8 में सीखा हुनर 80 में भी काम आता है।

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सुपरस्टार के साथ फिल्म बनाना आसान नहीं होता, विशेषतौर पर रजनीकांत, सलमान खान या अक्षय कुमार या इन जैसे कई और कलाकारों के साथ, जिनके कट्‌टर प्रशंसक होते हैं। ये लोग अपने हीरो से बहुत अलग करने की उम्मीद नहीं रखते, बल्कि चाहते हैं कि हीरो कुछ ऐसा करें, जो वह भी अपनी जिंदगी में कर सकें। शायद यही कारण है कि कई निर्देशक पर्दे पर हीरो को ना सिर्फ स्टाइलिश कपड़े पहनाते हैं, ताकि लोग उन्हें देखकर वैसे ही कपड़े पहनने की इच्छा करें बल्कि एक एेसा चुनिंदा हथियार भी थमा देते हैं, जो कि एक एक्शन हीरो की शख्सियत को पूरा करे। और अधिकांश समय यह चुनिंदा हथियार कोई लाठी या बांस होता है, जिससे ये एक्शन हीरो पंजाब की लाठी युद्ध कला और प्रसिद्ध भारतीय मार्शल आर्ट ‘गतका’ या बिहार में परीखंडा नाम से विख्यात युद्ध कला या तमिलनाडु का मार्शल आर्ट सिलम्बम करते हुए गुंडों को सबक सिखाता है। पर जब 85 साल की शांता पवार पुणे की सड़कों पर लाठी घुमाती हैं, तो उनका अंदाज एक्शन हीरो से भी बेहतर होता है, लेकिन वह ऐसा गुंडों का पीछा करने के लिए नहीं करतीं, बल्कि आर्थिक संकट से जूझ रहे अपने परिवार की मदद करने के लिए करती हैं। शांता ने इन कलाओं में महारत तब हासिल की जब वह 8 साल की थीं। कड़क रस्सी पर चलना, लाठी से मार्शल आर्ट करना और दूसरे स्टंट सीखते समय उसे क्या पता था कि 85 बरस का होने पर यह हुनर उसके काम आएगा। जब आय के सारे रास्ते बंद हो गए, लॉकडाउन उनके परिवार के लिए मुश्किलें बढ़ाने लगा। तब उन्होंने सोचा कि अब समय आ गया है कि वह परिवार की कमान संभालें और बाहर निकलें, ताकि उनके अपने सुरक्षित रहें। तमाम बाधाओं के बावजूद यह साहसी बुजुर्ग महिला लाठी के साथ सड़कों पर अकेले निकलती है। पहले राहगीरों का मुस्कुराहट और नमस्ते के साथ अभिवादन करती हैं और फिर दर्शकों से बिना पैसे की मांग किए सहजता से अपने करतब दिखाने लगती हैं।

पति की मौत के बाद किसी के सामने हाथ फैलाने के बजाय, इस स्वाभिमानी महिला ने बच्चों की खातिर मेहनत से परहेज नहीं किया। तपती धूप, बारिश और सुनसान सड़कों पर उनकी मेहनत का आखिरकार उन्हें फल मिला। परिवार की मदद के लिए 85 वर्ष की इस उम्र में लाठी युद्ध कला का सड़कों पर प्रदर्शन करती शांता ने सबसे पहले पुणे पुलिस कमिश्नर के. वेंकटेशम का ध्यान अपनी ओर खींचा। उन्होंने शांता को एक महीने का राशन उपलब्ध कराया और लोगों सेे उनके परिवार की मदद की अपील की। लाइफ सेविंग फाउंडेशन के संस्थापक देवेंद्र पाठक ने 2500 रुपए के साथ मदद की शुरुआत की है और आने वाले दिनों में उनके लिए और फंड जुटाने की उम्मीद की है। पुणे के लोहगाव स्थित एक सामाजिक समूह क्षत्रपति महाराज समिति के प्रवीण जम्बारे ने ग्रुप के फेसबुक पेज पर शांता का यह वीडियो शेयर किया, उस पर 4500 से ज्यादा लाइक्स और हजारों लोगों ने कमेंट आ चुके हैं। शांता की राशन और आर्थिक मदद करने के इरादे से प्रवीण के पास 100 फोन आ चुके हैं। डोंबारयाचा खेल (मरीठा में लाठी का खेल) दिखाते हुए उनका एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और वह रातोंरात प्रसिद्ध हो गईं। अब ना सिर्फ पूरे देश से उनके लिए मदद मिल रही है, बल्कि रितेश देशमुख और सोनू सूद जैसे बॉलीवुड एक्टर उनकी मदद के लिए आगे आए हैं। फंडा यह है कि बच्चों को हुनर सिखाइए क्योंकि यह कभी व्यर्थ नहीं जाता। एक पुरानी कहावत है कि ‘पालने में सीखा हुआ, कब्र तक साथ रहता है’ और यह कितना सच है ना! घूमना-फिरना बदलने वाला है आपको वे दिन याद हैं जब आपकी पत्नी सुबह-सुबह उठते ही, खासतौर पर वीकेंड पर कहती थी, ‘आज मेरा खाना बनाने और घर पर रहने का मन नहीं है। हम पूरे दिन के लिए कहीं बाहर चलें? वह बड़े प्यार से पूछती थी। इससे पहले ही आप सोच पाएं कि आपकी क्या योजना थी, वह पहले ही तेजी से अपना प्लान बता देती थी। वह कहती, ‘देखो, मेरा यह प्लान है।

