चातुर्मास एक धार्मिक और आध्यात्मिक अवधि है जो हिंदू कैलेंडर के अनुसार चार महीने (आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक) चलती है। इस अवधि के दौरान, हिंदू धर्म के अनुयायी विशेष पूजा, व्रत, और धार्मिक गतिविधियों का पालन करते हैं।
चातुर्मास की मुख्य बातें:
- शुरुआत और अंत: चातुर्मास आषाढ़ शुक्ल एकादशी (जिसे देवशयनी एकादशी भी कहते हैं) से शुरू होता है और कार्तिक शुक्ल एकादशी (जिसे देवोत्थानी या प्रबोधिनी एकादशी भी कहते हैं) पर समाप्त होता है।
- व्रत और उपवास: इस अवधि के दौरान लोग विभिन्न प्रकार के व्रत और उपवास रखते हैं, जैसे कि एकादशी व्रत, पूर्णिमा व्रत, और अन्य धार्मिक अनुष्ठान।
- धार्मिक गतिविधियाँ: मंदिरों में विशेष पूजा, हवन, और सत्संग आयोजित किए जाते हैं। भक्त अधिक समय ध्यान, पूजा, और भक्ति में व्यतीत करते हैं।
- विवाह और अन्य शुभ कार्यों का निषेध: इस अवधि के दौरान विवाह और अन्य शुभ कार्यों को करने की मनाही होती है।
- संयम और साधना: चातुर्मास को संयम और साधना का समय माना जाता है, जिसमें लोग अपनी इंद्रियों और मन को नियंत्रित करने का प्रयास करते हैं।
- भगवान विष्णु का शयन: मान्यता है कि इस अवधि के दौरान भगवान विष्णु शयन करते हैं और देवोत्थानी एकादशी पर जागते हैं।
चातुर्मास का पालन भक्तों के जीवन में धार्मिक और आध्यात्मिक शुद्धता और अनुशासन लाने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।
🙏🏻 चतुर्मास में ताँबे के पात्र में भोजन विशेष रूप से त्याज्य है। काँसे के बर्तनों का त्याग करके मनुष्य अन्य धातुओं के पात्रों का उपयोग करे। अगर कोई धातुपात्रों का भी त्याग करके पलाशपत्र, मदारपत्र या वटपत्र की पत्तल में भोजन करे तो इसका अनुपम फल बताया गया है। अन्य किसी प्रकार का पात्र न मिलने पर मिट्टी का पात्र ही उत्तम है अथवा स्वयं ही पलाश के पत्ते लाकर उनकी पत्तल बनाये और उससे भोजन-पात्र का कार्य ले। पलाश के पत्तों से बनी पत्तल में किया गया भोजन चन्द्रायण व्रत एवं एकादशी व्रत के समान पुण्य प्रदान करने वाला माना गया है।
🙏🏻 प्रतिदिन एक समय भोजन करने वाला पुरुष अग्निष्टोम यज्ञ के फल का भागी होता है। पंचगव्य सेवन करने वाले मनुष्य को चन्द्रायण व्रत का फल मिलता है। यदि धीर पुरुष चतुर्मास में नित्य परिमित अन्न का भोजन करता है तो उसके सब पातकों का नाश हो जाता है और वह वैकुण्ठ धाम को पाता है। चतुर्मास में केवल एक ही अन्न का भोजन करने वाला मनुष्य रोगी नहीं होता।
🙏🏻 जो मनुष्य चतुर्मास में केवल दूध पीकर अथवा फल खाकर रहता है, उसके सहस्रों पाप तत्काल विलीन हो जाते हैं।
🙏🏻 पंद्रह दिन में एक दिन संपूर्ण उपवास करने से शरीर के दोष जल जाते हैं और चौदह दिनों में तैयार हुए भोजन का रस ओज में बदल जाता है। इसलिए एकादशी के उपवास की महिमा है। वैसे तो गृहस्थ को महीने में केवल शुक्लपक्ष की एकादशी रखनी चाहिए, किंतु चतुर्मास की तो दोनों पक्षों की एकादशियाँ रखनी चाहिए।
🙏🏻 जो बात करते हुए भोजन करता है, उसके वार्तालाप से अन्न अशुद्ध हो जाता है। वह केवल पाप का भोजन करता है। जो मौन होकर भोजन करता है, वह कभी दुःख में नहीं पड़ता। मौन होकर भोजन करने वाले राक्षस भी स्वर्गलोक में चले गये हैं। यदि पके हुए अन्न में कीड़े-मकोड़े पड़ जायें तो वह अशुद्ध हो जाता है। यदि मानव उस अपवित्र अन्न को खा ले तो वह दोष का भागी होता है। जो नरश्रेष्ठ प्रतिदिन ‘ॐ प्राणाय स्वाहा, ॐ अपानाय स्वाहा, ॐ व्यानाय स्वाहा, ॐ उदानाय स्वाहा, ॐ समानाय स्वाहा’ – इस प्रकार प्राणवायु को पाँच आहुतियाँ देकर मौन हो भोजन करता है, उसके पाँच पातक निश्चय ही नष्ट हो जाते हैं।
🙏🏻 चतुर्मास में जैसे भगवान विष्णु आराधनीय हैं, वैसे ही ब्राह्मण भी। भाद्रपद मास आने पर उनकी महापूजा होती है। जो चतुर्मास में भगवान विष्णु के आगे खड़ा होकर ‘पुरुष सूक्त’ का पाठ करता है, उसकी बुद्धि बढ़ती है।
🙏🏻 चतुर्मास सब गुणों से युक्त समय है। इसमें धर्मयुक्त श्रद्धा से शुभ कर्मों का अनुष्ठान करना चाहिए।