गुरुवार, 17 अक्टूबर को महिलाओं का महापर्व करवा चौथ है। इस तिथि पर महिलाएं अपने पति के सौभाग्य, अच्छे स्वास्थ्य और लंबी उम्र के लिए व्रत करती हैं। ये व्रत निर्जला होता है यानी इस दिन महिलाएं पानी भी नहीं पीती हैं। चतुर्थी पर चौथ माता की पूजा की जाती है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार रात में चौथा माता की पूजा की जाती है और चंद्रोदय के बाद चंद्र को अर्घ्य दिया जाता है। इसके बाद ही महिलाएं भोजन करती हैं। करवा चौथ माता की पूजा में उनकी कथा पढऩा और सुनना भी जरू री है। जानिए करवा चौथ की कथा…
पुराने समय में इंद्रप्रस्थ में वेद शर्मा नामक एक विद्वान ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम लीलावती था। उसके सात पुत्र और वीरावती नामक एक पुत्री थी। युवा होने पर वीरावती का विवाह करा दिया गया। इसके बाद जब कार्तिक कृष्ण चतुर्थी आई तो वीरावती ने अपनी भाभियों के साथ करवा चौथ का व्रत रखा, लेकिन भूख-प्यास से वह चंद्रोदय के पूर्व ही बेहोश हो गई। बहन को बेहोश देखकर सातों भाई परेशान हो गए। सभी भाइयों ने बहन के लिए पेड़ के पीछे से जलती मशाल का उजाला दिखाकर बहन को होश में लाकर चंद्रोदय निकलने की सूचना दी। वीरावती ने भाइयों की बात मानकर विधिपूर्वक अर्घ्य दिया और भोजन कर लिया। ऐसा करने से कुछ समय बाद ही उसके पति की मृत्यु हो गई।
अपने पति के मृत्यु के बाद वीरावती ने दुखी होकर अन्न-जल का त्याग कर दिया। उसी रात को इंद्राणी पृथ्वी पर आई। ब्राह्मण पुत्री ने उनसे अपने दुख का कारण पूछा। इंद्राणी ने बताया कि तुमने अपने पिता के घर पर करवा चौथ का व्रत किया था, लेकिन वास्तविक चंद्रोदय के होने से पहले ही अर्घ्य देकर भोजन कर लिया, इसीलिए तुम्हारा पति मर गया। अब उसे पुनर्जीवित करने के लिए विधिपूर्वक करवा चौथ का व्रत करो। मैं उस व्रत के ही पुण्य प्रभाव से तुम्हारे पति को जीवित करूंगी। वीरावती ने बारह मास की चौथ सहित करवाचौथ का व्रत पूर्ण विधि- विधानानुसार किया। इससे प्रसन्न होकर इंद्राणी ने उसके पति को जीवनदान दिया। इसके बाद उनका वैवाहिक जीवन सुखी हो गया। वीरावती को पुत्र, धन, धान्य और पति की दीर्घायु का लाभ मिला।