महाशिवरात्रि पर्व 21 फरवरी को त्रयोदशी युक्त चतुर्दशी में मनाया जाएगा। इस बार करीब 59 साल बाद ग्रहों की विशेष स्थिति बन रही है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के ज्योतिषाचार्य पं गणेश मिश्रा के अनुसार इस साल शनि अपनी ही राशि मकर में होकर पंचमहापुरुष योग में से एक शश योग बन रहा है। जो कि राजयोग है। इसके साथ ही मकर राशि में शनि और चंद्रमा रहेंगे, कुंभ में सूर्य.बुध की युति रहेगी। एवं शुक्र अपनी उच्च राशि मीन में रहेगा। इससे पहले ग्रहों की ऐसी ही स्थिति 1961 में बनी थी।
शिवरात्रि यानी सिद्ध रात्रि
ग्रंथों में 3 तरह की विशेष रात्रि बताई गई है। जिनमें शरद पूर्णिमा को मोहरात्रिए दीपावली की कालरात्रि तथा महाशिवरात्रि को सिद्ध रात्रि कहा गया है। इस बार महाशिवरात्रि पर चंद्र शनि की मकर में युति के साथ शश योग बन रहा है। आमतौर पर श्रवण नक्षत्र में आने वाली शिवरात्रि व मकर राशि के चंद्रमा का योग ही बनता है। जबकि, इस बार 59 साल बाद शनि के मकर राशि में होने से तथा चंद्र का संचार अनुक्रम में शनि के वर्गोत्तम अवस्था में शश योग का संयोग बन रहा है। चूंकि चंद्रमा मन तथा शनि ऊर्जा का कारक ग्रह है। यह योग साधना और पूजा.पाठ की सिद्धि के लिए विशेष महत्व रखता है। चंद्रमा को मन तथा शनि को वैराग्य का कारक ग्रह माना जाता है। इनके संयोग में की गई शिव पूजा से शुभ फल और बढ़ जाता है।
सर्वार्थसिद्धि का भी संयोग
ज्योतिषाचार्य पं. मिश्रा ने बताया कि महाशिवरात्रि पर सर्वार्थसिद्धि योग भी बन रहा है। इस योग में शिवपार्वती का पूजन श्रेष्ठ माना गया है। शास्त्रीय विधि.विधान के अनुसार शिवरात्रि का पूजन निशीथ काल में करना सर्वश्रेष्ठ रहेगा। हालांकि रात्रि के चारों प्रहर में अपनी सुविधानुसार यह पूजन कर सकते हैं।
रात्रि जागरण का भी है विधान
मिट्टी के लोटे में पानी या दूध भरकर, ऊपर से बेलपत्र, आक- धतूरे के फूल, चावल आदि डालकर शिवलिंग पर चढ़ाना चाहिए। शिव पुराण का पाठ और महामृत्युंजय मंत्र या शिव के पंचाक्षर मंत्र ? नम: शिवाय का जाप इस दिन करना चाहिए। साथ ही महाशिवरात्रि के दिन रात्रि जागरण का भी विधान है।