रोजगार की चाह में लाखों की संख्या में प्रतियोगी छात्र अध्ययन में अपनी उम्र के कई वर्ष गुजार देते हैं। उनकी आस रहती है कि अपनी प्रतिभा की बदौलत वे मनपसंद नौकरी प्राप्त कर लेंगे। परन्तु सरकारी भर्ती व्यवस्था प्रतियोगी छात्रों के आकांक्षा पर अव्यवस्था के चलते तुषारापात कर देती है। सरकारी नौकरी में फार्म करने से लेकर नौकरी ज्वाइन करने तक बाधाएं ही बाधाएं सामने आती हैं। भर्ती के लिए नए-नए नियम बनाये जाते हैं जो कि अव्यवहारिक भी होते हैं। उसी विभाग की नियुक्ति अलग-अलग नियमों के तहत की जाती है। अव्यवस्थाओं का खामियाजा प्रतियोगी छात्रों को भुगतना पड़ता है। साथ में जिस विभाग की भर्ती होती है। वहां मानवशक्ति की कमी के चलते काम प्रभावित होता है। उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा परिषद के 69000 अध्यापकों की भर्ती पुन: रुक गई है। उच्च न्यायालय ने कुछ प्रतियोगियों की याचिका पर काउंसलिंग पर रोक लगा दी है।
बेसिक शिक्षा परिषद में शिक्षकों की काफी कमी है और इससे बच्चों की शिक्षा प्रभावित हो रही है। इसके बावजूद सरकार की नीतियों व व्यवस्था के चलते बेसिक शिक्षा परिषद की भर्तियां काफी दिनों तक लटकी रही। भर्ती को लेकर मनमाना आदेश व व्यवस्था की वजह से प्रतियोगियों को न्याय के लिए न्यायालय की शरण लेना पड़ती है। विगत दो दशक में बेसिक शिक्षा परिषद में एक दर्जन से अधिक भर्ती के विज्ञापन निकाले गये। हर विज्ञापन में भर्ती के नियम बदल गए। यहां तक कि विज्ञापन निकलने के बाद भी भर्ती के नियम बदल दिए जाते। पूछे गये प्रश्न गलत होना, उत्तर गलत होना, मेरिट में गड़बड़ी, पेपर लीक होना ये भी आरोप इन भर्तियों के साथ जुड़ा रहा। इन सबका खामियाजा नौकरी की बाट जोह रहे प्रतियोगी परीक्षार्थियों व छात्रों को भुगतना पड़ता है। प्रदेश में शिक्षकों की भारी कमी है। यह कमी प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक हैं। संस्कृत विद्यालयों की स्थिति यह है कि कई विद्यालय शिक्षक विहीन हैं।
भर्ती की अव्यवस्था तथा भर्ती पर बार-बार रोक लगाने के कारण ऐसा हुआ है। प्रदेश सरकार ने शिक्षकों की भर्ती के लिए आयोग बना दिया है परन्तु अभी तक यह आयोग कार्य नहीं कर रहा है। माध्यमिक शिक्षा चयन आयोग का भी यही हाल है। वहां विज्ञापन निकलने के बाद कई साल तक उसकी भर्ती प्रक्रिया चलती रहती है। इसी तरह अन्य विभागों के भी भर्ती का यही हाल है। समाजवादी पार्टी की सरकार में पुलिस की भर्ती में अनियमितता के आरोप लगे थे। जिससे भर्ती प्रक्रिया काफी प्रभावित हुई। बाद में मायावती की सरकार ने पुलिस भर्ती बोर्ड बनाकर भर्ती व्यवस्था शुरू की। पुलिस भर्ती बोर्ड की भर्ती परीक्षा पर भी अनेक आरोप लगे।
प्रतियोगी छात्रों को न्याय के लिए धरना प्रदर्शन और न्यायालय की भी शरण लेनी पड़ी। अधिनस्थ सेवा चयन बोर्ड की शुचिता पर प्रश्न चिन्ह लगे। कई भर्तियां संदेह के घेरे में आई। इसके कई अध्यक्षों ने अपना पदभार भी कार्यकाल के बीच में छोड़ा। यहां की भी भर्ती प्रक्रिया को लेकर परीक्षार्थियों में आक्रोश रहा। छात्रों ने धरना पदर्शन भी भर्ती को लेकर किया। लोक सेवा आयोग की भी निष्पक्षता व शुचिता पर प्रतियोगी छात्रों ने कई आरोप जड़े। जिनमें चयन में जाती को लेकर पक्षपात का भी आरोप शामिल है। यहां की नियुक्ति को लेकर पूरे प्रदेश में छात्रों ने जमकर धरना प्रदर्शन किया। आयोग की भर्ती में अनियमितता का आरोप उप्र संस्थागत सेवा मण्डल पर भी लगा है। इस संस्था के पास प्रदेश की सहकारिता क्षेत्र की भर्तियों का दायित्व है।