संविधान के अनुच्छेद 370 के अंतर्गत जम्मू कश्मीर को मिले विशेषाधिकार वापस लेने के खिलाफ सुप्रीमकोर्ट में 9 याचिकाएं दायर हुई है। इस में अपन प्रियंका गांधी के रिश्तेदार कांग्रेस नेता तहसीन पूनावाला की याचिका नहीं जोड़ रहे जिन्होंने सिर्फ कश्मीरियों के मौलिक अधिकारों के हनन की बात कही है । संसद के फैसले को चुनौती देने वालों में दिल्ली के मनोहर लाल शर्मा, गंदेरबल के व्यापारी फारुक अहमद, जम्मू कश्मीर के वकील शकील शब्बीर, दिल्ली में रहने वाले इंद्र सलीम उर्फ इन्द्रजी टिक्कू, आईएएस पद से इस्तीफा देने वाले शाह फैसल, जिन्होंने अपनी याचिका में कहा है कि इस फैसले से जम्मू कश्मीर के साथ भारत के रिश्तों में बदलाव आएगा, जिसे भारत एकतरफा नहीं कर सकता। जम्मू कश्मीर के रिटायर्ड जिला जज मुज्जफर इकबाल खान, सोएब कुरैशी, नेशनल कांफ्रेंस के नेता मोहम्मद अकबर लोन की ज्यादातर याचिकाओं में राज्यपाल की ओर से दी गई सहमति को चुनौती दी गई है ।
इस के अलावा कांग्रेसी नेता मणीशंकर अय्यर के ग्रुप के सदस्यों कपिल काक और राधा कुमार आदि ने अपनी पीआईएल में कहा है कि केंद्र सरकार ने कश्मीर की जनता की भावनाओं को ध्यान में नहीं रखा। अपन को यह तो पता था कि केंद्र सरकार के 370 हटाने के फैसले की सुप्रीमकोर्ट से समीक्षा होगी ही, इसलिए यह चौंकाने वाली बात नहीं है। सुप्रीमकोर्ट भी शायद 370 हटाने की प्रक्रिया की समीक्षा करने के मूड में है। इसलिए केंद्र सरकार को नोटिस देने के बजाए याचिकाएं सीधी स्वीकार कर ली गई। साथ में यह भी तय कर दिया कि सुनवाई अक्टूबर के बाद होगी। लेकिन इन याचिकाओं से पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय अदालत और संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में कश्मीर और भारत में हो रही प्रतिक्रियाओं का लाभ उठाने का मौक़ा मिल गया है । जबकि संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में मात खाने बाद उस के हौंसले टूटे हुए थे ।
पाकिस्तान में निराशा का आलम यह है कि इमरान खान की यह कह कर आलोचना हो रही है कि उन से अच्छे तो राहुल गांधी हैं जो कश्मीर से 370 हटाने पर मोदी को चुनौती दे रहे हैं । पाकिस्तान ने अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट में राहुल गांधी के उस बयान को अपनी याचिका के साथ नत्थी किया है जिस में उन्होंने कहा था कि कश्मीर में 370 हटाने के खिलाफ प्रदर्शन करने वालों पर फायरिंग हो रही है ।
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिकाओं, अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट में दाखिल पाकिस्तान की याचिका और राहुल गांधी के बयानों का पाकिस्तान की ओर से इस्तेमाल करने से ज्यादा खतरनाक है भारत में 370 को भारतीय मुसलमानों के साथ जोड़ना। जवाहर लाल नेहरु ने भी मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए शेख अब्दुल्ला के दबाव में 370 जुडवाई थी , बाद में कांग्रेस भी मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए 370 बनाए रखने को जरूरी बताती रहीजबकि देश के बाकी मुसलमानों का कश्मीर की 370 से कुछ लेना देना नहीं था , लेकिन धीरे धीरे मुसलमानों में यह धारणा बना दी गई कि 370 के कारण ही सेक्यूलर भारत में एक मुस्लिम बहुल कालोनी बरकरार है ।
मोदी सरकार ने इस धारणा को तोड़ने में सफलता पाई थी। कश्मीर से 370 हटाए जाने के बाद देश के आम मुसलमानों में कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। अलबत्ता बहुत जगह पर स्वागत ही हुआ क्योंकि कश्मीर के मुस्लिम खुद को बाकी मुसलमानों से सुपीरियर समझते थे । लेकिन यह खबर खतरनाक है, जिस में कहा गया है कि 370 हटाए जाने की वैधता पर सुप्रीमकोर्ट का फैसला आने के बाद मुस्लिम संगठन जमायत-उलमा-ए-हिन्द, जमायत-ए-इस्लामी-हिन्द और मरकजी जमायत अहले हदीथ हिन्द यह फैसला करेंगी कि उन्हें केंद्र सरकार की कार्रवाई पर क्या एक्शन लेना है? अपनी आशंका अयोध्या और 370 पर सुप्रीमकोर्ट के फैसले के बाद देश में साम्प्रदायिक हालात खराब होने के हैं , उधर पाकिस्तान में भी इसी समय युद्ध की आशंका जाहिर की जा रही है ।
अजय सेतिया
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं