दुनिया में भारत की छवि सुचकांक में बिगड़ रही है

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दुनिया भर की रैंकिंग देने वाली एजेंसियां, जब भारत की रैंकिंग किसी क्षेत्र में अच्छा दिखाती हैं तभी भारत सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी उन पर भरोसा करती है बाकी उनको फर्जी बता कर खारिज कर दिया जाता है। जैसे जब ग्लोबल एजेंसियों ने कहा कि भारत की कारोबार सुगमता की रैंकिंग में 14 स्थान का सुधार हुआ और भारत 63वें स्थान पर आ गया तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई बार इसका अलग-अलग जगहों पर जिक्र किया। पर जब दुनिया की ऐसी ही एजेंसियों ने कहा कि मानवाधिकार या धार्मिक आजादी के सूचकांक पर भारत की स्थिति खराब हुई है तो तत्काल इसे खारिज कर दिया गया। सो,यह तय मानना चाहिए कि लोकतंत्र और आजादी को लेकर विश्व सर्वेक्षण की जो रिपोर्ट आई है सरकार उसे भी खारिज कर देगी। पर दुनिया इन पर भरोसा करती है।

इस सर्वेक्षण के मुताबिक आजादी और लोकतंत्र के मामले में भारत सबसे निचले पायदान के करीब पहुंच गया है। अमेरिका की एजेंसी फ्रीडम हाउस की ओर से जारी रिपोर्ट के मुताबिक राजनीतिक और नागरिक अधिकार के पैमाने पर सबसे निचले तीन देशों में शामिल है। दुनिया के 25 बड़े लोकतांत्रिक देशों में भारत एकमात्र देश है, जिसे अलग-अलग कसौटियों पर मिलने वाले अंकों में सबसे बड़ी गिरावट आई है। सौ में से भारत को 71 अंक मिले हैं, जबकि पिछले साल उसे 75 अंक मिले थे। चार अंकों की गिरावट को बड़ी गिरावट माना जा रहा है। बहरहाल, भारत के नीचे सिर्फ तिमोर और ट्यूनीशिया हैं। आखिरी पांच देशों के नाम हैं। बोत्स्वाना, पेरू, भारत, तिमोर और ट्यूनीशिया। सोचें, भारत ने या तरक्की की है!

बहरहाल, फ्रीडम हाउस का मानना है कि कश्मीर में अनुच्छेद 370 खत्म करने, संशोधित नागरिकता कानून पास करने और देश भर में विरोध-प्रदर्शनों को जोर जबरदस्ती दबाने की वजह से भारत में नागरिक और राजनीतिक अधिकारों में गिरावट आई है। ध्यान रहे भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है और इसे सबसे बड़ी फंशनल डेमोक्रेसी भी कहते हैं। पर डेमोक्रेसी के सूचकांक में भारत की स्थिति बिगड़ रही है। हालांकि ऐसा नहीं है कि आर्थिक सूचकांक या मानव विकास सूचकांक पर स्थिति सुधर रही है। वहां भी स्थिति खराब ही हो रही है। अगर चीन की तरह लोगों के नागरिक, राजनीतिक व मानव अधिकार कुछ हद तक स्थगित होते हैं और उससे आर्थिक व मानव विकास सूचकांक पर स्थिति सुधरती तो एक बात होती। पर हर सूचकांक पर ही स्थिति बिगड़ रही है।

हरिशंकर व्यास
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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