अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप एक साथ कई मोर्चों पर जूझ रहे हैं। एक तरफ वह चीन को घेरने की कोशिश में हैं, जिस चक्कर में उन्होंने डब्ल्यूएचओ को निशाने पर ले लिया, दूसरी तरफ घरेलू मोर्चे पर अत्यंत आक्रामक रुख अपनाए हुए हैं। उन्होंने यहां तक कहा है कि कोरोना से साठ हज़ार से एक लाख लोग मरेंगे ही, इसलिए इस आंकड़े को मानकर अर्थव्यवस्था को खोलने पर विचार किया जाना चाहिए। ट्रंप चाहते हैं कि सारे बिजनेस जल्दी से जल्दी शुरू हो जाएं। करीब चालीस दिनों तक ‘स्टे एट होम’ के बाद कई राज्यों के लोग बेचैन हैं और जहां-तहां मांग हो रही है कि लोगों को अपने धंधे खोलने की अनुमति दी जाए। मिशिगन में पिछले हफ्ते ही लोगों ने विधान भवन पर हथियार लेकर प्रदर्शन किया जिसकी कड़ी आलोचना हुई, मगर अर्थव्यवस्था खोलने को लेकर लोगों में गुस्सा साफ है। कई राज्यों में बड़े बिजनेस यानी सिनेमाहॉल और पब जैसे व्यवसायों के संचालकों ने धमकी दी है कि वे स्टे एट होम के खिलाफ कोर्ट जाने का मन बना रहे हैं। कैलिफोर्निया में एक वीकेंड में थोड़ी छूट मिलने पर हजारों लोग समुद्र तट पर पहुंच गए थे जिसके बाद रोक लगानी पड़ी। इससे पहले मिशिगन में लोग घरों से निकल कर सड़क पर प्रदर्शन कर चुके थे, फिर ऐसे प्रदर्शन मिनेसोटा और वर्जीनिया राज्यों में भी हुए। ट्रंप ने इन प्रदर्शनों के कुछ ही घंटों बाद ताबड़तोड़ ट्वीट किए थे- ‘लिबरेट मिनेसोटा’, ‘लिबरेट मिशिगन’ और ‘लिबरेट वर्जीनिया’।
इन तीनों राज्यों के गवर्नर डेमोक्रेटिक पार्टी के हैं और वे इस पक्ष में हैं कि अभी कुछ और समय तक स्टे एट होम लागू रहे योंकि इसे हटाने पर कोरोना के फैलने की पर्याप्त आशंका है। ट्रंप ने प्रदर्शनकारियों के प्रति अपना समर्थन प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी जताया है। इन प्रदर्शनों के बारे में कहा जा रहा है कि ये ट्रंप समर्थक गुटों द्वारा आयोजित किए गए हैं। प्रदर्शन करने वालों की संया लगातार बढ़ रही है। इसके पीछे कई और कारण भी हैं। सबसे बड़ा कारण इकनॉमी की खराब होती हालत और बढ़ती बेरोजगारी है। अमेरिका के सिस्टम में लाखों लोग ऐसे हैं जो कॉन्ट्रैट पर काम करते हैं। प्रतिष्ठानों के बंद होने से उनकी आय का स्रोत पूरी तरह से बंद हो गया है। पढ़ाई करने वाले ज्यादातर छात्र और ग्रैजुएशन करके निकलने के बाद अधिकतर लोग रेस्टोरेंटों में कुछ समय काम करते हैं ताकि आगे या करना करना है, इस बारे में सोच सकें। वे अपने किरायों और भोजन के लिए हर हफ्ते उसी पैसे पर निर्भर होते हैं, जो इस काम से मिलते हैं। ग्रॉसरी स्टोर को छोड़कर बाकी जितने तरह के स्टोर हैं उन सब में काम करने वाले लोग, मॉल्स में काम करने वाले या फिर म्यूजियम, सिनेमा हाल, पब्स और यूनिवर्सिटी में काम करने वाले भी पूरी तरह बेरोजगार हो चुके हैं। सरकार भले ही उन्हें सहायता पहुंचा रही है लेकिन वह उनके लिए पर्याप्त नहीं है और वे जल्दी से जल्दी काम पर लौटना चाहते हैं।
राष्ट्रपति ट्रंप के लिए इकनॉमी बड़ा मुद्दा है क्योंकि उन्हें अटूबर में चुनाव लडऩा है और उन्हें डर है कि अगर बेरोजगारी की दर बढ़ी तो यह चुनाव उनके हाथ से निकल सकता है। उनकी रेटिंग्स भी बहुत अच्छी नहीं चल रही है और वह इस बात से परेशान हैं कि कोरोना में उन्हें अपनी मनमानी करने की बजाय एसपर्ट डॉटरों की सलाह माननी पड़ रही है। किसी भी डॉटर ने इकनॉमी को जून से पहले खोलने का सुझाव नहीं दिया है। ऐसे में ट्रंप बेचैन हैं और उनकी सारी कोशिश यही है कि वह बेरोजगारी की बढ़ती दर और इकनॉमी को वापस पटरी पर न ला पाने की दिक्कत का ठीकरा किसी तरह डेमोक्रेटिक पार्टी के सर पर फोड़ दें। उनके ट्वीट्स और प्रदर्शनकारियों के लिए उनके समर्थन को घरेलू राजनीति के इसी चश्मे से देखा जा सकता है। यही कारण है कि प्रदर्शनों के दौरान कई लोगों के हाथों में बड़ी-बड़ी रायफलें देखी गई हैं। दुश्मन उन्हें कहीं दिख नहीं रहा है तो वे ये मान कर चल रहे हैं कि उन्हें काम करने दिया जाए और कोरोना से संभवत: उन्हें कोई खतरा नहीं होगा। अमेरिका में ऐसी घटनाओं से दुनिया के बाकी हिस्सों के लोग चकित हो सकते हैं, जो मान कर चलते हैं कि अमेरिका में हर आदमी शिक्षित और समझदार है। सचाई यह है कि अमेरिका की बड़ी आबादी को दुनिया से बहुत अधिक मतलब नहीं रहता। एक बेसिक शिक्षा लेने के बाद उन्हें दुनिया के बाकी देशों में या हो रहा है इसकी न तो परवाह होती है और न ही इससे कोई लेना-देना होता है। देश का एक छोटा सा हिस्सा जागरूक है जो पढ़ा लिखा है। वह दुनिया के बारे में जानता है और तर्कों के साथ बहस करता है। आबादी का यह हिस्सा ट्रंप को वोट नहीं करता। जो दूसरा हिस्सा है, वह अपने में मगन है। अपनी बंदूक, अपने पैसे और अपने गुरूर के साथ। वह ट्रंप का वोटर है, जो लिबर्टी की आड़ में अपनी मूर्खता को पूरे देश पर थोपने की कोशिश में है।
जे. सुशील
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)