तंत्रता के प्रारंभिक वर्षों के बाद से ही देश ने जनसांख्यिकी, सामाजिक वास्तविकताओं और ढांचागत चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए आर्थिक सुधारों से जुड़े कई कदम उठाए। एक दौर वह भी था जब भारत खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भरता न होने के कारण अपने आपूर्ति तंत्र को व्यवस्थित करने के लिए खाद्यान्न के आयात पर निर्भर था। इस तरह देश ने कई सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों के दौर देखे हैं। यही वजह है कि भारत में विकास के एक ऐसे अभिनव मॉडल की आवश्यकता महसूस की गई जिसमें सभी ‘वाद’ के साथ सामंजस्य स्थापित करते हुए देश की चुनौतियों के समाधान के बहुमुखी विकल्प मौजूद हों। आजादी के बाद भारत के आर्थिक विकास में सरकारों के व्यापक हस्तक्षेप वाली समाजवादी नीतियों का आवरण स्पष्ट नजर आता था। इसके बाद हमने 90 के दशक में संरचनात्मक आर्थिक सुधारों के जरिए उद्योग नियंत्रित अर्थव्यवस्था से उदारीकरण की ओर कदम बढ़ाया।
इसमें कोई दो मत नहीं कि प्रत्येक चरण में आर्थिक नीतियों का उद्देश्य नागरिकों का कल्याण ही था। लेकिन आर्थिक सुधारों के वर्तमान चरण में हम लोक कल्याण और पूंजी निर्माण के दोहरे लक्ष्य के साथ निरंतर विकास के पथ पर अग्रसर हैं। जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृव में वर्तमान सरकार साा में आई है, उसकी सभी नीतियों का उद्देश्य अभावग्रस्त व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाना रहा है। लोगों के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने के लिए बिजली, रसोई गैस उज्ज्वला, शौचालय, स्वच्छता, आवास, सार्वजनिक वितरण प्रणाली समेत स्वास्थ्य जैसी बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति को प्राथमिकता दी गई। हालांकि अभी भी देश की बौद्धिक संपदा का प्रभावी उपयोग नीति निर्धारकों के लिए एक बड़ी चुनौती है। चुनौती सिर्फ प्रतिभाओं के पलायन को रोकने की नहीं है, बल्कि उद्यम और उद्यमशीलता को बढ़ावा देने वाला वातावरण बनाने की भी है।
टाटा समूह की 19 वीं से 21 वीं सदी की यात्रा का वर्णन करती आरएम लाला की पुस्तक ‘क्रिएशन ऑफ वेल्थ’ में बताया गया है कि निजी क्षेत्र ने किस तरह राष्ट्र के निर्माण में अपनी भूमिका का निर्वहन किया। इस समूह ने औपनिवेशिक काल की प्रतिकूल परिस्थितियों में भी हाइड्रो-इलेक्ट्रिक संयंत्र (1920) और एयर इंडिया इंटरनेशनल (1948) की स्थापना की। हमें देश में आर्थिक असमानता को दूर करने के लिए इस बौद्धिक पूंजी की ताकत को प्रोत्साहित करना होगा। कोविड-19 खुद में आत्मनिर्भर भारत के अवसरों का संदेश समाहित किए हुए है। हाल ही प्रधानमंत्री द्वारा घोषित 20 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज के जरिए मांग और आपूर्ति तंत्र को मजबूती दी गई है। इस क्रम में ग्रामीण विकास केंद्रित रोजगार गारंटी योजनाओं के द्वारा लोगों के हाथ में सीधे नकदी भी पहुंचाई गई है। यह कदम मांग और आपूर्ति दोनों मोर्चों पर असरदार साबित होगा।
सूक्ष्म, लघु और छोटे उद्योगों के पास नकदी का प्रवाह बढ़ेगा तो इसका बड़ा हिस्सा लोगों को होने वाले भुगतान के रूप में सामने आएगा। आर्थिक पैकेज की अंतिम किस्त में विामंत्री निर्मला सीतारमन ने सार्वजनिक उपक्रमों से जुड़ी नई नीति की घोषणा की जिसमें रणनीतिक क्षेत्रों में निजी क्षेत्र की सहभागिता के प्रोत्साहन का जिक्र है। इसके अतिरिक्त कई गैर रणनीतिक क्षेत्रों में सरकार अपनी सार्वजनिक हिस्सेदारी का विनिवेश करने जा रही है। उदाहरण के लिए भारत ने विाीय वर्ष 2019-20 में 170 मीट्रिक टन थर्मल कोल का आयात किया। इसमें 55 मीट्रिक टन गैर-प्रतिस्थानिक थर्मल कोल अनिवार्य रूप से तटीय बिजली संयंत्रों द्वारा आयातित किए जाते हैं क्योंकि ऐसे ताप विद्युत संयंत्रों का संचालन आयातित कोयले से ही किया जा सकता है। देखा गया है कि आयातित कोयले के विकल्प के रूप में 115 मीट्रिक टन मिश्रित योग्य उत्पादन सार्वजिक उपक्रमों और कमर्शल माइनिंग के तहत निजी कंपनियों द्वारा संभव है।
यह कदम लगभग 80 हजार करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा की बचत के साथ बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन में मददगार होगा। रक्षा उत्पादन भी इसी तरह असीमित संभावनाओं से युक्त क्षेत्र है। रक्षा विनिर्माण क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा 49 प्रतिशत से बढ़ाकर 74 प्रतिशत की गई है। कुछ महत्वपूर्ण हथियारों और संसाधनों के आयात पर प्रतिबंध भी रहेगा। ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के अंतर्गत अन्य उपायों में तकनीकी और प्रक्रियागत रूप से आने वाली अड़चनों के कारण कंपनी एक्ट के नाम पर उद्यमियों के साथ होने वाली प्रताडऩा को कम करने का प्रयास किया गया है। आवश्यक वस्तु अधिनियम में सुधार प्रभावी कदम है, इससे कृषि उत्पादों को विनियमित करने में सहयोग मिलेगा।
इन उपायों का मकसद ऐसा आर्थिक परितंत्र विकसित करना है जिससे पूंजी निर्माण, उद्यमशीलता, तकनीक वैश्वीकरण और कौशल विकास के जरिए अवसरों को भुनाया जा सके। हमने दूरसंचार, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और नागरिक उड्डयन क्षेत्र में इस सफलता का साक्षात्कार किया है। कोविड-19 के बाद की परिस्थितियों में विश्व बाजार व्यावसायिक तौर-तरीकों में बदलाव का गवाह बनेगा। यह बदलाव निश्चित रूप से डिजिटल संसाधनों की स्वीकार्यता के साथ कार्यदक्षता बढ़ाने और नए अवसरों को सृजित करने के रूप में हमारे समक्ष होगा। घरेलू मोर्चे पर स्थानीय आपूर्ति तंत्र को मजबूत कर स्वदेशी वस्तुओं को वैश्विक ब्रांड में बदला जा सकता है। इसका यह तात्पर्य नहीं निकाला जाना चाहिए कि सरकार की नीतियां पूंजीवाद की पैरोकार हैं, अपितु सरकार निजी पूंजी का आर्थिक व सामाजिक समृद्धि के हेतु संवर्धन करना चाहती है।
धर्मेंद्र प्रधान
(लेखक केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस तथा इस्पात मंत्री हैं)