निजी करण और आत्मनिर्भरता का फर्क

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केंद्र सरकार ने कोरोना वायरस की वजह से पैदा हुए संकट को कथित तौर पर अवसर में बदलते हुए आत्मनिर्भर भारत अभियान शुरू किया है। इसके तहत कथित तौर पर 21 लाख करोड़ रुपए का एक पैकेज भी घोषित किया गया है। प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने मिनिमम गवर्नमेंट और मैक्सिमम गवर्नेंस की बात कही थी। इसी बात को उन्होंने मंगलवार को उद्योग परिसंघ, सीआईआई की 125वीं सालाना बैठक में दोहराया। प्रधानमंत्री ने कहा कि नागरिक के जीवन में सरकार की भूमिका कम से कम करते जाने का लक्ष्य है। सरकार के वाणिज्य मंत्री और फाइनेंस मिनिस्टर इन वेटिंग पीयूष गोयल कई बार पहले बहुत फैंसी अंदाज में यह बात कह चुके हैं कि बिजनेस करना सरकार का बिजनेस नहीं है। ये दोनों बातें एक साथ हो रही हैं। एक तरफ सरकार आत्मनिर्भर भारत अभियान चला रही है और दूसरी ओर निजीकरण का अभियान भी पूरे जोर-शोर से शुरू कर दिया है। सरकार दर्जनों सार्वजनिक कंपनियों को बेचने की तैयारी कर रही है और अभी खबर है कि 50 साल पहले किए गए तब की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के एक बड़े फैसले को पलटने की तैयारी है।

इंदिरा गांधी ने 50 साल पहले बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया था और अब मोदी सरकार बैंकों का निजीकरण करने जा रही है। कहा जा रहा है कि कम से कम तीन बैंकों का सरकार जल्दी ही निजीकरण कर सकती है। बैंकों के विलय के बाद यह नई और बड़ी पहल हो सकती है। सवाल है कि अगर सरकार बैंकिंग सेक्टर से बाहर निकलती है या संचार के क्षेत्र से बाहर आ जाती है या विमानन का कारोबार बंद कर देती है या पेट्रोलियम का कारोबार बंद कर देती है तो इससे आत्मनिर्भर भारत बनाने में कैसे मदद मिलेगी? यह निजीकरण है, जो किसी भी पहलू से देखने पर भारत में आत्मनिर्भर बनाने के काम नहीं आने वाला है। इसका पहला और सबसे बुनायादी कारण यह है कि सार्वजनिक क्षेत्र की जो कंपनियां भारत सरकार बेचेगी या किसी सेक्टर में निजी उद्यम को बढ़ावा देगी तो सरकारी कंपनी खरीदने के लिए निज उद्यम चलाने के लिए किसी भारतीय कंपनी के पास पैसा नहीं है भारत सरकार एयर इंडिया बेचना चाह रही है। पिछले एक साल से खरीददार खोजे जा रहे हैं।

सरकार ने इसे चलाने के लिए भारतीय करदाताओं के पैसे में से दिए गए 50 हजार करोड़ रुपए का कर्ज माफ कर रही है और सिर्फ विमानों की लीज के लिए दिए गए कर्ज को चुका कर विमानन कंपनी बेचने को तैयार है फिर भी खरीददार नहीं मिल रहे हैं। इसी तरह सरकार को उम्मीद है कि भारत पेट्रोलियम कंपनी बेच कर उसे 60 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा मिलेंगे। पर खरीददार कहां है? अगर भारत पेट्रोलियम कंपनी खरीदने के लिए या एयर इंडिया खरीदने के लिए विदेशी कंपनियां आती हैं और पैसा लगाती हैं तो फिर भारत आत्मनिर्भर कैसे बनेगा? यह तो विदेशी पूंजी पर ही निर्भरता हुई। पिछले दिनों भारत सरकार ने एक बड़ा फैसला करते हुए रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा 49 फीसदी से बढ़ा कर 74 फीसदी करने का फैसला किया। इसका मतलब है कि सरकार रक्षा उपकरण बनाने के लिए विदेशी कंपनियों को आमंत्रित करते हुए उन्हें पूरे अधिकार दे रही है। इससे कैसे भारत आत्मनिर्भर बनेगा। अभी हम विदेशी कंपनियों से हथियार खरीदते हैं उसके बाद भारत में उत्पादन करने वाली विदेशी कंपनियों से हथियार खरीदेंगे, इसमें क्या बहुत ज्यादा फर्क हो जाएगा?

क्या विदेशी कंपनियां भारत में आकर रक्षा उपकरणों का उत्पादन करने लगेंगी तो वे रक्षा उपकरण स्वदेशी हो जाएंगे? यह बात बाकी सारे सेक्टर के बारे में भी कही जा सकती है। सरकार ने आत्मनिर्भर भारत पैकेज की घोषणा करते हुए एफडीआई के कई नियम बदले और विदेशी कंपनियों को आकर्षित करने के लिए श्रम कानूनों से लेकर भूमि कानून और औद्योगिक विवाद से जुड़े कानूनों में बदलाव का भरोसा दिलाया। क्या इतनी छूट देने के बाद जो विदेशी पूंजी आएगी, उससे बनने वाली सारी चीजें स्वदेशी मानी जाएंगी? जब तक भारत में स्वदेशी तकनीक का विकास नहीं होगा, तब तक स्वदेशी राग गाने का कोई मतलब नहीं है। और स्वदेशी तकनीक तब बनेगी, जब सरकार शोध और विकास में खर्च करेगी। अफसोस की बात है कि इतने भारी-भरकम पैकेज में इस बारे में कुछ नहीं कहा गया है। बहरहाल, ऐसा लग रहा है कि सरकार स्वदेशी, आत्मनिर्भरता, निजीकरण आदि के जुमले बोल तो रही है पर इन्हें लेकर कंफ्यूजन में है।

उसे समझ में नहीं आ रहा है कि स्वदेशी अपनाना है, आत्मनिर्भर होना है या विदेशी पूंजी के जरिए सरकारी कंपनियों का निजीकरण करना है? सरकार के कदमों से कुल मिला कर अभी इतना समझ में आ रहा है कि वह निजीकरण को बढ़ावा दे रही है। सरकारी कंपनियां बेच रही है। बिजनेस से बाहर होने के नाम पर सारे सेक्टर में निजी और विदेशी पूंजी को आमंत्रित करके उसका प्रवेश करा रही है। इससे आत्मनिर्भरता नहीं आएगी, उलटे जितना आत्मनिर्भरता अभी है वह भी खत्म हो जाएगी। नागरिक पूरी तरह से निजी कंपनियों पर निर्भर हो जाएंगे। सरकार को इतना फायदा होगा कि उसे अपना वित्तीय घाटा दूर करने या काबू में करने में के लिए कुछ पैसे मिल जाएंगे। अगर सरकार सचमुच देश को और इसके नागरिकों को आत्मनिर्भर बनाना चाहती है तो सार्वजनिक उपकर्मों को बेचने की बजाय उसे मजबूत करे। अगर उसे मजबूत किया गया तो स्वदेशी और आत्मनिर्भरता दोनों के लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। अन्यथा निजीकरण से दूसरों पर निर्भरता बढ़ती जाएगी।

तन्मय कुमार
(लेखक पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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