18 महीनों में, बिना प्रशिक्षण के यह हुनर सीखने के लिए शिक्षकों की सराहना करनी ही चाहिए

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शिक्षक जी, आपको याद है कि आप कैसे चॉक के टुकड़े से निशाना लगाकर मुझे मारते थे और वह टुकड़ा मेरी ओर बंदूक की गोली की तरह आता था? यह अलग बात है कि मैं झुककर बच जाता था। इसलिए नहीं कि मैं रजनीकांत था, बल्कि जब मैं अपने साथ बैठे दोस्त से बात में व्यस्त होता था, तो आगे की लाइन में बैठी होशियार लड़कियों की हंसी मुझे चेता देती थी कि एक तूफान मेरी ओर बढ़ रहा है। और जब मैं आपकी ओर देखता था तो आप कहते थे, ‘कितनी बार कहना पड़ेगा, चुपचाप बैठो।’ लेकिन आज आप उसी कक्षा में खड़े हैं, वही विषय काफी अच्छे से पढ़ा रहे हैं, लेकिन मैंने कल आपको मेरे बच्चे की ऑनलाइन क्लास में कहते सुना, ‘तुम यहां मुझसे बात करने के लिए हो, चुपचाप मत बैठो।’ ये 360 डिग्री बदलाव क्यों? क्या हुआ आपको? जैसे आज बच्चे मां से पढ़ाई संबंधी सवाल पूछते हैं, वैसे ही मैं अपनी बेंच के साथी से पूछता था तो आप सजा क्यों देते थे?

तब शिक्षक सोचते थे कि कक्षा में शोर होगा तो प्राचार्य के सामने नकारात्मक छवि बनेगी, इसलिए बच्चों को चुप रहने कहते थे। लेकिन आज प्राचार्य किसी भी क्लास में चुपके से लॉगइन कर देखते हैं कि कितना शोर (पढ़ें संवाद) हो रहा है। इसीलिए आज शिक्षक कहते रहते हैं, ‘तुम यहां बात करने आए हो, चुपचाप मत बैठो।’ आज शिक्षक उन सभी बच्चों को बोलने का मौका देते हैं जो वर्चुअली हाथ उठाते हैं। हमारे दिनों में शिक्षक चुनिंदा बच्चों को ही जवाब देते थे और आगे बैठने वालों (पढ़ें होशियार लड़कियां) पर ही ज्यादा ध्यान जाता था।

मजाक से इतर वास्तविकता यह है कि पिछले 18 महीनों में हमारे शिक्षकों की निर्देश देने की भाषा पूरी तरह बदल गई है। याद है, हम किस तरह क्लास बंक करते थे और अगले दिन माता-पिता से छुट्‌टी की चिट्‌ठी न लाने पर हमसे सवाल पूछे जाते थे? आज के बच्चे भी कैमरा बंद कर क्लास बंक करते हैं लेकिन शिक्षक सजग रहते हैं और तुरंत कहते हैं, ‘वीडियो ऑन करो’ या ‘प्रकट हो, तुम कैमरे के पीछे क्या कर रहे हो?’

छोटे बच्चों के साथ शिक्षक और उदार हैं। हमसे कभी नहीं पूछा जाता थे कि ‘नाश्ता किया, क्या खाया?’ लेकिन आज प्री-प्राइमरी और प्राइमरी के बच्चों से यह सवाल बड़े प्रेम से पूछते हैं! चलो हमसे नाश्ते का तो नहीं पूछते थे, लेकिन डांटते रहते थे, ‘कितनी बार कहा है, बीच क्लास में सवाल मत पूछा करो, आखिरी में पूछना।’ आज वही शिक्षक बच्चों से कहते हैं कि अपने सवाल चैट बॉक्स में डाल दो और वे बीच क्लास में जवाब देने के अलावा बाद में वॉट्सएप पर भी जवाब दे देते हैं! हमारे दिनों में इस अलग से समझाने को ‘ट्यूशन’ कहते थे।

आज शिक्षक बच्चों से होमवर्क ई-मेल या वॉट्सएप पर मांगते हैं। यही शिक्षक कुछ समय पहले तक सोशल मीडिया साइट्स से दूर रहने कहते थे। आज के बच्चों को शिक्षक के घर वर्चुअली जाने का सौभाग्य प्राप्त है। मुझे याद नहीं कि हमारे शिक्षकों ने कभी हमें घर बुलाया हो और आज के बच्चों को तो शिक्षक के पालतू जानवर तक का नाम पता है।

फंडा यह है कि आज शिक्षक निर्देशों की भाषा बदल रहे हैं ताकि वे ऑफलाइन कक्षा की वही गर्मजोशी ऑनलाइन क्लास में दे सकें, जो हमें मिलती थी। सिर्फ 18 महीनों में, बिना प्रशिक्षण के यह हुनर सीखने के लिए उनकी सराहना करनी चाहिए।

एन. रघुरामन
(लेखक मैनेजमेंट गुरु हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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