बेहतर की उम्मीद, बदतर की तैयारी !

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उम्मीद बहुत अच्छी चीज है। इस पर दुनिया टिके होने की कहावत बहुत पुरानी है। किसी भी संकट के समय उम्मीद एकमात्र चीज है, जिसके सहारे की डोर थाम कर लोग संकट की वैतरणी पार करते हैं। कोरोना वायरस के वैश्विक संकट के बीच भी सबसे ज्यादा जिस चीज की जरूरत है वह उम्मीद की है, आशावाद की है, अंधेरी सुरंग के दूसरे सिरे पर रोशनी देखने वाली नजर की है। पर ध्यान रहे यह उम्मीद या आशावाद झूठा न हो और अंधेरी सुरंग के दूसरे सिरे पर दिख रही रोशनी किसी तरह का भ्रम न हो। पिछले हफ्ते ही अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक दिन के आंकड़े के आधार पर कह दिया था कि अंधेरी सुरंग के दूसरे सिरे पर रोशनी की किरण दिख रही है। पर वह उनका भ्रम साबित हुआ। उसके बाद हर दिन अमेरिका में संक्रमण के मामले बढ़ते गए और मरने वालों की संख्या रिकार्ड ऊंचाई पर पहुंच गई।

असल में अमेरिका की इस मौजूदा दशा के लिए भी राष्ट्रपति ट्रंप और उनके प्रशासन का झूठा आशावाद ही जिम्मेदार है। कोरोना वायरस का कहर जनवरी में शुरू हो गया था। 23 जनवरी को चीन ने अपने एक करोड़ की आबादी वाले शहर वुहान को लॉकडाउन कर दिया था। पर इसके ठीक एक महीने बाद अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ‘नमस्ते ट्रंप’ कार्यक्रम में शामिल होने के लिए भारत आए थे। भारत से लौटते समय उन्होंने उप राष्ट्रपति माइक पेंस को कोरोना वायरस से लड़ने की जिम्मेदारी सौंपी। असल में वह ट्रंपकी गलतफहमी थी, जिसकी वजह से वे लगातार सोचते रहे कि अमेरिका के पास विश्वस्तरीय स्वास्थ्य सुविधाएं हैं, इसलिए कोरोना वायरस अमेरिका का कुछ नहीं बिगाड़ सकता है। इस मुगालते में उन्होंने संकट का आकलन नहीं किया। कोरोना के खतरे का प्रोजेक्शन नहीं बनवाया और न समय रहते इसकी तैयारी की।

इसी किस्म का मुगालता इन दिनों भारत में दिख रहा है। सरकारी और गैर-सरकारी दोनों तरह से यह बताया जा रहा है कि भारत में कोरोना का कचूमर निकल गया है। बताया जा रहा है कि 31 जनवरी को पहला केस आया था और उसके बाद 72 दिन में भारत में सिर्फ साढ़े आठ हजार मामले आए हैं और पौने तीन सौ लोगों की मौत हुई है। जबकि इसी अवधि में अमुक देश में लाखों लोग संक्रमित हो गए तो अमुक देश में हजारों की मौत हो गई। भारत सरकार के मंत्रालयों की साझा प्रेस कांफ्रेंस में बताया जा रहा है कि दुनिया के देशों में कोरोना वायरस का संक्रमण 41 फीसदी की दर से बढ़ा है और अगर भारत में इसी दर से बढ़ता तो अब तक आठ लाख से ज्यादा लोग संक्रमित होते, जबकि अभी उसके एक फीसदी के करीब लोग ही संक्रमित हुए हैं। इसके लिए लॉकडाउन को श्रेय दिया जा रहा है। पर यह एक किस्म का भ्रम है, जो अंततः बहुत नुकसानदेह साबित हो सकता है। असलियत यह है कि भारत में टेस्ट नाममात्र के हुए हैं और इसी वजह से नाममात्र के मामले दिख रहे हैं। यह भी हकीकत है कि जहां भी टेस्ट बढ़ाया गया है वहां संक्रमण के ज्यादा मामले सामने आए हैं।

एक तरफ तो सरकार आंकड़ों के आधार पर यह दिखाने के प्रयास में लगी है कि सरकार के इकबाल और प्रताप से कोरोना का संक्रमण भारत में बहुत धीमा है और दूसरी ओर लोगों को गुमराह करने वाली कई तरह की बातें फैलाई जा रही हैं। सोशल मीडिया में यह प्रचार हो रहा है कि भारत में कोरोना का वायरस फैल ही नहीं सकता है क्योंकि यहां की जलवायु अलग है, बैशाख का महीना शुरू हो गया है और अब गरमी से कोरोना जल जाएगा, यहां के लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा है इसलिए वायरस अपने आप मर जाएगा, यहां का खान-पान ऐसा है कि अपने आप लोग कई किस्म की औषधियों का सेवन करते हैं, जिसके सामने कोरोना टिक नहीं पाएगा। 14 अप्रैल से सूर्य के मेष राशि में प्रवेश करने और सूर्य का ताप बढ़ने की ज्योतिषीय गणना अपनी जगह पर है। इस तरह की बातों से लोगों का हौसला बढ़ाने में कुछ भी गलत नहीं है। दिक्कत तब है, जब लोग ऐसी बातों पर भरोसा करके एक गंभीर खतरे को गंभीरता से लेना बंद कर देते हैं।

कोरोना वायरस के मामले में यह गलती चीन को छोड़ कर लगभग सभी देशों ने की है। अमेरिका, यूरोप, ब्रिटेन इस भ्रम में रहे कि उनके यहां वायरस ज्यादा नहीं फैलेगा और अगर फैला तो उनके पास विश्वस्तरीय मेडिकल सुविधा है, जिसके दम पर वे इसे संभाल लेंगे। इस गलतफहमी में अनेक देशों ने अपने नागरिकों का जीवन खतरे में डाला। भारत के पास अभी समय है और उसे वह गलती नहीं करनी चाहिए, जो अमेरिका, यूरोपीय देशों और ब्रिटेन ने किया है। सबसे पहले इस हकीकत को समझना चाहिए कि दुनिया भर के देशों में इस वायरस के बढ़ने का ट्रेंड ऐसा ही रहा है। शुरुआत में कम मामले होते हैं और फिर अचानक इनकी संख्या तेजी से बढ़ती है। दूसरे, भारत में तो अच्छी मेडिकल सुविधा भी नहीं है और न पर्याप्त संख्या में डॉक्टर हैं और न अमेरिका, यूरोप जैसी आर्थिकी है। भारत के लिए अच्छी बात यह है कि उसे पर्याप्त समय मिल गया है और दुनिया के देशों का अनुभव भी हासिल हो गया है। उसे इसका फायदा उठाते हुए कोरोना वायरस के बढ़ते ग्राफ को रोकने का प्रयास करना चाहिए और इस बीच किसी भी तरह से मेडिकल सुविधाएं जुटाने का प्रयास करना चाहिए। बेहतर की उम्मीद करते हुए बदतर की तैयारी करनी चाहिए। अगर इसमें किसी तरह की गलतफहमी हुई तो भारत की स्थिति दुनिया के दूसरे देशों के मुकाबले ज्यादा खराब होगी।

अजीत दि्वेदी
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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