हनुमान के गिरते ही उनके पिता वायु देवता भी वहां पहुंच गये। अपने बेहोश बालक को उठाकर उन्होंने छाती से लगा लिया। माता अंजना भी वहां दौड़ी हुई आ पहुंचीं। हनुमान को बेहोश देखकर वह रोने लगीं। वायु देवता ने क्रोध में आकर बहना ही बंद कर दिया।
श्रीराम भक्त हनुमानजी की वीरता भरी गाथाएँ रामायण में भरी पड़ी हैं। हनुमान जी का बाल्यकाल भी अनोखे कारनामों और शौर्य गाथाओं से भरा पड़ा है। वैसे तो हनुमानजी के बचपन के कई रोचक किस्से हैं लेकिन आज हम जिस कहानी को बताने जा रहे हैं उससे आपको बाल्यकाल में हनुमानजी के नटखटपन की भी झलक मिलेगी। एक बार हनुमानजी की माता अंजना बाल हनुमान को कुटी में लिटाकर कहीं बाहर चली गयीं। थोड़ी देर में हनुमानजी को बहुत तेज भूख लगी। इतने में आकाश में सूर्य भगवान उगते हुए दिखाई दिये। इन्होंने समझा कि यह कोई लाल-लाल सुंदर मीठा फल है। बस, एक ही छलांग में ये सूर्य भगवान के पास जा पहुंचे और उन्हें पकड़कर मुंह में रख लिया। सूर्य ग्रहण का दिन था। राहु सूर्य को ग्रसने के लिए उनके पास पहुंच रहा था। उसे देखकर हनुमानजी ने सोचा कि यह कोई काला फल है, इसीलिये उसकी ओर भी झपटे। राहु किसी तरह भागकर देवराज इन्द्र के पास पहुंचा। उसने कांपते हुए स्वरों में इन्द्र देव से कहा- भगवन! आज आपने यह कौन-सा दूसरा राहु सूर्य को ग्रसने के लिए भेज दिया है? यदि मैं भागा न होता तो वह मुझे भी खा गया होता।
राहु की बातें सुनकर भगवान इन्द्र को बड़ा आश्चर्य हुआ। वह अपने सफेद ऐरावत हाथी पर सवार होकर हाथ में वज्र लेकर बाहर निकले। उन्होंने देखा कि एक वानर बालक सूर्य को मुंह में दबाये आकाश में खेल रहा है। हनुमान ने भी सफेद ऐरावत पर सवार इन्द्र को देखा। उन्होंने समझा कि यह भी कोई खेलने लायक सफेद फल है। वह उधर भी झपट पड़े। यह देखकर देवराज इन्द्र बहुत ही क्रोधित हो उठे। अपनी ओर झपटते हुए हनुमान से अपने को बचाया तथा सूर्य को छुड़ाने के लिए हनुमान की ठुड्डी पर वज्र का तेज प्रहार किया। वज्र के उस प्रहार से हनुमान का मुंह खुल गया और वह बेहोश होकर पृथ्वी पर गिर पड़े।
हनुमान के गिरते ही उनके पिता वायु देवता भी वहां पहुंच गये। अपने बेहोश बालक को उठाकर उन्होंने छाती से लगा लिया। माता अंजना भी वहां दौड़ी हुई आ पहुंचीं। हनुमान को बेहोश देखकर वह रोने लगीं। वायु देवता ने क्रोध में आकर बहना ही बंद कर दिया। हवा के रुक जाने के कारण तीनों लोकों में सभी प्राणी व्याकुल हो उठे। पशु, पक्षी बेहोश हो होकर गिरने लगे। पेड़- पौधे और फसलें कुम्हलानें लगीं। ब्रह्माजी इन्द्र सहित सारे देवताओं को लेकर वायु देवता के पास पहुंचे। उन्होंने अपने हाथों से छूकर हनुमानजी को जीवित करते हुए वायु देवता से कहा- वायु देवता! आप तुरंत बहना शुरू करें। वायु के बिना हम सब लोगों के प्राण संकट में पड़ गये हैं। यदि आपने बहने में जरा भी देर की तो तीनों लोकों के प्राणी मौत के मुंह में चले जाएंगे। आपके इस बालक को आज सभी देवताओं की ओर से वरदान प्राप्त होगा। ब्रह्माजी की बात सुनकर सभी देवताओं ने कहा- आज से इस बालक पर किसी प्रकार के अस्त्र शस्त्र का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इन्द्र ने कहा- मेरे वज्र का प्रभाव भी अब इस पर नहीं पड़ेगा। इसकी ठुड्डी वज्र से टूट गयी थी, इसीलिये इसका नाम आज से हनुमान होगा। ब्रह्माजी ने कहा- वायुदेव! तुम्हारा यह पुत्र बल, बुद्धि, विद्या में सबसे बढ़- चढ़कर होगा। तीनों लोकों में किसी भी बात में इसकी बराबरी करने वाला कोई दूसरा नहीं होगा। यह भगवान श्रीराम का सबसे बड़ा भक्त होगा। इसका ध्यान करते ही सबके सभी प्रकार के दु:ख दूर हो जाएंगे। यह मेरे ब्रह्मास्त्र के प्रभाव से सर्वथा मुक्त होगा। वरदान से प्रसन्न होकर और ब्रह्माजी एवं देवताओं की प्रार्थना सुनकर वायुदेव ने फिर पहले की तरह बहना शुरू कर दिया। तीनों लोकों के प्राणी प्रसन्न हो उठे।