदेश व केंद्र सरकार को इस तरफ ध्यान देना होगा। प्रोद्योगिकी, चिकित्सा, प्रबंधन सहित अन्य क्षेत्रों में हिंदी भाषा में पाठ्य पुस्तकें उपलध करानी होगी। साथ में छात्रों को हिंदी माध्यम में शिक्षा ग्रहण करने के लिए फीस में छूट व छात्रवृत्ति प्रदान करके प्रोत्साहित करना होगा। हिन्दी माध्यम के माध्यमिक व प्राथमिक विद्यालयों के संसाधनों में वृद्धि करनी होगी।