…लम्हों ने खता की, सदियों ने सजा पाई

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कोरोना वायरस के बढ़ते प्रभाव से आज जिस तरह दुनिया के हालात बेहद पेचिदा हो गए हैं उस पर प्रसिद्ध उर्दू शायर मुजफ्फर रजमी की ये पंक्तियां कितनी सटीक बैठती है कि तारीख की नजरों ने वोह दौर भी देखा है,लहों ने खता की सदियों ने सजा पाई। कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया में जहां-जहां भी त्राहि मचाई है उसमें पीडि़त देशों की सरकारें व
जनता की लापरवाही सामने आई है। यदि चीनी सरकार कोरोना को लेकर समय से सतर्कता दिखाते हुए उचित कदम उठाती तो पूरी दुनिया में इतनी भयावह स्थिति नहीं होती। जैसे चीन में इस वायरस को लेकर सतर्कता की बजाय लापरवाही बरती गई, जिसका खामियाजा आज पूरी दुनिया भुगत रही है, उसी तरह भारत में भी लगभग डेढ़ महीने तक कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए। भारत में पहला मामला जनवरी के आखरी सप्ताह में पता चला था, तो सख्त फैसले लेने में काफी विलंबता हुई। इस दौरान जमातियों व अन्य यात्रियों की शक्ल में भारत में विदेशी यात्रियों का आवागमन जारी रहा। जिससे भारत में विदेशों से आए लोगों के माध्यम से कोरोना वायरस फैल गया। हालांकि सरकार का दावा है कि अभी भी उसने सामुदायिक स्तर पर इसे फैलने से रोका है, लेकिन दिन-प्रतिदिन बढ़ते मामले भारत सरकार का सरदर्द भी बढ़ा रहे हैं। विदेशों से आए लोगों से शुरू हुआ संक्रमण अभी उन लोगों के परिजनों और उनके संपर्क में आए लोगों में ही फैला है। सरकार लॉकडाउन करके इस चेन को सामुदायिक स्तर पर फैलने से रोकना चाहती है।

कोरोना वायरस के प्रभाव को रोकने के लिए यदि सरकार बाहर से आने वाले लोगों पर प्रतिबंध लगाती या उनको हवाई अड्डों के समीप ही आइसोलेशन वार्ड बनाकर 14 दिन के लिए क्वारंटाइन किया जाता तो देश के अंदर स्थिति बेहतर होती। सरकार ने प्रभावी कदम उठाने में लगभग डेढ़ माह की देरी की जिसके परिणाम स्वरूप कोरोना ने हमारे देश में अपने पैर पसार दिए। हालांकि सरकार ने देश के अंदर इसके बढ़ते हुए प्रकोप को देखते हुए मार्च के शुरू से ही कदम उठाने शुरू कर दिए थे जिसके नतीजे में देश की शिक्षण संस्थाएं बंद करा दी गई। सरकार के इस ठोस कदम उठाने के बावजूद कुछ शिक्षण संस्थाएं मार्च के उत्तार्थ में जबरन बंद कराई गई। इन संस्थाओं में पढऩे वाले बाहरी छात्र वहीं फंस गए। अब भी कुछ छात्र तो वहीं फंसे हुए हैं। सरकार द्वारा लॉकडाउन के लिए गए फैसले से पूर्व ही ये संस्थाएं भी बंद हो जाती तो बाहरी छात्र आसानी से अपने घर पहुंच जाते हैं। इन घटनाओं से यह आभास हुआ कि हमने इस खतरनाक कोरोना वायरस को शुरू में हलके में लिया जिसके परिणामस्वरूप इसने देश के विभिन्न हिस्सों में अपने पैर जमा लिए।

यही हाल तलीगी जमात के मरकज निजामुददीन का रहा उसने सरकार के आह्वान की अवहेलना करते हुए गत 13 मार्च से इज्तिमे का आयोजन किया जिसमें देश व विदेश के हजारों जमाती शामिल हुए। कुछ तो मरकज से मिले और कुछ को ढूंढने में सरकारी अमले को काफी मशक्कत करनी पड़ी। यदि निजामु़ददीन मरकज के संचालक कोरोना के दुष्परिणाम को गंभीरता से लेते तो अब तक देश की स्थिति नियंत्रणपूर्ण होती। आज जमातियों पर जो आरोप लग रहे हैं या सरकार उनको लेकर गंभीर व ठोस कार्रवाई के मूढ़ में है उसमें उनकी गलती ये रही कि उन्होंने अपने आपको छिपाने का प्रयास किया जिससे पुलिस व स्वास्थ्यकर्मियों को उनको ढूंढने में जो मशक्कत करनी पड़ी वो नहीं करनी पड़ती समय से रहते हुए उनका इलाज किया जाता तथा उनको लेकर जो राजनीति हो रही है उसे भी विराम लग जाता। हालांकि कोरोना वायरस जड़ से मिटाने के लिए सरकार बेहद गंभीर है, और हर संभव प्रयास कर रही है कि इस मानव नाशक बीमारी का खात्मा हो जाए। लेकिन बीमारी के साथ-साथ अफवाहों और बेतुकी राजनीति का दौर चल रहा है। अफवाहें भी फैलाई जा रही है।

फेसबुक, वह्ट्सअप और फर्जी वेबसाइटों पर ये भी अफवाह फैलाई जा रही है कि समुदाय विशेष के लोगों को चिकित्सकों का अमलाक्वारंटाइम के दौरान फर्जी मेडिकल रिपोर्ट में पॉजेटिव बताकर उन्हें मरणसन्न हालत में पहुंचा रहा है, बाद में विषायुक्त उपकरण उनकी मौत का सबब बन रहे हैं। हालांकि ये सब बेबुनियादी अफवाह हैं, जिन पर रोक लगाया जाना जरुरी है। अफवाहों से लोगों में संदेह उत्पन्न होता है। यह भी कहना अतिश्योक्ति न होगी कि इस तरह की अफवाह सरकार के प्रयास को विफल बनाने के लिए फैलाई जा रही है। जो इस तरह की अफवाह या बेतुकी राजनीति कर रहे हैं वे मानव जाति के हितैषी नहीं हो सकते। सरकार को चाहिए कि लॉकडाउन के साथसाथ सोशल मीडिया पर भी पाबंदी होनी चाहिए, अफवाह फैलाने वालों पर सख्त कार्रवाई की जाए ताकि कोरोना के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए सरकार की मदद की जा सके। यदि सरकार के आह्वान पर लॉकडाउन का पालन किया गया तो संपूर्ण मानव जाति की रक्षा की जा सकती है, क्योंकि दुनिया के अक्सर देशों ने थक हारकर अपने यहां लॉकडाउन करने का फैसला उचित माना है।

एम. रिजवी मैराज
(लेखक एक पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)

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