भारत में खेती पर मंडराता खतरा

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कोरोना और अंफान तूफान के कारण हुई भयानक तबाही के बीच पाकिस्तान से आए टिड्डी दलों के हमले ने देश के कई इलाकों में मुश्किलें बढ़ा दी हैं। पाकिस्तान की सीमा से लगते जैसलमेर, श्रीगंगानगर पार कर ये दल राजस्थान के जोधपुर, फलौदी, बाड़मेर, नागौर, पाली, अजमेर, पुष्कर, जयपुर इत्यादि जिलों में 40 हजार हेटेयर भी ज्यादा क्षेत्र में फसलों को नष्ट कर चुके हैं। फिर मध्य प्रदेश के मालवा और ग्वालियर अंचल में फसलों तथा पेड़- पौधों की पत्तियां चट करने के बाद इन्होंने सीहोर, होशंगाबाद, छतरपुर सहित कई अन्य जिलों में कहर बरपाना शुरू कर दिया है। टिड्डियों का ढाई से तीन किलोमीटर लंबा एक दल झांसी के रास्ते उत्तर प्रदेश में और वैसा ही एक और दल अमरावती, नागपुर होते हुए महाराष्ट्र में भी दस्तक दे चुका है। भारत में वर्ष 1926 से 1931 के बीच टिड्डियों के कारण तत्कालीन मुद्रा में करीब दस करोड़ रुपये तथा 1940 से 1946 के दौरान दो करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था। इसे देखते हुए वर्ष 1946 में लोकस्ट वार्निंग ऑर्गनाइजेशन (एलडल्यूओ) यानी टिड्डी चेतावनी संगठन की स्थापना की गई थी।

भारत में 1949-55 के दौरान टिड्डी दलों के हमले से दो करोड़, 1959-62 के दौरान पचास लाख तथा 1993 में करीब 75 लाख रुपये के नुकसान का अनुमान लगाया गया था। अभी ऐसे हमलों में नुकसान करोड़ों-अरबों रुपये तक पहुंच जाता है। महज ढाई-तीन इंच आकार का यह कीट प्रतिदिन अपने वजन के बराबर खाना खा जाता है। संयुक्त राष्ट्र के संगठन ‘फूड एंड ऐग्रिकल्चर ऑर्गनाइजेशन’ के अनुसार एक वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में आठ करोड़ के करीब टिड्डियां हो सकती हैं। राजस्थान के कृषि अधिकारियों के अनुसार उन्होंने जो टिड्डी दल देखा है, वह छह किलोमीटर लंबा तथा तीन किलोमीटर चौड़ा था। ऐसे में अनुमान लगाना कठिन नहीं है कि इतनी सारी टिड्डियों के हमलों से एक दिन में कितने बड़े पैमाने पर फसलों का सफाया हो सकता है। ब्रिटेन के फेरा द्वारा टिड्डियों पर किए गए एक शोध में पाया गया है कि इनकी खाने की क्षमता और उडऩे की रफ्तार मवेशियों से कहीं तेज है। अनुमान है कि टिड्डियों का एक छोटा झुंड भी एक दिन में करीब 35 हजार लोगों का खाना खा जाता है। इनका एक छोटा दल एक दिन में दस हाथियों या पच्चीस ऊंटों के खाने के बराबर फसलें चट कर सकता है।

टिड्डी दल दस किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से सफर करता है और एक दिन में 150 किलोमीटर तक उडऩे की क्षमता रखता है। इनका जीवनकाल पांच महीने का होता है। पाकिस्तान की तरफ से आए टिड्डी दलों ने पिछले साल भी भारत में 21 मई को दस्तक दी थी, लेकिन तब उस हमले को हल्के में लिया गया था। जैसे-जैसे इनका दायरा विस्तृत होता गया, वैसे-वैसे यह बात साफ होती गई कि यह हमला 1993 से भी बड़ा है। अगस्त-सितंबर 1993 में भारत-पाकिस्तान सीमा के पास भारी बारिश के कारण टिड्डियों के प्रजनन के लिए अनुकूल स्थिति बन गई थी और तब राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश इत्यादि राज्यों में टिड्डी दल का सबसे खतरनाक हमला देखा गया था। 2019 में राजस्थान के जैसलमेर इलाके में रेगिस्तानी टिड्डी दलों के हमले की शुरुआत के बाद इनका प्रकोप करीब नौ महीनों तक देश के कई हिस्सों में देखा गया। खाद्य और कृषि संगठन ने पिछली जुलाई में कहा था कि टिड्डियों का प्रकोप अधिकतम नवंबर माह तक रह सकता है, लेकिन यह सिलसिला जब दिसंबर और जनवरी के ठंडे मौसम में भी बरकरार रहा तो कृषि वैज्ञानिक चौंके। टिड्डियां सर्दियों में अपने आप ही खत्म हो जाती हैं लेकिन जलवायु परिवर्तन या किसी और वजह से इनका व्यवहार बदल गया है और ये कड़ाके की ठंड में भी कहर बरपाने लगी हैं।

अक्तूबर 1993 में ठंड के कारण सारी टिड्डियां मर गई थी, वहीं पिछले साल गर्मी में शुरू हुआ उनका प्रकोप इस वर्ष भी जारी रहा। वैज्ञानिक यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि आखिर सर्दियों में खत्म हो जाने वाली टिड्डियां भीषण ठंड में भी कैसे बची रही। वैज्ञानिकों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण मौसमों के बदलते पैटर्न ने ही टिड्डियों के जैविक व्यवहार में यह बदलाव किया है। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि अभी रबी फसलों की कटाई और थ्रैशिंग तो कर ली गई है लेकिन जिन क्षेत्रों में हरे चारे के लिए ज्वार, बाजरा तथा सजी और मूंग आदि बोई हुई है, वहां टिड्डी दलों से होने वाले नुकसान से बचने के लिए किसानों को कीटनाशक रसायनों का इस्तेमाल करना चाहिए। टिड्डी प्रकोप के समय उन्हें दो पारियों में लोरपायरीफोस 20 प्रतिशत ईसी 1200 मिली प्रति हेटेयर, लोरपायरीफॉस 50 ईसी 480 मिली प्रति हेटेयर, डेल्टामेथरिन 2.8 प्रतिशत ईसी 625 मिली प्रति हेटेयर, बेन्डियोकार्ब 80 प्रतिशत डल्यूपी 125 ग्राम प्रति हेटेयर, मेलाथियॉन 50 प्रतिशत ईसी 1850 मिली प्रति हेटेयर या मैलाथियॉन 25 प्रतिशत डल्यूपी 3700 ग्राम उपलधता के अनुसार 400 से 500 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। वयस्क द्वारा ही किया जाना चाहिए।

योगेश कुमार गोयल
(लेखक स्तंभकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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