जब अयोध्या वाले मामले का फैसला आया तो भोपाल में थे, 04 नवंबर से 10 नवंबर 2019 तक आयोजित ‘विश्व-रंग’ कार्यक्रम में, और वॉट्सऐप के विद्वान निरंतर बिना पूछे ही रनिंग कॉमेंट्री सुना रहे थे। यह बात और है कि जहां कुछ लोग दुनिया को एक ही रंग में रंगना चाहते हैं वहां कुछ ऐसे लोग भी हैं जो सारी वर्जनाओं और कुंठाओं को लांघकर दुनिया के विविध रंगों को संजोना चाहते हैं। ‘विश्व-रंग’ ऐसा ही एक आयोजन था। हमें तो इस फैसले की तारीख का भी ध्यान नहीं था क्योंकि हम राम से तो जुड़े हैं लेकिन राम और राम-मंदिर की राजनीति से जुड़े हुए कभी नहीं रहे।
सुबह जल्दी उठ जाने की आदत है इसलिए अखबार वाले को भोपाल के पलाश रेसिडेंसी के गेट पर ही, जहां हमें ठहराया गया था, पकड़ लिया। वैसे फैसले का हमें पहले से ही पता था। सभी जानते हैं कि नेता का धर्म केवल कुर्सी होता है, कुछ भी करके बस, कुर्सी मिलनी चाहिए। किसी भी चतुर आदमी का राम से बिलकुल भी संबंध नहीं होता क्योंकि राम का धर्म बहुत कठिन और कष्टकारक होता है-
बहुत कठिन है धर्म राम का
बन-बन पड़े भटकना, भगतो।
अखबार देखा, पूरा फ्रंट पेज राममय। हमारा तो पेट फूलने लगा। क्या करें तोताराम सात सौ किलोमीटर दूर। सत्ता में होते तो मोदी जी की तरह टेलिकॉन्फ्रेंस के द्वारा तोताराम से आमने-सामने बात कर लेते। फोन में भी इतना बैलंस नहीं कि दिल खोलकर बात की जा सके।
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जयपुर-सीकर वाली बस से उतरकर सीधे तोताराम के घर पहुंचे। तोताराम घर के सामने ही मिल गया, बोला- मैं तो तेरे यहां आ रहा था। खैर, कोई बात नहीं। तोताराम गुनगुना पानी ले आया। मुंह धोया तब तक तोताराम की पत्नी मैना चाय ले आई।
हमने कहा- तोताराम, हमने भोपाल में ‘नवभारत’ में सर्वोच्च न्यायलय के फैसले के बारे में कई लोगों के स्टेटमेंट पढ़े लेकिन तेरा स्टेटमेंट कहीं नहीं दिखा। तेरा पिछले साठ वर्षों से रामचरित मानस का लगातार ‘मास-पारायण’ करना व्यर्थ गया।
बोला- मैं तो राम को उनकी मानवता और मर्यादा के कारण चाहता हूं। मेरा मंदिर की राजनीति के क्या लेना-देना? वैसे भी मेरा स्टेटमेंट आदिकालीन है जबकि आजकल कई तरह के लच्छेदार, कलात्मक और दबावी स्टेटमेंट बाज़ार में आ रहे हैं। हम जैसों के स्टेटमेंट को कौन पूछता है? नोटबंदी के दौरान जो लोग मारे गए उनकी कौन सुनता है? मीडियावाले तो मोदी जी और जेटली जी से पूछते हैं कि उनके इस क्रांतिकारी कदम से कितने आतंकवादियों की कमर टूट गई।
हमने कहा- तो तेरे कहने का मतलब यह है कि तू ही राम का सच्चा भक्त है। मोदी जी, आडवाणी जी, मुरली मनोहर जोशी राम के आदर्शों के अनुयायी नहीं हैं? राम के भक्त नहीं हैं?
बोला- मुझे क्या पता। इस आडम्बरी समय में कौन सच बोलता है? अपने मन का पाप वे जानें। वैसे आडवाणी जी ने तो राम-रथ-यात्रा के समय स्पष्ट बता दिया था कि उनके लिए राम मंदिर कैसा मुद्दा है। तभी तो राम के नाम पर 2 से 282 और अब 333 हो गए। यदि राजीव गांधी हिन्दुओं की आस्था का सम्मान करते हुए अपने आप ही राम मंदिर का ताला न खुलवाते तो आडवाणी जी को राम कहां याद आ रहे थे?
जो किसी मिशन के लिए पूर्णतः समर्पित होता है वह न तो किसी मौके का इंतज़ार करता है और न ही प्राणों की परवाह। पंजाबी सूबे के लिए दर्शन सिंह फेरूमन और तेलंगाना के लिए रामुलू ने भूख हड़ताल करके प्राण दे दिए। लेकिन आडवाणी जी और उनकी टीम वाले साफ-साफ ज़िम्मेदारी लेने से कतराते हैं क्योंकि उनकी आस्था सच्चे भक्त वाली नहीं है। ये सब दूध पीने वाले मजनू हैं। लैला के लिए खून देने वाला कोई नहीं है।
हमने कहा- तो क्या इसी को तेरा स्टेटमेंट मान लें?
बोला- मान ले। मुझे कौन-सा कहीं का राज्यपाल बनना है या विश्व हिंदी सम्मेलन में सरकारी खर्चे पर सैर-सपाटा करना है। जो झूठ बोलते हैं उन्हें फ़िक्र होनी चाहिए कि ऊपर जाकर रामजी को क्या जवाब देंगे? जो राम मंदिर के नाम का चंदा और राजनीति करते हैं, जो मंदिर के आसपास दुकान आवंटित करवाना चाहते हैं उन्हें राम मंदिर से मतलब है। हमारा राम तो हमारे घट में है-
मोरे पिया मोरे घट में बसत है, ना कहुं आती जाती।
रमेश जोशी
लेखक देश के वरिष्ठ व्यंग्यकार और ‘विश्वा’ (अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति, अमरीका) के संपादक हैं। ये उनके निजी विचार हैं।
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