मैं हम दोनों के लिए शानदार कॉफी बनाती हूं, फिर हम जल्दी से तैयार हो जाएंगे। फिर हम नाश्ते के लिए अपने पसंदीदा इंडिया कॉफी हाउस जाएंगे, वहां से हम मेरे लिए फिल्म देखने के लिए टैबलेट खरीदने जाएंगे, जिसका तुमने मुझसे वादा किया था। फिर लंच के लिए हम मेरे ममी-पापा के घर चलेंगे। मैंने ममी को पहले ही हमारे लिए खाना बनाने को कह दिया है। वहां से हम दोपहर के शो में फिल्म देखने जाएंगे, फिर तुहारी पसंद की किसी जगह पर तुहारे दोस्तों के साथ या उनके बिना ही डिनर के लिए जाएंगे और देर रात घर लौटेंगे। कैसा प्लान है? वह आंख मारते हुए पूछती थी। और आपके पास हां कहने अलावा कोई चारा नहीं होता था। यह उन कई तरीकों में से एक था जिनसे हम वीकेंड या रविवार बिताते थे। हर जगह भीड़ थी और हर जगह इंतजार करना पड़ता था। कोरोना के बाद आप यह गतिविधि नहीं कर पाएंगे। हमेशा एक टाइम स्लॉट होगा, जिसे आपको बहुत पहले बुक करना होगा। आप लेट आ सकते हैं लेकिन आपको तय समय में निकलना होगा योंकि अगला टाइम स्लॉट किसी और को दिया गया है। आप अपने दोस्त के घर भी पहले से स्लॉट बुक किए बिना नहीं जा पाएंगे। इसे स्टारट्रेक जैसी भविष्य की किसी टीवी सीरीज का स्क्रीनप्ले समझकर नजरअंदाज मत कीजिए। ऐसा पहले ही होने लगा है। ‘बुक माय स्लॉट एप को आप डाउनलोड कर सकते हैं, जहां यूजर को सुविधा लेने के लिए रजिस्टर करना होता है। दुकानों, बैंकों, अस्पतालों, सैलूनों को भी सेवा इस्तेमाल करने के लिए रजिस्टर करना होता है।

वे एप को अपनी वेबसाइट से भी लिंक कर सकते हैं, जिससे ग्राहकों को स्लॉट के साथ उत्पादों की उपलधता देखने में भी मदद मिलेगी। कोची के टेकी ‘साजी कुरियन और एम्स-सर्विसमेन ‘सुबीलाल के द्वारा बनाए गया यह एप संस्थानों और आगंतुकों, दोनों की सुरक्षित रहने में मदद करता है। यह एक तरह की वर्चुअल लाइन है। इससे आपको पहले से अपॉइंटमेंट लेकर शॉपिंग, बैंकिंग जैसी जरूरतें पूरी करने में मदद मिलेगी, वह भी बिना लाइन में लगे, जिससे समय बचेगा और सोशल डिस्टेंसिंग भी बनी रहेगी। अगर किसी व्यक्ति का टेस्ट पॉजीटिव आता है तो एप प्रशासन की मदद भी करता है। यह व्यक्ति के रूट को समय और तारीख के साथ ट्रेस करता है, ताकि वे सभी जो उसके संपर्क में आए हैं, उन्हें क्वारेंटाइन किया जा सके और आगे की कार्रवाई के लिए पहचाना जा सके, जो समयसमय बदलती रहती है। कोई भी व्यक्ति या संस्थान प्लेटफॉर्म पर रजिस्टर कर सकता है और इसे शादी व इंटरव्यू जैसे प्राइवेट इवेंट के लिए भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इसका मतलब है कि अगर आपको शादी के लिए बुलाया गया है जो नवदंपति से मिलने और उपहार देने के लिए एक समय दिया जाएगा। फंडा यह है कि हमारे वीकेंड की नई लाइफस्टाइल में आपका स्वागत है, जहां एप और अन्य टेक्नोलॉजी जीवन को चलाने में आपकी मदद करेंगी!

एन. रघुरामन
( लेखक मैनेजमेंट गुरु हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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